फ्री सब्जी का बड़ा चक्कर
दारोगा बाबू को फ्री में सब्जी चाहिए। वे हमेशा सब्जी बेचने वाले को डराकर सब्जी लेना अपनी शान समझते हैं। एक दिन फेर में पड़ गए। दुकानदार ने सब्जी नहीं दिया। उन्होंने इसे अपनी तौहीन समझी। दो-चार डंडा मार दिया। बात बड़े साहब तक पहुंच गई। तलब हुए। साहब ने डांटते हुए कहा शर्म नहीं आती है? कितनी बेइज्ज्ती होती है पुलिस की! आगे से इस प्रकार कार्य नहीं करने की नसीहत देकर भेज दिया। अपनी इस बेइज्जती पर दारोगा बाबू बड़े कुपित हुए। इसका गुस्सा एक दिन दूसरे दुकानदार पर निकाल दिया। उस दुकानदार ने इसकी शिकायत बड़े साहब ही नहीं बल्कि ऊपर तक कर दी है। जांच बैठ गई। दारोगा बाबू एक सहयोगी से कह रहे थे इस बार मामला सलटने दीजिए, तब बताएंगे! लेकिन, स्थिति और बिगड़ता देख दारोगा बाबू पहुंच गए दुकानदार के पास। बोलने लगे- देखिए जो हुआ सो हुआ, बात को रफा-दफा कर दीजिए।
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कमीशन पर कोराना कहर
कोरोना के इस संक्रमण काल में हर ओर परेशानी घर कर गई है। नगर परिषद के जनप्रतिनिधियों पर भी इसका असर दिखने लगा है। पहले उन्हें योजनाओं के क्रियान्यवन में चौतरफा कमीशन के रूप में मोटी कमाई होती थी। इस कोरोना ने बेड़ागर्क कर दिया है। पीएम की ओर से घोषित लॉकडाउन के कारण डेढ़ माह से काले-गुलाबी नोटों के दर्शन तक नहीं हुए हैं। एक वार्ड पार्षद बड़े दुखी हैं। पहले उनके लिए आवसीय योजना में प्रत्येक लाभुक से प्रतिनिधि का कमीशन फिक्स था। अभी वे कोरोना की वजह से बेचारे घर में कैद हैं। अब सरकारी आदेश है लॉकडाउन का पालन तो करना ही पड़ेगा। बिना कमीशन के उनकी रौब पर भी असर पड़ा है। बेचारे अपना यह दुखड़ा सुनाएं तो सुनाएं किसको! कमीशन नहीं मिलने की वजह से उनके अपने घर का भी अर्थतंत्र भी गड़बड़ा गया है। ऊपर से पत्नी भी खूब ताना मार रही है।
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नेताजी हो गए ओवरवेट
कोरोनाकाल में घरबंदी में लोग घरों में कैद हैं। एक नेताजी पर तो मानों मुसीबत का पहाड़ ही टूट पड़ा है। आम लोगों की तरह उनका भी बाहर आना-जाना बंद है। अब घर में सोये-बैठे क्या करें। खूब खाना खा रहे हैं। घर में शुद्ध घी और तेल में तला-हुआ खाना मिल रहा है। उनके परिवार के लोगों को तो यही पंसद है। तैलीय खाना खाने की वजह से उनका वेट और बढ़ गया है। पहले से ही उनका वेट अधिक था अब तो और दिक्कत हो गई है। वेट की बात कोई और करता तो नेता जी उसकी खैर नहीं, पर उनकी अपनी मैडम जी ने ही यह बात कह दी। इसके बाद से नेताजी खासे चिंतित हो गए हैं। नेताजी के मन में वेट बढ़ने का फोबिया घर कर गया। इन दिनों हमेशा आईने के सामने जाकर कभी अपने शरीर को तो कभी अपने पेट को निहारते हैं।
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सबको बने होगा रहना
कोरोना संक्रमण से लोग दशहत में हैं। जिले में कोरोना पॉजिटिव मिलने के बाद लोग घर से बाहर निकलने से डर रहे हैं। परंतु, साहब तो साहब हैं! उन्होंने फरमान जारी कर दिया है कि जब तक वे ऑफिस में रहेंगे सबको रहना होगा। घर एवं ऑफिस एक जगह रहने के कारण साहब की तो बल्ले-बल्ले है, लेकिन वहां पदस्थापित कर्मियों को साहब के इस फरमान बिल्कुल रास नहीं आ रहा। दबी जुबान में कर्मी चर्चा कर रहे हैं कि लॉकडाउन के दौरान कुछ दिन घर पर क्या बिता लिए, साहब खफा गए। काम को जल्दी-जल्दी खत्म कराने के चक्कर में रहते थे, इस कोरोना काल में साहब ने देर रात तक कार्य करने का फरमान जारी कर दिया। साहब को कौन बताए कि देर रात तक कार्य करने के बाद वापस घर जाने में पुलिस के सामने कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। ऊपर से घर की टेंशन अलग।
Posted By: Jagran
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