साहिबजादे इरफान अली खान ने अपने नाम से जब सरनेम खान हटाया तो मैंने उनसे पूछा था कि ऐसा क्यूं भला? तो वह अपनी झील सी गहरी आखों को छत की तरफ ले जाते हुए बोले थे, 'मैं बोझ लेकर नहीं चलना चाहता।' इरफान को कोई इरफान खान कहकर इंटरव्यू में भी बुलाए तो उन्हें कोफ्त होती थी। वह जितने अपनी अम्मी के इरफान थे, बस उतने ही प्यारे इरफान पूरे हिंदुस्तान के रहना चाहते थे, न रत्ती भर ज्यादा, न रत्ती भर कम।
मुंबई की सुनसान गलियों से गुजरता हुआ रत्ती भर सा एक कारवां जब बुधवार को वर्सोवा कब्रिस्तान में अपने अजीज इरफान को धरती की गोद में सुलाकर लौटने लगा तो हर एक आंख नम थी। करोड़ों लोगों को रुलाकर जाने वाले इरफान की यात्रा दरअसल दो साल पहले ही खुदा के पास जाने के लिए शुरू हो चुकी थी।
वह कहते भी थे, 'हाथी और घोड़ा कुछ खास मतलब रखते नहीं हैं जीवन में। सेकेंड हैंड कार चलाने में मुझे जितनी खुशी होती थी, उतनी शायद पांच करोड़ की कार में पीछे की सीट पर बैठने से नहीं होती।' वह यारों के यार रहे, दोस्तों के दिलदार रहे। बस एक ही तमन्ना रही, 'लोग मुझे मेरे काम से याद रखें। मैं चाहता हूं कि मेरा हर काम मुझे अपने इन चाहने वालों से जोड़े रखे। रोल मैंने खराब भी किए हैं लेकिन मैंने बेईमानी वहां भी नहीं की। मैं इस इंडस्ट्री में आज तक जिंदा हूं तो इसलिए कि बतौर अभिनेता मैंने खुद को बदलते माहौल से और आसपास की बदलती जिंदगी से जोड़े रखा।'
इरफान को जिसने भी जाना बदलते दौर के बेहतरीन अभिनेता के तौर पर जाना। नहीं तो कहां दूरदर्शन का सीरियल भारत एक खोज, जी टीवी का सीरियल बनेगी अपनी बात और कहां मार्क वेब जैसे निर्देशक के साथ अमेजिंग स्पाइडरमैन और एंग ली के साथ लाइफ ऑफ पाई। इरफान हिंदी सिनेमा के पहले ऐसे अभिनेता रहे जो विदेश में मशहूर होने के बाद घर में लोकप्रिय हुए। टीवी और फिल्म में तमाम काम करने के बाद उन्हें लोगों ने 19 साल पहले फिल्म द वॉरियर से ही तवज्जो देनी शुरू की। फिर हासिल और मकबूल ने हिंदी सिनेमा को बताया कि एक अभिनेता आ चुका है जो चुप रहकर भी दर्शकों को रुला सकता है और उसकी आंखों की चमक भर लोगों के होठों पर हंसी ला सकती है।
इरफान ने बंबई में अपनी एक अलग छोटी सी दुनिया बनाई थी जिसे उनके करीबी निर्देशकों तिगमांशू धूलिया, विशाल भारद्वाज और बाद में शूजित सरकार जैसे लोगों ने एक शक्ल दी। इरफान को बंबई जैसे मेट्रो शहरों की लाइफ की समझ महेश भट्ट जैसे उस्तादों से मिली कि कैसे दो लाइन के नरेशन से फिल्म समझ आ सकती है। जिंदगी और करियर दोनों बदल देने वाली इरफान के करियर की फिल्म रही पान सिंह तोमर। इरफान को तिगमांशू ने दो लाइन में ही इसकी कहानी सुनाई थी, 'एक एथलीट था जो डकैत बन गया, और जिसने नेशनल अवार्ड भी जीते।' बस! इत्ती सी ही कहानी इरफान की भी है, 'एक एक्टर था, जो स्टार बन गया और जिसने नेशनल अवार्ड भी जीते।'