यादें: 'इरफान खान' बोलती आंखों ने ले ली विदा

विवादों और स्पर्धा में कभी नहीं पड़े इरफान व्यावसायिक सिनेमा की किसी स्पर्धा में नहीं रहे। किसी विवाद का हिस्सा नहीं बने। वह निर्देशकों के प्रिय अभिनेता रहे। व्यावसायिक सिनेमा के बड़े सितारों के साथ काम करते हुए भी वह अपनी क्षमताओं और रेंज को लेकर आश्वस्त रहे। यही कारण है कि अमिताभ बच्चन से लेकर सनी देओल के साथ काम करके भी वह प्रबल उपस्थिति रेखांकित करने में सफल रहे हैं। 'द क्लाउड डोर', 'प्रथा', 'चरस', 'लाइफ इन मेट्रो', 'द नेमसेक', 'स्लमडॉग मिलिनेयर', 'बिल्लू', 'ये साली जिन्दगी', 'सात खून माफ' जैसी फिल्मों में खुद को साबित किया। 'पान सिंह तोमर की बड़ी सफलता के बाद भी जमीन से जुड़े कलाकार बने रहे। फिर 'साहेब बीवी और गैंगस्टार रिटर्न', 'डी डे', 'जज्बा' लाइफ ऑफ पाई जैसी फिल्में कीं। इरफान 'द लंचबॉक्स', 'हैदर', 'पीकू', 'मदारी', 'हिन्दी मीडियम', 'करीब करीब सिंगल' और बीते माह की 'अंग्रेजी मीडियम' से िदलोदिमाग पर छा गए। उन्होंने छोटे पर्दे पर कई यादगार कार्यक्रम किए।बीमारी से वाॅरियर की तरह लड़ की वापसी दो साल से अधिक समय वह बीमार रहे। दो साल दूर रहकर फिर सीधे अंग्रेजी मीडियम के माध्यम से ही मिले लेकिन लॉकडाउन से फिल्म दो सप्ताह सिनेमाघर में रह पाई व सिनेमाघर बंद हो गए। मां को बहुत खुशी देने की थी चाहत 'हर घर कुछ कहता है' कार्यक्रम में एक जगह मां पर वह कहते हैं, मैं उनको बहुत खुशी देना चाहता हूं, लेकिन उनसे ज्यादा पटी नहीं। कुछ न कुछ ऐसा हो जाता था कि वह नाराज हो जातीं। जबकि नानी से मेरा बहुत लगाव रहा, मैं उनके साथ बहुत रहा,वह मुझे प्यार भी करती रहीं। चार दिन पहले मां, इरफान से पहले चली गईं। और अब इरफान का जाना ! इस कठिन मौके पर याद आती है फिल्म 'दो बीघा जमीन' में मन्ना डे का गाया हुआ एक गीत अपनी कहानी छोड़ जा, कुछ तो निशानी छोड़ जा, कौन कहे इस ओर, तू फिर आये न आये........नमन।शकल सूरत की वजह से हिंदी सिनेमा में दुत्कारे गए थे इरफान, उन्हीं को मिला सिडक्शन एक्टर का अवार्ड

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