जैन धर्म में रामायण को पौमाचरिता कहा गया है. जैन रामायण में लंकेश यानि रावण का वध प्रभु श्रीराम नहीं बल्कि लक्ष्मण जी करते हैं. वहीं इस रामायण के अंत में भगवान राम को एक जैन मुनि के रूप में प्रदर्शित किया गया है. इस रामायण की भाषा प्राकृत है. जिसे विमलासूरी ने लिख है जो बहुत बड़े संत थे. इन्होंने जैन महाभारत भी लिखी थी. जानकार मानते हैं कि विमलासूरी ने तीसरी या चौथी शताब्दी में लेखन कार्य किया.
राम वनवास जैन रामायण के अनुसार कैकेयी ने राम को वनवास के लिए बाध्य नहीं किया.उन्हें भरत के मुनि बन जाने का भय था. इसी भय के कारण उन्हें विचार आया कि अगर भरत पर राज-पाठ की जिम्मेदारी भरत को दे दी गई तो वो जैन साधु बन सकते हैं. वहीं जब ये बात प्रभु राम का पता चली तो वो अपने मन से वनवास को चले गए.
बाली ने अपनाया जैन धर्म बाली प्रसंग जैन रामायण में अलग है. जैन रामायण के अनुसार बाली को हटाकर जब सुग्रीव को सिंहासन सौंपा गया तो बाली ने जैन धर्म अपना लिया.
रावण वध इस रामायण की खास बात ये है कि इसमें रावण का वध भगवान राम नहीं करते हैं बल्कि लक्ष्मण जी रावण का वध करते हैं. इस रामायण में रावण को एक न्यायप्रिय राजा के तौर पर बताया गया है, जो जैन धार्मिक स्थलों की रक्षा करता है. उसकी सिर्फ एक कमी बताई गई है. सीता हरण रावण का सबसे बड़ा दोष बताया गया है. लंका से विजय प्राप्त कर लौटने के बाद अयोध्या की गद्दी प्रभु राम को सौंप दी जाती है. बाद में जब लक्ष्मण की मृत्यु हो जाती है तो राम राज-पाठ त्यागकर जैन साधु बन जाते हैं.
Ramayan: मेघनाद की शक्ति को देख भगवान राम भी रह गए थे हतप्रभ, रखता था खतरनाक अस्त्र