ऋषि कपूर: रोमांटिक फिल्मों के एक युग की समाप्ति

बॉलीवुड के सदाबहार अभिनेता ऋषि कपूर ने मुंबई के सर एच. एन. रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में आज सुबह अपनी अंतिम सांसंे ली. 67 वर्ष की उम्र में कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से लड़ते हुए वे जिन्दगी एवं मौत के बीच जूझते हुए हार गये और आखिर मौत जीत गयी. एक संभावनाओं भरा हिन्दी सिनेमा का सफर ठहर गया, उनका निधन न केवल सिनेमा-जगत के लिये बल्कि भारत की राष्ट्रवादी सोच के लिये एक गहरा आघात है, अपूरणीय क्षति है. ऋषि का जीवन-सफर आदर्शों एवं मूल्यों की सोच एवं सृजन की ऊंची मीनार हैं. उनका निधन रोमांटिक फिल्मों के एक युग की समाप्ति है, क्योंकि कल उनकी रफ्तार की मिसालें थी, आज उनकी खामोशी के चर्चें हैं. ऋषि कपूर की पहचान उनकी रोमांटिक फिल्मों से है और उन्होंने रोमांस का किंग भी कहा जाता है. कहा जाता है कि ऋषि ने अपने करियर में एक दो नहीं, बल्कि 90 से ज्यादा रोमांटिक फिल्में की थी और उनके कई किरदार तो रोमांटिक फिल्मों के लिए मिसाल बन चुके हैं. अगर आज भी बॉलीवुड में रोमांस की बात की जाती है तो सबसे पहले सरगम में डपली बजाते हुए ऋषि कपूर ही नजर आते हैं. उन्होंने वैसे तो चाइल्ड एक्टर के तौर पर ही फिल्मों में कदम रख लिया था. चॉकलेटी ब्वॉय कहे जाने वाले ऋषि कपूर ने 'मेरा नाम जोकर' से एक बाल कलाकार के रूप में अपना फिल्मी सफर शुरू किया था. हालांकि इससे पहले ऋषि कपूर 'श्री 420' में 'प्यार हुआ इकरार हुआ.' गाने में भाई रणधीर कपूर और रीमा के साथ पैदल चलते दिखे थे. फिल्म में अपने किरदार के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला था. बतौर एक्टर उनकी फिल्म बॉबी (1973) थी जिसमें वह डिंपल कपाड़िया के साथ नजर आए थे. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट एक्टर अवॉर्ड (1974) में मिला था. ऋषि कपूर की छवि एक रोमांटिक हीरो की थी. उन्हें दर्शकों ने रोमांटिक अंदाज में काफी पसंद भी किया. यही वजह है कि 1973 से 2000 के बीच ऋषि ने 92 रोमांटिक फिल्मों में काम किया जिनमें से 36 फिल्में सुपरहिट साबित हुईं. इनमें कर्ज, दीवाना, चांदनी, सागर, अमर अकबर एंथनी, हम किसी से कम नहीं, प्रेम रोग, लैला-मंजनू, हीना जैसी फिल्में शामिल हैं. साल 2000 के बाद ऋषि कपूर अकसर सपोर्टिंग रोल्स में नजर आने लगे, जिसमें 'हम तुम', 'फना, 'नमस्ते लंदन', 'लव आजकल', 'पटियाला हाउस', 'अग्निपथ', 'हाउसफुल टू' और कई फिल्में शामिल हैं. ऋषि कपूर की पत्नी नीतू सिंह के साथ रोमांटिक जोड़ी काफी पसंद की जाती थी. दोनों ने तकरीबन 12 फिल्मों में साथ काम किया. इनमें खेल खेल में (1975), कभी कभी(1976), अमर अकबर एंथनी (1977), दुनिया मेरी जेब में (1979) और पति पत्नी और वो (1978) (दोनों का गेस्ट अपीयरेंस) हिट साबित हुईं जबकि जहरीला इंसान (1974), जिंदा दिल (1975), दूसरा आदमी (1977), अनजाने में (1978), झूठा कहीं का (1979) और धन दौलत (1980), दो दूनी चार (2010), बेशरम (2013) फ्लॉप रहीं. हिन्दी सिनेमा के पास इनसे ज्यादा नटखट जोड़ी दूसरी नहीं थी. अपने समय में परदे पर धमाल मचाने वाली ऋषि-नीतू की जोड़ी प्यार का एक नया एवं ताजगीभरा चेहरा लेकर आई थी. वे परी-कथाओं के जैसा प्यार रचते हुए, ताजगी का एहसास बांटते हुए दर्शकों के दिलों की धड़कन बने. ऋषि कपूर का जन्म 4 सितंबर, 1952 को हुआ. वे एक सफल भारतीय फिल्म अभिनेता, फिल्म निर्माता और निर्देशक हंै. दो दूनी चार में उनके प्रदर्शन के लिए, उन्हें 2011 का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए फिल्मफेयर क्रिटिक्स पुरस्कार दिया गया, और कपूर एण्ड सन्स में अपनी भूमिका के लिए, उन्होंने 2017 का सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता. सन् 2008 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. ऋषि कपूर स्वर्गीय राज कपूर के बेटे और पृथ्वीराज कपूर के पोते हंै. उन्होंने कैंपियन स्कूल, मुंबई और मेयो कॉलेज, अजमेर में अपने भाइयों के साथ अपनी स्कूली शिक्षा ग्रहण की. उनके भाई रणधीर कपूर और राजीव कपूर, मामा प्रेमनाथ और राजेंद्रनाथ और चाचा शशि कपूर और शम्मी कपूर सभी अभिनेता हैं. उनकी दो बहनें रितु नंदा और रिमा जैन हैं. परम्परा के अनुसार उन्होंने भी अपने दादा और पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए अपने