बिना मजदूरों के कैसे चलेंगे उद्योग-धंधे, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना बड़ी चुनौती

लॉकडाउन के तीसरे चरण की घोषणा के साथ ही मजदूरों को उनके घरों पर भेजने की योजना भी शुरू हो गई है। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से उन्हें उनके घरों तक भेजा जा रहा है। कामकाज के पटरी पर लौटने की अनिश्चितता के कारण ज्यादातर श्रमिक वापस अपने घरों को लौट जाना चाहते हैं।इसी के साथ केंद्र और राज्य सरकारों की कोशिश ग्रीन जोन के कुछ उद्योगों को शुरू कर अर्थव्यवस्था को दुबारा पटरी पर लाने की है। लेकिन मजदूरों के पलायन के बीच सरकार की यह कोशिश कितनी कामयाब हो सकेगी, इसे लेकर अनेक सवाल उठने शुरू हो गए हैं।

ट्रांसपोर्ट में मजदूरों की कमी दिल्ली ट्रांसपोर्ट यूनियन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर ने बताया कि लॉकडाउन के कारण भारी संख्या में मजदूर अपने घरों को लौट गए हैं। इसके कारण पल्लेदारों की कमी हो गई है। कई जगहों पर सामान चढ़ाने और उतारने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं।अनेक फैक्ट्रियों और कंपनियों में भी इसी तरह के हालात बन रहे हैं। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट उद्योग को ट्रकों के लिए ड्राइवरों और सहयोगी कर्मचारियों की कमी का भी सामना करना पड़ रहा है। अगर औद्योगिक क्षेत्रों में कामकाज शुरु होता है तो मजदूरों की कमी और अधिक बढ़ेगी।
मजदूरों को ट्रेन चलने का इंतजार दिल्ली और एनसीआर एरिया में निर्माण क्षेत्र में सबसे ज्यादा मजदूरों की मांग होती है। लेकिन इस क्षेत्र की कमर पहले से टूटी हुई है। लॉकडाउन ने इसको और अधिक कमजोर करने वाला काम किया है। निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले बिहार के श्रमिक मंसूर आलम खान ने कहा कि उनकी कंपनियों की तरफ से उन्हें कह दिया गया है कि अब कामकाज शुरू होने में छह महीने तक का समय लग सकता है।ऐसे में उन्हें तात्कालिक रूप से अपनी व्यवस्था कर लेनी चाहिए। मंसूर आलम का कहना है कि उनके जैसे लाखों लोग सरकार की योजना का इंतजार कर रहे हैं कि कब ट्रेन चलेगी और कब वे अपने घरों को जा पाएंगे।
इस परेशानी में कोई क्यों रहेगा दिल्ली कर्मचारी संघ के सचिव लक्ष्मीराज सिंह ने कहा कि मई के लिए लोगों को राशन बांटा जा रहा है। सुबह से अब तक लाइन लगी है लेकिन लोगों को राशन नहीं मिल रहा है। मजदूरों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। ऐसे में कोई भी मजदूर यहां नहीं टिकना चाहता है। वे स्वयं भी दिल्ली सरकार और नोडल अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे उन्हें उनके घरों को भेजा जा सके।
मजदूर संघ ने कहा, नहीं होगी दिक्कत हालांकि, मजदूर संघ की इस मायने में राय अलग है। संघ के दिल्ली प्रांत के महामंत्री अनीश मिश्रा ने अमर उजाला को बताया कि दिल्ली और एनसीआर एरिया में उद्योगों को चलाने में मजदूरों की कमी आड़े नहीं आएगी। इसकी वजह है कि यूपी-बिहार के लाखों मजदूरों ने यहां पर अपने स्थाई घर बना लिए हैं। उनके लिए दिल्ली ही उनका घर बन चुका है। ऐसी स्थिति में मजदूरों का यह वर्ग बाहर नहीं जाएगा और उद्योगों को चलाने में पूरी मदद करेगा। उन्होंने कहा कि सारे उद्योग भी एक साथ शुरू नहीं होने जा रहे हैं। शुरुआत में यहां के मजदूरों से काम चल जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे परिस्थितियां सामान्य होंगी, घरों को वापस गए मजदूर भी लौटेंगे और पूरी व्यवस्था पटरी पर लौट आएगी। इसलिए उद्योगों को चलाने में मजदूरों की कोई कमी नहीं आएगी, यह उनका विश्वास है। इसी बीच उन लोगों की तरफ से मजदूरों को सूखा राशन और तैयार भोजन भी बांटा जा रहा है।
कितने मजदूर एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली और एनसीआर एरिया में लगभग 40 से 45 लाख मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इनमें लगभग 10 लाख गुरुग्राम और दस से 12 लाख के बीच गाजियाबाद और नोएडा में काम करते हैं। इसके अलावा आसपास के फरीदाबाद जैसे जिलों में भी भारी संख्या में मजदूर रहते हैं। अनुमान है कि इनमें से आठ से दस लाख के बीच मजदूर पलायन कर सकते हैं।

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