कोरोना वायरस: एसिम्प्टोमैटिक यानी बिना लक्षण वाले मरीजों का मिलना कितना खतरनाक?

दिल्ली में लॉकडाउन 2 में मिलने वाली छूट, फिलहाल नहीं मिल रही है। इसके पीछे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कई कारण गिनाए हैं। उनमें से एक है - दिल्ली में बिना लक्षण वाले कोरोना मरीजों का मिलना। जी हां, आपने सही पढ़ा। बिना लक्षण वाले कोरोना मरीज। ये वो मरीज हैं जिनमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं होता फिर भी ये कोरोना पॉजिटिव होते हैं।रविवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि ऐसे मरीजों ने उनकी चिंता और ज्यादा बढ़ा दी है। प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा, "दिल्ली ने कोरना टेस्ट ज्यादा करना शुरू किया है। एक दिन में हुए 736 टेस्ट रिपोर्ट में से 186 लोग कोरोना पॉजिटिव निकले। ये सभी 'एसिम्प्टोमैटिक' मामले हैं यानी इनमें कोरोना के कोई लक्षण मौजूद नहीं थे। किसी को बुखार, खासी, सांस की शिकायत नहीं थी। उनको पता ही नहीं था कि वो कोरोना लेकर घूम रहे हैं। ये और भी खतरनाक हैं। कोरोना फैल चुका है और किसी को पता भी नहीं चलता कि वो कोरोना के शिकार हो चुके हैं।"ऐसे मामले केवल दिल्ली ही नहीं देश के दूसरे राज्यों से भी सामने आ रहे हैं। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, असम, राजस्थान जैसे दूसरे राज्यों ने भी इस तरह के मामले सामने आने की बात स्वीकार की है। इस लिहाज से भारत में एसिम्प्टोमैटिक (बिना लक्षण) कोरोना मामले डाक्टरों के लिए नया सिर दर्द बन गए हैं।