अनूठे, यादगार एवं विलक्षण अभिनय से विशेष पहचान बनायी. ऋषि कपूर और नीतू सिंह की शादी 22 जनवरी 1980 में हुई थी. इनके दो बच्चे हैं रणबीर कपूर जो की एक अभिनेता है और रिदीमा कपूर जो एक ड्रैस डिजाइन है. करिश्मा कपूर और करीना कपूर इनकी भतीजियां हैं. ऋषि कपूर सुपरस्टार रहे थे, जिनकी जिंदगी हमेशा एक खुली किताब की तरह रही. उन्होंने कई बार अपनी जिंदगी से जुड़े ऐसे खुलासे किए हैं, जिनके बारे में बात करने से भी लोग कतराते हैं. ऋषि कपूर ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'खुल्लम खुल्ला: ऋषि कपूर अनसेंसर्ड' में बताया कि उन्होंने एक बार अमिताभ बच्चन को 'जंजीर' फिल्म के लिये मिलने वाला फिल्मफेयर अवार्ड को पैसे देकर खरीदा था. ऋषि ने 30 हजार रुपये देकर 'बॉबी' के लिए बतौर बेस्ट एक्टर इस अवॉर्ड को खरीद लिया था. जिसकी वजह से दोनों कलाकारों के बीच कुछ दूरी भी आ गई थी. लेकिन बाद में दोनों सुपर स्टार के बीच संबंध बहुत मधुर रहे और दोनों ने अनेक फिल्में साथ में की है. यही कारण है कि ऋषि के निधन पर अमिताभ ने कहा कि मैं टूट गया हूं.' ऋषि कपूर को हम भारतीय सिनेमा का उज्ज्वल नक्षत्र कह सकते हैं, वे चित्रता में मित्रता के प्रतीक थे तो गहन मानवीय चेतना के चितेरे जुझारु, नीडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थे. वे एक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व थे, जिन्हें अभिनय जगत का एक यशस्वी योद्धा माना जाता है. उन्होंने आमजन के बीच, हर जगह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया. लाखों-लाखों की भीड़ में कोई-कोई ऋषि जैसा विलक्षण एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति अभिनय-विकास की प्रयोगशाला में विभिन्न प्रशिक्षणों-परीक्षणों से गुजरकर महानता का वरन करता है, विकास के उच्च शिखरों पर आरूढ़ होता है और अपनी अनूठी अभिनय क्षमता, मौलिक सोच, कर्मठता, जिजीविषा, पुरुषार्थ एवं राष्ट्र-भावना से सिनेमा-जगत, समाज एवं राष्ट्र को अभिप्रेरित करता है. वे भारतीय फिल्म-जगत का एक आदर्श चेहरा थे. देश और देशवासियों के लिये कुछ खास करने का जज्बा उनमें कूट-कूट कर भरा था. वे वर्तमान कोरोना महासंकट के समय पुलिसकर्मियों और मेडिकल स्टाफ को पीटने की घटनाओं को लेकर बहुत दुःखी थे और उन्होंने इन हालातों पर नियंत्रण पाने के लिये आपातकाल घोषित करने की मांग की. देश की एकता एवं अखण्डता को खंडित करने की घटनाओं पर उनके भीतर एक ज्वार उफनने लगता और इसकी वे अभिव्यक्ति भी साहस से करते, जिसके कारण इन वर्षों में उनका एक नया स्वरूप उभरा. ऋषि कपूर एक ऐसे जीवन की दास्तान है जिन्होंने अपने जीवन को बिन्दु से सिन्धु बनाया है. उनके जीवन की दास्तान को पढ़ते हुए जीवन के बारे में एक नई सोच पैदा होती है. जीवन सभी जीते हैं पर सार्थक जीवन जीने की कला बहुत कम व्यक्ति जान पाते हैं. ऋषि के जीवन कथानक की प्रस्तुति को देखते हुए सुखद आश्चर्य होता है एवं प्रेरणा मिलती है कि जीवन आदर्शों के माध्यम से भारतीय सिनेमा, राजनीति, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैयक्तिक जीवन की अनेक सार्थक दिशाएँ उद्घाटित की जा सकती हैं. उन्होंने व्यापक संदर्भों में जीवन के सार्थक आयामों को प्रकट किया है, वे आदर्श जीवन का एक अनुकरणीय उदाहरण हंै, उनके जीवन से कुछ नया करने, कुछ मौलिक सोचने, समाज को मूल्य प्रेरित बनाने, सेवा का संसार रचने, सद्प्रवृत्तियों को जागृत करने की प्रेरणा मिलती रहेगी. उनके जीवन से जुड़ी विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया. वे जितने उच्च नैतिक-चारित्रिक व्यक्तित्व एवं नायक थे, उससे अधिक मानवीय एवं सामाजिक थे. उनका निधन एक जीवंत, प्यारभरी सोच के सिनेमा का अंत है. वे सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की शंृखला के प्रतीक थे. आपके जीवन की खिड़कियाँ सिनेमा-जगत, समाज एवं राष्ट्र को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही. उनकी सहजता और सरलता में गोता लगाने से ज्ञात होता है कि वे गहरे मानवीय सरोकार से ओतप्रोत एक अल्हड़ व्यक्तित्व थे. बेशक ऋषि कपूर अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपने सफल, सार्थक एवं जीवंत अभिनय के दम पर वे हमेशा भारतीय सिनेमा के आसमान में एक सितारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे.

अन्य समाचार