बॉल-टैंपरिंग के नियमों को लेकर क्रिकेट जगत में नई बहस शुरू

जब से यह खबर आई है कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल ICC बॉल-टैंपरिंग के नियमों में बदलाव और गेंद को चमकाने के लिए बाहरी पदार्थ का इस्तेमाल करने की इजाजत दे सकती है, क्रिकेट जगत में एक नई बहस शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि अगर ऐसा हुआ तो क्रिकेट पहले की तरह नहीं रह जाएगा। दरअसल, ICC की मेडिकल कमेटी ने यह सलाह दी थी कि गेंद को चमकाने के लिए स्लाइवा या पसीना इस्तेमाल करने से कोरोनावायरस वैश्विक महामारी का खतरा बढ़ सकता है। गेंद को चमकाने टेस्ट क्रिकेट का अहम हिस्सा है, इसमें गेंदबाजों को पुरानी गेंद से मूवमेंट हासिल करने में मदद मिलती है। यह मूवमेंट ही उन्हें खेल में बनाए रखती है। गेंदबाज आमतौर पर गेंद को एक तरफ से चमकाते हैं और दूसरी साइड को पुराना होने देते हैं। इससे वह गेंद से रिवर्स स्विंग हासिल कर पाते हैं। भारतीय टीम के पूर्व तेज गेंदबाज मनोज प्रभाकर जो रिवर्स स्विंग का बहुत अच्छा इस्तेमाल करते थे, ने कहा वह बाहरी पदार्थ के जरिए गेंद को चमकाने के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि खेल में गेंदबाजों की उपयोगिता बनाए रखने का यह एकमात्र तरीका है। उन्होंने कहा, 'अगर बॉल को शाइन नहीं कर पाएंगे तो मेरे जैसे गेंदबाज क्या करेंगे? अगर आप स्लाइवा या पसीना इसलिए इस्तेमाल नहीं कर सकते क्योंकि वह खतरनाक है तो कोई और तरीका निकालना होगा। गेंद को चमकाए बिना तो गेंदबाजों के सामने आत्मसमर्पण के सिवाए कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा। गेंदबाजों को मदद करने के लिए कोई तरीका तो होना ही चाहिए।' प्रभाकर ने कहा, 'ICC को एक- दो पदार्थों को देखना चाहिए और फिर उनका इस्तेमाल करना चाहिए। नहीं तो मीडियम-पेसर गेंदबाजों का तो खास तौर पर कोई भविष्य नहीं रह जाएगा। खेल में सभी बदलाव बल्लेबाजों को ध्यान में रखकर ही किए जाते है।' उनके मुताबिक बिना चिपचिप करने वाला तेल एक विकल्प हो सकता है। उन्होंने आगे कहा, 'वैसलीन या मिंट जैसी चीजें पहले भी इस्तेमाल होती रही हैं लेकिन ये सही नहीं हैं।' हालांकि टीम इंडिया के पूर्व तेज गेंदबाज और जाने-माने कोच टीए शेखर की राय इस पर कुछ अलग है। चेन्नै के रहने वाले शेखर का मानना है कि जब तक वायरस लगभग खत्म नहीं हो जाता क्रिकेट शुरू नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह भी चिंता जाहिर की खिलाड़ियों को गेंद चमकाने से स्लाइवा या पसीना इस्तेमाल करने से रोकना भी मुश्किल होगा। उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि क्रिकेट जल्दी शुरू हो रहा है। जहां तक गेंद पर स्लाइवा या पसीना इस्तेमाल करने की बात है इस पर नजर रखना बहुत मुश्किल है। क्रिकेटर्स के लिए यह नेचुरल सी बात है। क्या हो अगर कोई गलती से ऐसा कर दे? क्या आप तब हर बार गेंद बदलेंगे? इससे खिलाड़ियों पर भी बुरा असर पड़ेगा।' बॉल टैंपरिंग अभी तक प्रतिबंधित है लेकिन हम अतीत में ऐसी कई घटनाएं देख चुके हैं जब टीमें ऐसा करने की दोषी पाई गई हैं। हालिया उदाहरण मार्च 2018 का है जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने गेंद की सतह को पुराना करने के लिए सैंडपेपर का इस्तेमाल किया था। इसके बाद स्टीव स्मिथ, डेविड वॉर्नर और कैमरन बैनक्रॉफ्ट पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद पैदा हुए गुस्से ने बॉल टैंपरिंग के प्रति लोगों के नजरिए को भी सामने रखा। अगर आईसीसी बाहरी पदार्थ लगाने की इजाजत दे भी देती है तो प्रभाकर को लगता है कि गेंद को स्विंग करवाना एक कला है। उन्होंने कहा, 'रिवर्स स्विंग और परंपरागत स्विंग करवाने की कला को महत्ता नहीं दी जाती। अगर बाहरी पदार्थ लगाने की इजाजत दे भी दी जाए तो भी हर कोई गेंद को स्विंग नहीं करा सकता। इसमें काफी हुनर लगता है।' -एजेंसियां

अन्य समाचार