Mahabharat 21 April Noon Episode 49 Written Live Updates: दुर्योधन ने फिर मारी चौसर में बाजी, वनवास पर जाएंगे पांडव भाई

देश में लगे लॉकडाउन के दौरान दूरदर्शन पर प्रचलित धार्मिक सीरियल ‘महाभारत’ का प्रसारण जारी है। दर्शक इस सीरियल को बहुत पसंद कर रहे हैं। अब तक आपने देखा कि अर्जुन ने पितामह से कहा कि मैं बदले की आग में जल रहा हूं। इस पर पितामह ने कहा कि ऐसा क्यों? महाराज ने तुम्हें सबकुछ तो लौटा दिया है। इस पर अर्जुन कहते हैं सब तो लौटा दिया, लेकिन द्रौपदी का मान नहीं लौटाया। ये कर्ज तभी उतरेगा जिस दिन हस्तिनापुर हमें गांधार नरेश, दुर्योधन, दुशासन का शव देगा।

अर्जुन की ये बातें सुनकर पितामह कहते हैं कि ऐसे में तुम्हें मेरा शव भी स्वीकार करना पड़ेगा। यह बात सुनकर अर्जुन चौंक जाते हैं और पूछते हैं कि तो क्या हम कुछ भी न करें। पितामह ने कहा कि आरोपों के चक्कर में मत पड़ो अर्जुन। प्रतिशोध से किसी का भला नहीं हुआ है। इंद्रप्रस्थ जाकर इस बारे में सोचो। दुख की बात तो यह कि मैं यह बात दुर्योधन से नहीं कह सकता हूं।
12:29- युधिष्ठर टेंशन में बैठे हैं। साथ में पांडव भाई भी हैं। युधिष्ठर पूछते हैं कि तुमने अपने केश खुले क्यों छोड़ दिए। द्रौपदी आती हैं और कहती हैं कि अब यह अपमानित केश खुले ही रहेंगे। जब-जब आप इन्हें खुला देखेंगे आपको दुशासन द्वारा किया गया मेरा अपमान याद आएगा। ऐसे में अपने भाइयों से युधिष्ठर कहते हैं कि वह द्रौपदी को समझाएं। लेकिन अर्जुन उलटा युधिष्ठर पर गुस्सा करते हैं और कहते हैं कि अब कुछ समझाने के लिए बचा नहीं है। द्रौपदी कहती हैं कि मैं तुम सबको कायर तो कह नहीं सकती लेकिन तुम्हें अपनी वीरता मुझे साबित करनी होगी। मैं चाहती हूं कि दुशासन की छाती का लहू तुम मेरे लिए लेकर आओ। और मुझसे अब हस्तिनापुर में सांस नहीं ली जा रही है। मुझे वापस ले चलो। युधिष्ठर उन्हें लेकर चलते ही हैं कि इतनी देर में दासी आती हैं और कहती हैं कि महाराज का संदेशा आया है वह आप सभी को द्यूतक्रीड़ा भवन में बुला रहे हैं। पांडव भाई युधिष्ठर से वचन मांगते हैं कि वह चौसर नहीं खेलेंगे। लेकिन युधिष्ठर नहीं मानते, कहते हैं कि अगर महाराज ने कहा तो मुझे खेलना पड़ेगा। वहीं, द्रौपदी किसी भी भाई और उन्हें दाव पर नहीं लगाने का वचन लेती हैं। युधिष्ठर उन्हें वचन दे देते हैं।
12:19- दुर्योधन ने भीष्म के सामने जो दो विकल्प रखे थे, वह अपने माता-पिता के सामने रखते हैं। दुर्योधन कहते हैं कि पिता श्री ने राज्य का विभाजन किया लेकिन उससे मेरे कलेजे को ठंडक नहीं मिली और मेरे मन में आग जल रही है। मैं युद्ध करना चाहता हूं। ऐसे में गांधारी दुर्योधन से पूछती हैं कि अपने भाइयों से तुम कैसे युद्ध करने का सोच सकते हो। दुर्योधन कहते हैं कि मैं इंद्रप्रस्थ पर आक्रमण करना चाहता हूं। अगर नहीं तो चौसर का खेल दोबारा खेलना चाहता हूं। मुझे युधिष्ठर से घृणा हो रही है और सोते-जागते मैं नफरत कर रहा हूं। वहीं गांधारी पूछती हैं कि क्या कोई तीसरा विकल्प नहीं। ऐसे में दुर्योधन कहते हैं कि है, वह यह कि मैं आत्महत्या कर लूं। यह सुनकर गांधारी परेशान हो जाती हैं।
