कोरोना संकट के दौरान जब देश भर में सख्त रवैया के चलते लोग पुलिस के प्रति नाराजगी प्रकट करते दिखते हैं. ऐसे में एक ऐसी तस्वीर भी सामने आई है, जिसमें पुलिस की संवेदनशीलता दिखाई दी. रात के अंधेरे में एक शव के साथ शोक संतप्त परिजनों के प्रति एक पुलिस अधिकारी का मानवीय रूप देखने को मिला, जो कि काफी सराहा जा रहा है.
हालांकि इस मामले के जो 2 पहलू हैं उसमें एक तरफ पुलिस का समाज के प्रति मानवीय और संवेदनशील रूप दिखा. वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग का संवेदनहीन पहलू भी देखने को मिला. यह दोनों ही पहलू रात को उस समय सामने आए जब एक बुजुर्ग के शव को उसके परिजन हाथ ठेले पर ले जाने को मजबूर हो गए.
ईदगाह मोहल्ला निवासी दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव को हार्ट अटैक के बाद इलाज के लिए अशोकनगर के जिला अस्पताल में लाया गया था, जहां उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के बाद उनके दोनों लड़कों ने शव को घर ले जाने के लिए अस्पताल प्रशासन से वाहन की मांग की, मगर उन्हें वाहन उपलब्ध नहीं हो पाया. इसके बाद वह हाथ ठेले पर अपने पिता का शव खुद ही घर पर ले जाने को मजबूर हो गए.
यह असंवेदनशीलता है जिला अस्पताल की जहां एक शव को सम्मान के साथ घर तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं की जा सकी. वहीं जिला अस्पातल से दोनों बेटे जब अपने पिता का मृत शरीर हाथ ठेले पर ढोकर घर ले जा रहे थे, तभी गांधी पार्क पर रात में ड्यूटी कर रहे तहसीलदार इसरार खान और सब इंस्पेक्टर राम शर्मा ने इन्हें रोका. पुलिसकर्मियों ने पूरा मामला समझा और उसके बाद उन्होंने सिस्टम की खराबी के घाव पर संवेदना का मरहम लगाया. पुलिसकर्मियों ने तुरंत 100 डायल को बुलाया और सम्मान के साथ बुजुर्ग के शव को उसके घर पहुंचाया.
देर रात को सामने आई इस घटना ने कोरोना संकट के बीच की ऐसी दो तस्वीरें पेश की हैं, जब ना चाहते हुए भी अस्पताल की अव्यवस्था पर सवाल खड़ा करना पड़ रहा है. वहीं दिन-रात ड्यूटी कर रहे कुछ पुलिस अधिकारियों ने संवेदनशील होने का परिचय दे सरकारी तंत्र के प्रति लोगों के मन मे सन्तोष भी बनाये रखा. इस पूरे घटनाक्रम में एक बात तो सामने आ गई कि कोरोना संकट से जूझते हुए आम आदमी के प्रति दिन-रात ड्यूटी कर रहे ये अधिकारी-कर्मचारी न सिर्फ अपने कर्तव्य को निभा रहे बल्कि आमजन के दुख के समय में उनके प्रति संवेदनशीलता का परिचय भी दे रहे हैं.