अमेरिका में कोरोना के सर्वाधिक संक्रमण के बीच वहां स्थित जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी का एक जरूरी अध्ययन सामने आया है. इसमें दावा किया गया है कि युवा आबादी में कोरोना के संक्रमण की एक प्रमुख वजह फैट की चर्बी भी है. अमेरिका में 11 लाख से अधिक कोरोना संक्रमण सामने आ चुके हैं जिनमें बड़ी तादाद में युवा आबादी भी ग्रस्त है.
लांसेट के ताजा अंक में प्रकाशित शोधपत्र में बोला गया है कि 265 मरीजों पर अध्ययन करने के बाद यह नतीजा निकाला गया है. ये मरीज जॉन हॉपकिन्स अस्पताल के अतिरिक्त यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयार्क, यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन, फ्लोरिडा हेल्थ आदि से संबद्ध अस्पतालों में कोविड इलाज के लिए भर्ती थे. जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इन मरीजों के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के आधार पर कोरोना संक्रमण की आशंकाओं का अध्ययन किया. इनमें से 25 प्रतिशत युवा ही ऐसे थे, जिनका बीएमआई नियंत्रण में था. बाकी लोग मोटापे से ग्रस्त थे.
अमेरिका के युवाओं में मोटापे की दर ज्यादा शोधकर्ताओं ने बोला कि यह बात पहले भी सामने आई थी कि मोटापे से ग्रस्त लोग इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आ सकते हैं लेकिन यह खतरा पहले जताई गई संभावना से कहीं ज्यादा है. यदि किसी आबादी में मोटापे की दर ज्यादा है तो यह वहां कोरोना संक्रमण का खतरा भी अधिक रहेगा. बता दें कि अमेरिका में युवाओं में मोटापे की दर 40 प्रतिशत तक है, जबकि चाइना में 6.2, इटली में 20 व स्पेन में 24 प्रतिशत है. शोध में बोला गया है कि फैट की चर्बी शरीर के प्रतिरोधक तंत्र को बिगाड़ देता है, जिससे उनका शरीर वायरल संक्रमण के विरूद्ध नहीं लड़ पाता है.
टेस्ट का बड़ा अभियान चले शोध में बोला गया है कि अमेरिका ने पहले इस बीमारी को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि यह माना गया है कि यह सिर्फ बुजुर्गों पर प्रभाव डालने वाली बीमारी है लेकिन अब स्थिति साफ है. युवा आबादी भी शिकार हुई है. शोध में सलाह दी गई है जिन राष्ट्रों में युवा आबादी मोटापे की शिकार है, उन्हें कोरोना संक्रमण की पहचान के लिए युवा आबादी में टेस्टिंग के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाना चाहिए.