टीकाकरण, किसी बीमारी से लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन को सुरक्षित बनाए जाने का माध्यम है। हर साल अप्रैल के आखिरी सप्ताह को विश्व टीकाकरण सप्ताह के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य टीकाकरण की सामूहिक कार्रवाई और उसके प्रति लोगों को जागरूक करना है। बीमारियों से बचाने के लिए भारत में सार्वभौमिक टीकाकरण, मिशन इंद्रधनुष जैसे कार्यक्रम चलाए जाते हैं। बढ़ते कोरोना वायरस संक्रमण के बीच दुनियाभर के वैज्ञानिक इसका टीका तैयार करने में लगे हैं। विश्व टीकाकरण सप्ताह की थीम वैक्सीन वर्क फॉर ऑल यानी सभी के लिए टीकाकरण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का उद्देश्य है कि इसके बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाई जाए कि टीके विकसित करने से लेकर टीकाकरण अभियान को सफल बनाने वाले सारे स्वास्थ्यकर्मी नायक की तरह हैं।
ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी वायरस ने दहशत फैलाई है। इससे पहले स्पेनिश फ्लू, स्वाइन फ्लू, सार्स, प्लेग जैसी महामारियां फैल चुकी हैं। बहुत सारी बीमारियों में शोध के बाद वैज्ञानिकों ने इनसे लड़ने वाले एंटी डाट्स और टीके तैयार किए हैं। कभी चेचक और पोलियो भी बड़ी महामारी होती थी, लेकिन अब इन बीमारियों की प्रभावी वैक्सीन तैयार हो चुकी है। यूनिवर्सल लेवल पर टीकाकरण होने के बाद से इन पर अंकुश लग चुका है। टीकाकरण के जरिए ही कई सारी महामारियों से लोगों को बचाया जा सका है।
आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है कि वैक्सीनेशन शब्द आखिर आया कहां से! दरअसल, यह शब्द लैटिन भाषा के वैक्सीनस से बना है, जिसका अर्थ होता गाय या उससे संबंधित होता है। डेयरी उद्योग में काम करने वाली महिलाओं पर प्रयोग के बाद ही टीके का ईजाद हो सका। 18वीं सदी में फ्रांस के महान माइक्रोबॉयोलाजिस्ट लुई पाश्चर ने जर्म थ्योरी ऑफ डिजीज दी और इसी बुनियाद पर उन्होंने चिकेन पॉक्स, कॉलरा, रैबीज और एंथ्रेक्स के टीके विकसित किए।
साल 1798 में ब्रिटिश चिकित्सक एडवर्ड जेनर ने चेचक का टीका विकसित किया था। दरअसल, उन्होंने डेयरी उद्योग में काम करने वाली महिलाओं पर शोध के दौरान वहां काम करने वाली महिलाएं काऊ पॉक्स से संक्रमित होती थीं, पर उन्हें चेचक नहीं होता। इसे साबित करने के लिए साल 1796 में उन्होंने 13 साल के किशोर के हाथ में चीरा लगाया और उसे काऊ पॉक्स से संक्रमित किया, उन्होंने पाया कि उसे चेचक नहीं हुआ। इसकी पुष्टि होने के बाद हर उन्होंने चेचक का टीका बनाया। उनके प्रयासों से ही असमय इस बीमारी के शिकार हो रहे लोगों को बचाने में सफलता मिली।
क्या आप जानते हैं टीकाकरण कैसे काम करता है! दरअसल, इंसान जिसके कारण वायरल रोगों का शिकार होते हैं, उस पैथोजेन को एंटीजेन कहा जाता है। एंटीजेन से लड़ने के लिए मानव शरीर एक खास किस्म का प्रोटीन बनाता है, जिसे एंटीबॉडी कहा जाता है। शुरुआत में शरीर में एंटीबॉडी के निर्माण की गति कम होती है। इंसानी शरीर में एंटीबॉडी बनने की दर और पैथोजेन के पुनर्उत्पादन की रफ्तार में जो जीतता है, वही विजयी होता है।
पैथोजेन की तुलना में इंसानी शरीर में एंटीबॉडी ज्यादा बनने की स्थिति में बीमार नहीं होते हैं। शरीर में एंटीबॉडी विकसित करने के लिए ही टीकाकरण किया जाता है। दरअसल, टीका इंसानी शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली को सक्रिय करने का काम करता है। जब बाहरी कोई बीमारी शरीर में घुसने की कोशिश करती है तो टीका उससे लड़ता है। ज्यादातर टीके वायरस जनित बीमारियों से निपटने के लिए ही तैयार होते हैं।