वैसे तो बात एक फिल्म के संवाद के तौर पर ही कही गई लेकिन सुपरस्टार श्रीदेवी के हिंदी सिनेमा के किसी कलाकार की पत्नी बनने की बात ऋतिक रोशन ने पहली बार फिल्म भगवान दादा में जिस अंदाज में कही, वह आज तक सबको याद है। ऋतिक तब सिर्फ 12 साल के थे। नाना की फिल्म थी। पापा हीरो थे और साथ में थे साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत। रजनीकांत की तब तक दो फिल्में, अंधा कानून और गिरफ्तार हिंदी में सुपरहिट हो चुकी थीं। बाइस्कोप में आज हम बात करने जा रहे हैं, इन्हीं मेगास्टार रजनीकांत की एक हिंदी फिल्म भगवान दादा की जो रिलीज हुई थी 25 अप्रैल 1986 को।
ऋतिक रोशन ने जो डायलॉग फिल्म में श्रीदेवी को देखकर पर्दे पर मारा था, वह था, 'मेरे मुंह से निकली बात जरूर पूरी होती है। तुम चाची बनकर ही रहोगी।' फिल्म में ये सीन तब आता है जब वह अपने बापू (रजनीकांत) को ढूंढ़ते ढूंढ़ते घर आता है। बापू उसका बस्ती का दादा है। लोग उसे भगवान की तरह पूजते हैं और वह इसलिए क्योंकि भगवान दादा ने बस्ती को शंभू दादा के आतंक से मुक्ति दिलाई है। स्वरूप (राकेश रोशन) को भी इसी घर में पनाह मिलती है और बिजली (श्रीदेवी) को भी। ऋतिक फिल्म में गोविंदा के रोल में है, जो बिजली को स्वरूप की पत्नी समझ लेता है।
अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर फिल्म भगवान दादा की फोटो शेयर करते हुए ऋतिक रोशन ने श्रीदेवी के निधन पर लिखा था, 'मुझे उनसे प्यार था, मैं उन्हें इतना ज्यादा मानता था। मेरे जीवन का पहला एक्टिंग सीन उन्हीं के साथ था और मैं उस दिन बहुत नर्वस भी था। मुझे याद है कि मेरा हौसला बढ़ाने के लिए वह भी अपने हाथ ऐसे हिला रही थीं कि मुझे लगे वह मुझे देखकर नर्वस हैं और कांप रही हैं। ये देख सब हंस पड़े थे और वह तब तक हंसती रहीं जब तक कि शॉट ओके नहीं हो गया। मैं आपको कभी भूल नहीं पाऊंगा, मैम!'
तो फिल्म भगवान दादा की कहानी आगे बढ़ाने से पहले देख लेते हैं, श्रीदेवी और ऋतिक रोशन की कमाल की अदाकारी से लबरेज ये सीन: var embedId = {jw:[],yt:[],dm:[]};function pauseVideos(vid){var players=Object.keys(embedId); players.forEach(function (key){var ids=embedId[key]; switch (key){case "jw": ids.forEach(function (id){if (id !=vid){var player = jwplayer(id); if(player.getState() === "playing"){player.pause();}}}); break; case "yt": ids.forEach(function (id){if (id !=vid){id.pauseVideo();}}); break;case "dm": ids.forEach(function (id){if (id !=vid && !id.paused){id.pause();}}); break;}});}var ytOnLoadFn=[];function onYouTubePlayerAPIReady(){ytOnLoadFn.forEach(function(name){window[name]();});}function onYTEmbedLoad(ytp){embedId.yt.push(ytp);ytp.addEventListener("onStateChange", function(event){if(event.data === YT.PlayerState.PLAYING)pauseVideos(ytp);});}function pause(){pauseVideos()}var p; function ytlCyGszOGAS8(){p = new YT.Player("div_lCyGszOGAS8", {height: document.getElementById("div_lCyGszOGAS8").offsetWidth * (9/16),width: document.getElementById("div_lCyGszOGAS8").offsetWidth,videoId: "lCyGszOGAS8",playerVars:{'autoplay':1,'loop':1,'mute':1}});onYTEmbedLoad(p)}ytOnLoadFn.push("ytlCyGszOGAS8");if(!window.ytVideoAutoPlayed)setTimeout(function () {autoPlayYtVideo(p);}, 2000);if(NHCommand && NHCommand.getMainVideoId){document.getElementById(NHCommand.getMainVideoId()).style.display="none";}
भगवान दादा के बनने की कहानी भी दिलचस्प है। हुआ कुछ यूं कि इस फिल्म के निर्माता और अभिनेता राकेश रोशन हवाई जहाज से चेन्नई जा रहे थे श्रीदेवी को साइन करने। इसी दौरान जहाज में ही उन्हें मशहूर लेखक डॉ. राही मासूम रजा मिल गए। जहाज में बैठे बैठे और एक दूसरे से बातचीत करते करते राही साहब ने ये कहानी राकेश रोशन को सुनाई। राकेश रोशन जा तो रहे थे श्रीदेवी को एक सोलो फिल्म के लिए साइन करने, लेकिन वापस मुंबई लौटे तो भगवान दादा के लिए साइन करके। फिल्म को राकेश रोशन के ससुर जे ओम प्रकाश ने निर्देशित किया। ऋतिक, उनके पापा और उनके नाना यानी तीन पीढ़ियों वाली इस फिल्म के दौरान जे ओमप्रकाश बीमार भी पड़े और उस वक्त फिल्म के तमाम सीन राकेश रोशन ने खुद निर्देशित कर लिए।
फिल्म भगवान दादा में राकेश रोशन ने बतौर निर्माता जो भी गंवाया उसे सूद समेत उन्होंने उसे वसूल लिया बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म 'खुदगर्ज' से। 1987 में रिलीज हुई खुदगर्ज के साथ ही राकेश रोशन ने अपने प्रोडक्शन हाउस की फिल्मों से खुद को बतौर लीड हीरो भी हटा लिया। खुदगर्ज से लेकर काबिल तक राकेश रोशन ने अपनी हर फिल्म का नाम अंग्रेजी अक्षर के से रखा, ठीक वैसे ही जैसे उनके ससुर जे ओमप्रकाश अपनी सभी फिल्मों के नाम अंग्रेजी के अक्षर ए से शुरू करते रहे। फिल्म भगवान दादा का नाम भी उन्होंने अशोक दादा ही रखा था, बाद में राकेश रोशन ने इसका नाम भगवान दादा कर दिया।
फिल्म भगवान दादा से पहले जे ओमप्रकाश के निर्देशन में ही फिल्म 'आशा' और अपने पिता राकेश रोशन की फिल्म 'आपके दीवाने' में भी छोटे-मोटे किरदार कर चुके ऋतिक रोशन की बाल कलाकार के रूप में यह आखिरी फिल्म रही। इसके 14 साल बाद साल 2000 में फिल्म 'कहो ना प्यार है' से ऋतिक ने हिंदी सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत की और तब अमर उजाला ने एलान किया था, आ पहुंचा एक नया स्टार। फिल्म भगवान दादा आप सोनी लिव एप पर देख सकते हैं। यूट्यूब पर भी इसके तमाम अपलोड मौजूद हैं।(बाइस्कोप अमर उजाला डिजिटल का दैनिक कॉलम है जिसमें हम उस दिन रिलीज हुई किसी पुरानी फिल्म के बारे में चर्चा करते हैं)