फिल्मों की दुनिया एक ऐसी दुनिया है जिसमें मेहनत, जुनून, जज्बा और टैलेंट की जरूरत होती है। इन सबके अलावा फिल्म इंडस्ट्री किस्मत का भी खेल है, ये एक ऐसा सट्टा है जहां आप एक अभिनेता के तौर पर, निर्देशक के तौर पर या पर्दे के पीछे कितना भी बड़ा हाथ मार लो लेकिन जब तब आपकी मेहनत, टैलेंट और किस्मत तीनों एक साथ ना मिल जाएं तब तक आप वो मुकाम नहीं पा सकते जिसके आप हकदार होते हैं या जो आप पाना चाहते हैं। ऐसे कई अभिनेता होते हैं जो बड़ी से बड़ी फिल्म या बैनरतले अपने करियर की शुरुआत करते हैं लेकिन उनका सिक्का बॉलीवुड में उस तरह से नहीं चल पाता है। ऐसे ही एक अभिनेता के बारे में आपको बताते हैं। जिनमें एक अच्छा अभिनेता बनने के सभी गुण थे लेकिन शायद उनकी किस्मत का सिक्का कभी चल नहीं पाया।
ये अभिनेता थे हाल ही में दूरदर्शन पर दोबारा प्रसारित होने वाली रामानंद सागर की रामायण के 'मेघनाद'। जिनका असल नाम विजय अरोड़ा था। विजय अरोड़ा एक यंग, हैंडसम, टैलेंटिड एक्टर थे। विजय में हर वो गुण था जो एक अभिनेता में होना चाहिए। लेकिन उनकी किस्मत का पहिया चल ना सका और वो कभी भी टॉप हीरो की लिस्ट में शामिल नहीं हो पाए। 27 दिसंबर 1944 में गुजरात के गांधी धाम में पैदा हुए विजय आंखों में ढेर सारे सपने लिए मुंबई पहुंचे थे। लेकिन जीवन के अंतिम पड़ाव तक उन्हें एक बात का मलाल रहा कि कोई भी कमी ना होने के बावजूद वो क्यों टॉप के हीरो की गिनती में नहीं पहुंच सके?
विजय ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गुजरात में ही की थी। इसके बाद वो पुणे चले गए एक्टिंग सीखने के लिए। पुणे में विजय ने एक्टिंग में डिप्लोमा किया और निकल पड़े मायानगरी में अपने सपनों को पूरा करने। लेकिन कहा जाता है कि मुंबई मतलब स्ट्रगल, तो विजय भी लग पड़े स्ट्रगल करने में। 1972 में विजय का इंतजार खत्म हुआ और उन पर नजर पड़ी मशहूर निर्माता-निर्देशक बीआर इशारा की। बीआर इशारा ने विजय को पहला ब्रेक दिया। उनकी पहली फिल्म थी 'जरूरत'। फिल्म में जरीना वहाब विजय के साथ मुख्य किरदार में थीं। इस फिल्म से विजय ने शुरुआत तो कर दी थी हलांकि ये फिल्म खासा चल नहीं पाई। इसके बाद विजय की किस्मत पलटी और 1973 में उन्हें नासिर हुसैन की फिल्म 'यादों की बारात' में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में विजय के साथ अभिनेत्री जीनत अमान थीं।
इसके बाद विजय ने लगातार जया बच्चन, परवीन बाबी, आशा पारेख जैसी बड़ी-बड़ी हीरोइनों के साथ काम किया। लेकिन इसके बाद भी विजय को इंडस्ट्री में वो मुकाम कभी नहीं मिल पाया जो उन्हें मिलना चाहिए था। इसका मलाल उन्हें जिंदगीभर रहा। विजय का फिल्मी करियर महज पांच से छह साल तक का रहा था। इसके बाद उन्हें अच्छे रोल मिलना बंद हो गए। या यूं कहें कि इंडस्ट्री ने एक बेहतरीन अभिनेता को दरकिनार कर दिया। जीवन की गाड़ी को चलाने के लिए विजय को कुछ ना कुछ तो करना ही था। तो उन्होंने मुख्य किरदार की जगह कैरेक्टर रोल प्ले करना शुरू कर दिए।
विजय ने फिल्मों के साथ- साथ कई टेलीविजन धारावाहिक में भी काम किया। सन 1987 में आई रामानंद सागर निर्मित 'रामायण' में भी रावण के पुत्र मेघनाद (इंद्रजीत) की भूमिका निभाई थी। इस धारावाहिक में भी विजय के अभिनय की खूब सराहना की गई। इस धारावाहिक में अरुण गोविल ने भगवान श्रीराम का किरदान निभाया था, अभिनेत्री दीपिका चिखलिया ने माता सीता का तो वहीं अरविंद त्रिवेदी ने रावण का किरदार निभाया था। इन दिनों रामायण का प्रसारण एक बार फिर से शुरू हुआ जिसके चलते विजय के बारे में भी जानने की लोगों के अंदर उत्सुकता बढ़ गई।
बात करें विजय के निजी जीवन की तो विजय ने दिलबर के साथ शादी की थी। दिलबर पारसी परिवार से ताल्लुक रखती थीं। तो वहीं विजय भी पंजाबी परिवार से ताल्लुक रखते थे। विजय और दिलबर का एक बेटा भी है जिसका नाम फरहाद है। उम्र बढ़ने के साथ ही शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। ऐसे में उम्र के एक पड़ाव पर पहुंचकर विजय भी कैंसर जैसी भयावह बीमारी का शिकार हो गए और 2 फरवरी 2007 को विजय ने दुनिया को अलविदा कह दिया। वो कहते हैं कि विजय और पराजय हर व्यक्ति के नसीब में होती है। लेकिन विजय को शायद वो विजय कभी मिल ही नहीं पाई जिसके वो हकदार थे।