संक्रमण कब-कब फैल सकता है? इसके बारे में ज्यादा जानकारी दें, उससे पहले ये जानना जरूरी है कि कोरोना संक्रमण किन रास्तों से फैल सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना संक्रमण फैलने के तीन रास्ते हो सकते हैं। सिम्प्टोमैटिक- वो लोग जिनमें कोरोना के लक्षण देखने को मिले और फिर उन्होंने दूसरों को इसे फैलाया। ये लोग लक्षण दिखने के पहले तीन दिन में लोगों को कोरोना फैला सकते हैं। प्री सिम्प्टोमैटिक - वायरस के संक्रणम फैलाने और लक्षण दिखने के बीच भी कोरोना का संक्रमण फैल सकता है। इसकी समय सीमा 14 दिन की होती है, जो इस वायरस का इंक्यूबेशन पीरियड भी है। इनमें सीधे तौर पर कोरोना के लक्षण नहीं दिखते। लेकिन हल्का बुखार, बदन दर्द जैसे लक्षण शुरुआती दिनों में दिखते हैं। एसिम्प्टोमैटिक - जिनमें किसी तरह के लक्षण नहीं होते लेकिन वो कोरोना पॉजिटिव होते हैं और संक्रमण फैला सकते है। दुनिया के बाकी देशों में भी एसिम्प्टोमैटिक मामले देखने को मिले हैं, लेकिन भारत में इनकी संख्या थोड़ी ज्यादा है।
ऐसे मरीज चुनौती क्यों है? बंगलूरू के राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के संस्थान के डॉ सी। नागराज का दावा है कि दुनिया भर में इस तरह के एसिम्प्टोमैटिक कोरोना पॉजिटिव मामले तकरीबन 50 फीसदी के आस-पास हैं। अपने संस्थान के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके यहां 12 मरीजों में से 5 एसिम्प्टोमैटिक मरीज हैं, यानी लगभग 40 फीसदी।डॉ. नागराज के मुताबिक इनमें से सबसे अहम बात जो गौर करने वाली है वो है इन मरीजों की उम्र। उनके पाँच में से तीन मरीज 30-40 साल की उम्र के हैं, चौथा मरीज 13 साल का है और पाँचवे मरीज की उम्र 50 से ऊपर की है। दिल्ली में पाए गए एसिम्प्टोमैटिक कोरोना मरीजों की उम्र की प्रोफाइल की जानकारी सामने नहीं आई है। हालांकि केन्द्र सरकार के मुताबिक एसिम्प्टोमैटिक कोरोना मरीजों की संख्या विश्व में बहुत ज्यादा नहीं है। लेकिन सरकार इसे चुनौती जरूर मानती है।केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के मुताबिक हमें इस तरह के मामलों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो लोग हॉटस्पॉट एरिया में रह रहे हैं और बुजुर्ग हैं, हाई रिस्क में हैं, उन्हें अपने टेस्ट कराने चाहिए। उसी तरह से जो लोग एसिम्प्टोमैटिक हैं लेकिन कोरोना पॉजिटिव लोगों के सम्पर्क में आए हैं, उन्हें खुद को सेल्फ आईसोलेट करना चाहिए। जरूरत पड़े तो हमसे सम्पर्क करें, उन्हें अस्पताल में रखने की जरूरत होगी तो हम वो भी सुविधा उन्हें देंगे।
भारत के लिए चिंता क्यों? डॉ. नागराज के मुताबिक भारत में युवा लोगों की जनसंख्या बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा है, और उन्हीं को कोरोना संक्रमण ज्यादा हो रहा है। यही वजह है कि भारत को इस नए ट्रेंड से चिंतित होने की जरूरत है। चार अप्रैल को केंद्र सरकार की तरफ से जारी आंकड़े के मुताबिक देश में 20 से 49 की उम्र के बीच के 41।9 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव हैं। 41 से 60 साल की उम्र वाले तकरीबन 32।8 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव हैं।इन आकड़ों से साफ है कि देश में युवा ही कोरोना के संक्रमण की चपेट में ज्यादा आ रहे हैं। डॉ. नागराज के मुताबिक इसके पीछे की एक वजह ये भी हो सकती है कि भारतीय की इम्यून सिस्टम दूसरे देश के नागरिकों के मुकाबले ज्यादा बेहतर है, इसलिए भारतीयों में कोरोना के लक्षण नहीं दिखते और फिर भी कोरोना के मरीज होते हैं।
डॉ. नागराज की इस बात से सवाई मानसिंह अस्पताल के एमएस डॉ एमएस मीणा भी इत्तेफाक रखते हैं। उनके मुताबिक भारतीयों का रहन-सहन, भोगौलिक स्थितियां इसके लिए जिम्मेदार है। हमारा प्रदेश गर्म है, हम गर्म खाना खाते हैं, गर्म पेय पीते हैं, इस वजह से हमारे यहां एसिम्प्टोमैटिक मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। उनके मुताबिक कोरोना वायरस हीट सेंसेटिव है।डॉ. मीणा का मानना है कि हमारे यहां युवाओं में ये बीमारी ज्यादा फैल रही है और लोग ज्यादा ठीक भी हो रहे हैं। ये सब इस बात का सबूत है कि भारतीयों का इम्यून सिस्टम ज्यादा बेहतर तरीके से काम करता है और इसलिए कोरोना से होने वाली मौत भी भारत में इस वक्त कम है।
एसिम्प्टोमैटिक मामले ज्यादा खतरनाक हैं बिना लक्षण वाले कोरोना मरीजो के लिए डॉ। मीणा 'दो मुंही' तलवार कहते हैं। उनके मुताबिक जब किसी मरीज में कोई लक्षण नहीं होगा, तो वो अपना टेस्ट भी नहीं कराएंगे, तो इन्हें पता ही नहीं चलेगा और ये कोरोना फैलाते चले जाएंगे।डॉ. मीणा का कहना है कि जो भी आदमी बाहर जाता है, उसे टेस्ट कराना चाहिए। जैसे ही लोगों को पता चलता है कि जिनके सम्पर्क में आए हैं वो कोरोना पॉजिटिव है, उनको खुद आगे आकर टेस्ट कराना चाहिए। डॉ. नागराज और डॉ. मीणा दोनों का कहना है कि रैपिड टेस्टिंग और पूल टेस्टिंग से ऐसे मामलों को पकड़ने में थोड़ी मदद जरूर मिलेगी। लेकिन युवा लोगों को भी खुद का ज्यादा ख्याल रखने की जरूरत हैं
क्या कहती है रिसर्च? मेडिकल जरनल नेचर मेडिसिन में 15 अप्रैल को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड19 का मरीज लक्षण दिखने के 2-3 दिन पहले ही लोगों को संक्रमित करना शुरू कर सकता है। उन्होंने 44 फीसदी मामलों में ऐसा पाया है। पहला लक्षण दिखने के बाद, दूसरों को संक्रमित करने की क्षमता भी पहले के मुकाबले कम होती है।नेचर मेडिसिन में प्रकाशित इस रिपोर्ट में 94 मरीजों के टेस्ट सैम्पल लिए गए थे। उन पर की गई शोध से ही उन्हें इस बात का पता चला। डॉ. नागराज के मुताबिक भारत को एसिम्प्टोमैटिक मामलों पर अपनी अलग रिसर्च भी करनी चाहिए ताकि इससे ठोस जानकारी निकाल कर उस पर सरकार अमल कर सके। इससे ये भी पता चल पाएगा, कि हमें कोरोना हॉटस्पॉट के बाहर भी ऐसे एसिम्प्टोमैटिक लोगों के टेस्ट करने की जरूरत है या नहीं।

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