कहा जाता है कि संसार में सबसे अनूदित कृतियां दो ही हैं: बाइबिल और शेक्सपियर. याद आता है कि शायद आलोचक हैरल्ड ब्लूम ने एक पुस्तक लिखकर यह साबित करने की कोशिश की थी कि कम से कम पश्चिम में मानवीय की अवधारणा और संरचना शेक्सपियर की गढ़ी हुई है. शेक्सपियर का अनुवाद करने के लिए कई भाषाओं के महाकवि आकर्षित हुए हैं: रूसी बोरिस पास्तरनाक, फ्रेंच ईव बोनफुआ.
सोवियत व्यवस्था में जब पास्तरनाक सत्ता के कोपभाजन थे तब उन्होंने अपना जीवनयापन शेक्सपियर के अनुवाद करके ही किया था. पोलिश आलोचक आयन काट ने दो तानाशाहियों के तीख़े अनुभवों के बाद पाया था कि शेक्सपियर के ऐतिहासिक नाटक दरअसल सत्ता और तानाशाह सत्ता के चरित्र का पर्दाफ़ाश करने वाले राजनैतिक हस्तक्षेप हैं. अत्याचार, दुराचार, अकारण हत्यारापन, प्रेम, ईर्ष्या, द्वेष, मानवीय संबंधों के अंतर्विरोध और विडंबनाएं, मानवीय नियति और ट्रेजेडी आदि शेक्सपियर के यहां तीख़ी-चुभती-मर्मस्पर्शी-सहलाती-दुलारती मार्मिकता में बखाने, बताये और समझाए गए हैं. शेक्सपियर की रचनाओं के समग्र को पश्चिम का महाभारत कहा जा सकता है. महाभारत की ही तरह यह दावा भी शायद किया जा सकता है कि जो शेक्सपियर में नहीं वह पश्चिम में कहीं नहीं.
कुछ समय पहले शेक्सपियर पर दिल्ली में हुए एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन के एक सत्र में उनके अनुवाद पर विशेषज्ञों से कुछ विचारणीय सुनने को मिला. ऐसे बड़े कवि-नाटककार का अनुवाद करने की न तो एक विधि है, न ही एक शैली, न एक दृष्टि. उनके हर भाषा में तरह-तरह से अनुवाद हुए हैं. ऐसे अनुवाद भी बहुतेरे हैं जो प्रकाशित नहीं हुए पर खेले गये हैं. लेकिन इसमें अड़चनें भी कम नहीं रही हैं: भाषा की गछिन सघनताएं, सटीक संक्षेप, सांस्कृतिक रूप से अनजाने बिंब और अभिप्राय आदि. हर अनुवादक ने इनसे निपटने की कोशिश की है.
फिलिपीनो में शेक्सपियर के अनुवाद स्वाभाविक रूप से तुकांत हुए हैं. हिंदी में, जैसा कि हिंदी कवयित्री और अंग्रेज़ी विशेषज्ञ अनामिका ने बताया, भारतेंदु से लेकर बच्चन, अमृत राय और रघुवीर सहाय ने उनके अनुवाद किये हैं. पारसी रंगमंच के लिए उनके नाटकों के जो लोकप्रिय और अत्यंत भावुक रूपांतर किये गये थे - जैसे खूने-नाहक - वे अलग ही कोटि के थे. मुझे याद है कि उस समय एक समीक्षा में मैंने अमृत राय के 'हेमलेट' के हिंदी अनुवाद को चरित्रहीन भाषा का उदाहरण बताया था.
अनुवाद की प्रामाणिकता का प्रश्न हमेशा ही समस्यामूलक रहा है. विशेषज्ञ उसकी भूल-ग़लतियां निकाल सकते हैं पर इससे इनकार नहीं कर सकते कि संसार की सभी भाषाओं में, जिनमें जरा भी रंगमंच है, शेक्सपियर मौजूद हैं. और यह मौजूदगी अनुवादों के माध्यम से ही संभव हुई है. यह सामान्यीकरण किया जा सकता है कि जो जितना अनुवाद में है वही उतना संसार में है. इसका सबसे बड़ा और विश्वव्यापी उदाहरण शेक्सपियर हैं.