भारतीय सिनेमा को नया रंग और पहचान देने वाले दिग्गज निर्देशक सत्यजीत रे ने दुनियाभर में ख्याति बटोरी। सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा के एकमात्र ऐसे पुरोधा हैं, जिन्होंने पद्मश्री से पद्म विभूषण तक और ऑस्कर अवार्ड से लेकर दादासाहेब फाल्के पुरस्कार समेत 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल किए। सत्यजीत रे ने कई शानदार कलाकारों के साथ बेहतरीन फिल्में बनाईं। दो मई को उनका जन्मदिन होता है। ऐसे में हम आपको सत्यजीत रे और अमिताभ बच्चन से जुड़ा एक किस्सा बताते हैं।
बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन की दिली इच्छा थी की सत्यजीत रे उन्हें अपनी फिल्मों में लें, लेकिन बिग बी की ये इच्छा दिल में ही रह गई। दरअसल सत्यजीत रे अमिताभ बच्चन को अपनी फिल्मों में इसलिए नहीं लेते थे क्योंकि वह काफी महंगे कलाकारों में से एक थे। अभिनेत्री जया बच्चन भी चाहती थीं कि सत्यजीत रे अमिताभ बच्चन को अपनी फिल्मों में लें लेकिन उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया।
इस बात की खुलासा सत्यजीत रे की पत्नी बिजोया ने अपनी किताब 'माणिक एंड आई' किया है। 1992 में सत्यजीत रे के निधन तक लिखी गई उनकी निजी डायरी पर आधारित इस किताब को पेंग्विन इंडिया ने प्रकाशित किया है। बिजोया ने अपनी किताब में लिखा है, 'जया बच्चन ने मुझे बताया कि अमिताभ, माणिक (सत्यजीत) के साथ उनकी किसी भी बंगाली फिल्म में काम करने के इच्छुक हैं। इस पर सत्यजीत मुस्कराए और बोले कि पहले मुझे अच्छा काम करने दो, तभी मैं दूसरी फिल्म के बारे में सोच सकता हूं। मैंने अमिताभ के साथ फिल्म करने की कई बार सोची, लेकिन बहुत महंगे कलाकारों में से एक हैं। हमारी बंगाल फिल्म इंडस्ट्री के पास इतना पैसा नहीं है।'
किताब में आगे लिखा, 'इस पर जया बच्चन ने तुरंत कहा कि आप ऐसा मत कहिए। आपके साथ काम करना काफी सम्मान की बात है और मुझे यकीन है कि वह आपसे इतने पैसों की मांग नहीं करेंगे'। गौरतलब है कि अमिताभ बच्चन और सत्यजीत रे पहली बार करीब फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' से आए। इस फिल्म में अमिताभ ने कहानी कथन में अपनी आवाज दी थी। आपको बता दें कि सत्यतीज रे की फिल्में अक्सर कम बजट की ही होती थी।
सत्यजीत रे की पत्नी बिजोया ने किताब में अपनी प्रेम कहानी के किस्सों को भी लिखा है। साथ ही बताया कि उन्होंने सत्यजीत रे से कैसे शादी की थी। सत्यजीत रे का जन्म कलकत्ता के बंगाली रॉय परिवार में हुआ था। अंग्रेज जिस तरह ठाकुर का उच्चारण 'टैगोर' करते थे, उसी तरह रॉय को 'रे' कहते थे। इसलिए लोग उन्हें सत्यजीत रे कहने लगे।