इस पंजाबी कविता का हिंदी अनुवाद प्रशांत ने किया है। जसबीर ने कविता के पंजाबी संस्करण को अपनी आवाज दी है। यह कविता लोगों से प्रकृति के प्रति उनके लापरवाह रवैये के बारे में सोचने का आग्रह करती है।
इस बारे में मनोज ने कहा, "मनुष्य ने खुद को बचाने के लिए मारना सीखा और कठोर मौसम को अपने अनुकूल बनाया। लेकिन जीवित रहने के क्रूर दौड़ में उसने अनजाने में इस धरती से अपने संबंधों को तोड़ दिया है, वह आसानी से यह भूल जाता है कि उसने क्या छोड़ा है। यह समय मां प्रकृति के ठीक होने का है।"
जसबीर ने साझा किया कि "इस खूबसूरत, शानदार धरती पर हमारे समय की शुरुआत के बाद से मनुष्यों ने जो भी चाहा, वह ले लिया और इस बात को भूल गए कि उन्होंने अपने पीछे क्या छोड़ दिया।"
इस कविता को जे जे म्यूजिक्स पर रिलीज किया गया है।
--आईएएनएस