ऋषि कपूर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। अपने दमदार अभिनय के साथ ही साथ ऋषि अपने बेबाक अंदाज के लिए भी जाने जाते थे। ऐसे में कई बार वो विवादों में भी घिर जाते थे लेकिन वो अपनी बात पर अडिग रहते थे। इस बारे में रणबीर ने कहा था कि, 'ट्विटर पर उनके द्वारा व्यक्त विचारों के बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता, हालांकि यही वह पहला प्रश्न है, जो सामान्यतया मुझसे अपने पिता के बारे में पूछा जाता है। इसके लिए मैं इतना ही कहूंगा कि जब तक वे अपने कथन में ईमानदार हैं और यह क्रिया उन्हें आनंदित कर रही है। तो यह उनका निजी विशेषाधिकार है।'
रणबीर ने आगे कहा था, 'सोशल मीडिया एक बहुत ही निजी माध्यम है। हां यह सच है कि अपनी बेबाक टिप्पणियों के कारण वे कई बार विवादों में घिर जाते हैं परंतु मैं जानता है कि उनका कोई विशेष स्वार्थ या मकसद नहीं है। मेरे पिता एक तीर की तरह सीधे हैं। ये सभी हमारी व्यक्तिगत बाते हैं। उनके कलाकार स्वरूप के बारे में भी मेरी अपनी राय है। मैं स्वयं भी एक अभिनेता हूँ और फिल्मों एवं अभिनय में मेरी गहरी रुचि है।'
अपनी बात आगे रखते हुए रणबीर ने कहा था, 'मैं ईमानदारी से कह सकता हूँ कि मैं किसी भी कलाकार की कला को उनके समकक्ष नहीं पाता। मेरे पिता में एक विरल सहजता है। वे स्वतः स्फूर्त हैं और वे ऐसे ही प्रारम्भ से रहे हैं। वह भी तब से, जब पहले की पीढ़ी के अन्य अधिकांश कलाकारों की अपनी-अपनी एक विशिष्ट अभिनय शैली थी। परन्तु मेरे पिता के अभिनय में हमेशा एक स्वाभाविकता और स्वतः स्फूर्ति रही है।'
किताब में रणबीर ने आगे बताया था, 'गीतों पर उनकी अदाकारी और अपनी नायिकाओं के साथ प्रेम गीतों में उनका जुदा अंदाज प्रशसंनीय है। जबकि शारीरिक स्थूलता उनके लिए एक बाधा थी। जब अन्य अभिनेता मोटापे के प्रति सजग हुए, तब भी दे सदा वैसे ही रहे, पर उन्होंने इस वजन को अपनी अभिनय कला में कभी आड़े नहीं आने दिया। स्मरणीय है कि सुन्दर दिखना और कमनीय, छरहरा और सुदर्शन चेहरा एक अभिनेता के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं, क्योंकि आखिरकार एक अभिनेता को दर्शक वर्ग को मोहित जो करना होता है और मेरे पिता, ऐसे न होते हुए भी दर्शकों को लुभाने में सफल हुए। इसमें उन्होंने कई सीमा रेखाएँ तोड़ी।'
आखिर में रणबीर लिखते हैं, 'चाँदनी, दीवाना या बोल राधा बोल हो या 1980 और 1990 के दशक की उनकी कोई भी फिल्म देखें तो पायेंगे कि वे कितने प्यारे लगते थे और आप जानेंगे कि भारी बदन होते हुए भी उनका आकर्षण और ज्यादा सभी के सिर चढ़कर बोलता था। अब दूसरे दौर की फिल्मों-अग्निपथ, दो दूनी चार, कपूर एंड सन्स और कई अन्य फ़िल्मों के लिए उन्हें पहले दौर की अपेक्षा कई गुना अधिक सम्मान और पुरस्कार मिल रहे हैं। कोई भी परिस्थिति एक कुशल अभिनेता को पीछे नहीं धकेल सकती। उसका जगमगाना अवश्यम्भावी है। मनोरंजन जगत में चौवालीस वर्ष तक ससम्मान बने रहना ही इसका प्रमाण है कि उस कलाकार में कुछ तो खास अवश्य होगा।'