सिनेमा पर लिखने का शौक हो जाए तो दूसरी आदत ये भी हो जाती है कि आपको सिनेमा अकेले देखने में मजा आने लगता है। और, कम ही होता है ऐसा कि आप अकेले ही किसी संवाद को देखकर इतना खुश हो जाए कि तालियां बजा उठें या फिर अनायास मुंह से अपने आप ठहाका निकल जाए। लेकिन, इरफान की फिल्में देखते हुए ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ। ताजा उदाहरण अंग्रेजी मीडियम का है जिसमें वह अपनी बेटी को समझाते हुए कहते हैं, 'बेटा, ये नंबर है खुद लाने पड़ते हैं, विधायक ना कि दूसरों के ले लिए।' अब संवाद लिखने वाले इरफान की फिल्म है इसलिए ऐसे संवाद लिखते हैं या फिर इरफान ही ऐन मौके पर ये संवाद शूटिंग के वक्त बोल जाते हैं, ये फिल्ममेकिंग की आपसी समझ वाला राज है।
32 साल के करियर में करीब 80 फिल्में करने वाले इरफान को राइटिंग और इश्क का मजा एक साथ आना शुरू हुआ था। अगर आप इरफान की फिल्में देखेंगे तो आपको समझ भी आएगा कि परदे पर उनका अपनी हीरोइन के साथ इश्क करने का अंदाज इसीलिए बहुत अलहदा होता है। मकबूल का वो सीन याद कीजिए जब तब्बू और इरफान कुछ गज की दूरी पर खड़े हैं। दोनों के बीच आंखों से बातचीत हो रही है औ तब्बू के मुंह से फूटता है, मेरी जान। इन दो शब्दों को जिस तरह से फिर इरफान खेलते हैं, उसका आनंद देखकर ही लिया जा सकता है। फिल्म द वॉरियर के बाद लोगों ने नोटिस ही इरफान को उनके इस खेल की वजह से किया। एक इंटरव्यू में इरफान ने कहा, 'वॉरियर में मेरे बहुत सारे सीन ऐसे थे जिनमें मुझे कुछ बोलना नहीं था। लेकिन मुझे तो कैमरे से बात करनी थी तो इसमें मुझे एनएसडी की तमाम हरकतों का फायदा मिला और मैंने आंखों से कैमरे से बतियाना सीख लिया।'
ऐसा नहीं कि इरफान ने हमेशा महान सिनेमा ही किया। मकान और गाड़ी की ईएमआई भरने के लिए उन्होंने थैंक्यू और हिस्स जैसी फिल्में भी की हैं। रोहित शेट्टी अब बड़े फिल्ममेकर भले बन गए हैं, लेकिन वह भी अपने करियर में संडे जैसी फिल्में बना चुके हैं और इरफान खान उनकी फिल्म के सीन में रावण के 10 सिर लगाकर गाड़ी में भी बैठ चुके हैं। लेकिन, इस सबके बाद इरफान ने कभी खुद को आसमान से उतरा फरिश्ता नहीं समझा। उनका एक संवाद है, 'भगवान का स्क्रीनप्ले भी अजीब है बल्लू, जो एक्टिंग करता है उसे एक्टिंग का चांस नहीं मिलता और जो बॉडी बनाता है उसे एक्टिंग का चांस मिल जाता है।' ये एक संवाद ही दरअसल इरफान के अंदर के एक्टर का दर्द रहा है। वह कहते भी थे, 'अगर सिनेमा का हीरो वही हो सकता है जो सुंदर दिखता है तो फिर हीरो की ये परिभाषा गलत है। आम आदमी के लिए हीरो वह होता है जो दो घंटे के लिए उसे उसकी दुनिया भुला दे।'
इरफान कभी अपने अच्छे काम पर इतराए भी नहीं। अनिल कपूर के मिशन इंपॉसिबल या पंकज त्रिपाठी के एक्स्ट्रैक्शन का हिस्सा बनने से बरसों पहले इरफान एजेंलीना जोली, डैनी बॉयल, एंग ली और मार्क वेब जैसे सितारों के साथ हॉलीवुड में धूम मचा चुके थे। यकीन करेंगे कभी आप कि जिस अभिनेता को उसकी शक्ल सूरत की वजह से बरसों हिंदी सिनेमा में दुत्कारा गया, उसे बाद में महिला पत्रकारों के संगठन ने फिल्म नेमसेक के लिए बेस्ट सिडक्शन एक्टर का अवॉर्ड दिया। जीक्यू जैसी फैशन मैगजीन ने उन्हें मैन ऑफ द ईयर के खिताब से नवाजा।
तमाम बड़े बड़े पीआरओ इरफान से मिलते और कहते कि आप अपना लुक बदल लीजिए, हम आपकी तकदीर बदल देंगे। इरफान ने कई बार अपने फैशन फोटो सेशन कराए भी लेकिन किसी पीआरओ के कहने पर नहीं बल्कि पैसे की जरूरत पूरी करने क लिए। जैसा कि उनकी फिल्म मदारी का एक संवाद है, 'कपड़े, लत्ते, शकल सूरत सब सवा सौ करोड़ जैसी है, कैसे ढूंढोगे मुझे?' वह सब कुछ करके भी रहे इरफान ही। न अपनी चाल बदली और न अपनी सूरत। उनके सादेपन में ही गजब की अदा दिखी लोगों को और यही वह अदा रही जिसमें उनकी गाली पर भी तालियां पड़ती रहती हैं।