एक साल तक जेल से बाहर आकर शूटिंग करते थे बलराज साहनी, जानिए किस वजह से हुई थी गिरफ्तारी

भारतीय सिनेमा का इतिहास सुनहरा रहा है। कई निर्देशकों से लेकर अभिनेताओं तक ने इसके रंग को गाढ़ा किया है। ऐसा ही एक नाम बलराज साहनी हैं, जिनका सिनेमा को दिया योगदान भुलाया नहीं जा सकता। बलराज के बचपन का नाम 'युधिष्ठिर साहनी' था। बलराज साहनी का जन्म 1 मई 1913 को ब्रिटिश भारत के रावलपिंडी में हुआ था।

समानांतर सिनेमा की नींव रखने वाले प्रसिद्ध बलराज साहनी ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को 'काबुलीवाला', 'दो बीघा जमीन', 'वक्त', 'छोटी बहन' और 'गरम हवा' जैसी यादगार फिल्में दीं। बलराज सिर्फ एक उम्दा अभिनेता ही नहीं थे बल्कि उन सितारों में भी शुमार थे जो किसी भी मुद्दे पर अपनी बात बेबाक होकर रखते थे। चाहें फिर कीमत कुछ भी हो।
ऐसा ही एक किस्सा आपको बताते हैं जब बलराज साहनी उस दौर के इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के सदस्य थे। अपनी आत्मकथा 'मेरी फिल्मी आत्मकथा' में बलराज साहनी ने 1949 में हुई घटना का जिक्र किया। इसमें उन्होंने बताया था की रिहर्सल के दौरान एक बुलावा आया कि कम्युनिस्ट पार्टी को मुंबई के परेल ऑफिस से निकाला जा रहा है और उसके विरोध में एक जुलूस के लिए उनकी जरूरत है।
ऐसे में बलराज साहनी अपनी पत्नी के साथ परेल पहुंचे और पार्टी के कार्यकर्ता से मुलाकात के बाद जुलूस में शामिल हुए। कुछ दूरी के बाद ही पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा और फायरिंग भी हुई। इसके साथ ही जुलूस में शामिल होने की वजह से बलराज साहनी को गिरफ्तार कर लिया गया। तकरीबन एक साल तक जेल में रहे बलराज साहनी। उस दौरान वो कई फिल्में भी कर रहे थे, इसलिए निर्माताओं के निवेदन पर उन्हें जेल से सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक फिल्मों में काम करने की छूट मिलती थी, जिसमें वो फिल्म का शूट करते थे।
बता दें कि इप्टा की बनाई फिल्म धरती के लाल के जरिए ही बलराज साहनी ने 1946 में फिल्मों की दुनिया में कदम रखा था। हालांकि बलराज कुछ समय के लिए इप्टा से अलग भी हो गए थे, लेकिन 1969 में फिर से इप्टा में शामिल हुए। गौरतलब है कि 13 अप्रैल 1973 को बलराज साहनी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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