पाथेर पांचाली, अपराजितो, अपूरसंसार और चारूलता जैसी यादगार फिल्में बनाने वाले सत्यजीत रे की आज जयंती है। सत्यजीत रे आज जीवित होते तो जन्म के शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहे होते। 2 मई 1921 को जन्में सत्यजीत रे की गिनती महान निर्देशकों में होती है। उन्होंने अपने अपने जीवन में कुल 37 फिल्में बनाई थीं और इन्ही फिल्मों से वो पूरी दुनिया में छा गए। वह एक लेखक, पब्लिशर, इलुस्ट्रेटर, कॉलीग्राफर, ग्राफिक डिजाइनर और फिल्म क्रिटिक भी थे।
सत्यजीत रे ने अपने करियर की शुरुआत साल 1943 में बतौर जूनियर विजुलायजर की। जहां से उन्हें 18 रुपये वेतन के तौर पर मिलत थे। इसके बाद उन्होंने डिजाइनिंग में भी हाथ आजमाया। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू की किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया का डिजाइन भी किया। कपंनी के काम से लंदन गए सत्यजीत से वहां के सिनेमा से इतने प्रभावित हुए कि निर्देशक बनने की ठान ली। उनकी पहली फिल्म थी पाथेर पांचाली। इस फिल्म को कांस फिल्म फेस्टिवल में भी खूब सराहा गया।
सत्यजीत रे के बारे में अगर कहा जाए कि उन्होने घुटनों पर चल रहे भारत के सिनेमा को चलना सिखाया तो गलत नहीं होगा। उन्होंने ज्यादा सिनेमा बंगाली में ही बनाया। उनकी पहली फिल्म 'पाथेर पांचाली' ने कई अवार्ड जीते। हिन्दी में उन्होने 'शतरंज के खिलाड़ी' जैसी फिल्म बनाई। जो हिन्दी सिनेमा की यादगार फिल्म है। सत्यजीत रे को भारतीय सिनेमा का सबसे बेहतर डायरेक्टर कहा जाता है। 'द गॉडफादर' जैसी फिल्मों के डायरेक्टर फ्रांसिस फॉर्ड कोपोला सत्यजीत रे के फैन थे।
आपको जानकर हैरानी होगी कि पाथेर पांचाली के निर्माण के लिए किशोर कुमार ने भी सत्यजीत रे को पांच हजार रुपए दिए थे। किशोर कुमार की पहली पत्नी रूमा गुहा ठाकुरता सत्यजीत रे की भतीजी थी। जब भी सत्यजीत रे ने पांच हजार रुपए लौटाने की कोशिश की तो, किशोर कुमार ने इनकार कर दिया। वे इस महान फिल्म से इसी नाते जुड़े रहना चाहते थे। तीस मार्च 1992 को भारतीय फिल्मकार सत्यजीत रे को ऑनररी लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजा गया था।
सिनेमा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए ही उन्हें विशेष ऑस्कर सम्मान दिया गया था। यही वो साल था जब सिनेमा का ये सितारा हमें हमेशा के लिए छोड़कर चला गया। सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए सत्यजीत रे को ऑस्कर देने के लिए कमेटी के अध्यक्ष भारत आए। सत्यजीत रे बीमारी के कारण यात्रा नहीं कर सकते थे। फिल्मों में उनके योगदान के लिए सन 1992 में उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न भी दिया गया।