12:18- धृतराष्ट्र को द्रौपदी संग हुए वाक्य के बारे में सोच-सोचकर नींद नहीं आ रही है। वह काफी परेशान हैं। ऐसे में गांधारी उन्हें समझाती हैं। धृतराष्ट्र जानते हैं कि द्रौपदी के मन में अब उनके लिए घृणा के अलावा कुछ बचा नहीं है। इतने में भीष्म और दुर्योधन धृतराष्ट्र से मिलने आ जाते हैं।
12:16- भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य दोनों ही आपस में बात कर रहे हैं। और युधिष्ठर संग द्रौपदी के साथ हुए वाक्य पर दुखी हो रहे हैं। इतनी देर में दुर्योधन, भीष्म से मिलने आते हैं। दुर्योधन कहते हैं कि मेरे पास दो विकल्प हैं। द्रौपदी मेरी दासी हो चुकी थी और उसपर मेरा अधिकार था लेकिन फिर भी मुझे द्रौपदी को क्यों नहीं सौंपा गया। आप मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं इंद्रप्रस्थ पर आक्रमण करूं। दूसरा विकल्प अगर पांडव भाई जीतते तो मैं 12वें बरस का वनवास और 13वें बरस का अज्ञातवास करूंगा और अगर मैं जीतता हूं तो वे 12 बरस का वनवास और 13वें बरस का अज्ञातवास करें। इन दोनों विकल्पों में से कौन सा विकल्प बेहतर रहेगा। युद्ध या द्यूत।
12:07- मामा शकुनि कहते हैं कि दुर्योधन ने तो सभी कुछ जीत लिया था लेकिन द्रौपदी ने आकर सभी बिगाड़ दिया। शकुनि एक बार फिर चौसर खेलने की अपनी राय रखते हैं। और दुर्योधन इंकार कर देते हैं कहते हैं कि पिता धृतराष्ट्र कभी नहीं मानेंगे। और इस गलती को दोबारा नहीं दोहराएंगे। इसके बाद शकुनि मामा कहते हैं कि मेरी बहन गांधारी की चिंता करो। दुर्योधन प्लान बनाते हैं कि युधिष्ठर के आक्रमण करने से पहले हमें उन पर आक्रमण करना पड़ेगा। वहीं शकुनि मामा दुर्योधन को सबसे पहले गांगा पुत्र भीष्म को चित करने के लिए कहते हैं और उनपर आक्रमण करने की सलाह देते हैं।
12:05- दुर्योधन ने जो कुछ जीता वह उनके हाथ से निकलता नजर आ रहा है। ऐसे में दुशासन और दुर्योधन दोनों ही नाराज हैं और गुस्से में बैठे हैं। दुर्योधन कहते हैं कि मेरे सीने में आग जल रही है। मामा शकुनि ने हमारे लिए जो कुछ जीता, युधिष्ठर इंद्रप्रस्थ सभी चीजों को लेकर वापस लौटने वाले हैं। ऐसे में हमारी जीत का भी कोई फायदा नहीं हुआ है। वहीं, मामा शकुनि दुर्योधन को धृतराष्ट्र के लिए भड़काते हैं और कहते हैं कि वह अपने पुत्र की जगह पांडू पुत्र को सभी कुछ देने में लगे हुए हैं।
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