शहरनामा ::: मधेपुरा :::

फोन भी नहीं उठाते साहब

वे बड़े साहबों में हैं। साहब हैं तो फोन उठाना शायद उनकी शान के खिलाफ वाली बात है। तभी तो अपने अधीनस्थ एक अधिकारी को फोन उठाने के लिए साथ रखते हैं। किसी को साहब से बात करनी हो तो पहले अधीनस्थ से बात करनी होती है। कई बार तो मीडिया कर्मियों को भी साहब से बात करने में दिक्कत होती है। एक दिन किसी बड़े मुद्दे को लेकर साहब को फोन किया गया। पहले की तरह अधीनस्थ पदाधिकारी ने फोन उठाया। उठाते ही बोले साहब नहीं मैं बोल रहा हूं, बताईए। अब उन्हें कौन बताए कि काम बड़े साहब से है तो वे क्या कर सकते हैं? खैर, उनसे इतना कहकर फोन रख दिया गया कि साहब फ्री हो तो बोल दीजिएगा। अब तो हर ओर यह चर्चा होने लगी है। अधिकारी भी कहने लगे हैं, वे लोग भी साहब के मोबाइल पर फोन लगाना कम कर दिए हैं।
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नेताजी खिसिया गए
कोरोना के संक्रमण काल में भी नेतागिरी का दौर जारी है। एक नेताजी हैं। वे अपने नाक पर मक्खी तक नहीं भिनभिनाने देते हैं। क्रीचदार कुर्ता पैजामा के लिए जिले में फेमस हैं। अब नेताजी है तो अपनी ब्रांडिंग करनी ही है। इस कोरोना काल में अपनी ब्रांडिग करने का मौका भी अच्छा है। आगे पटना पर भी निगाहें है। तो चल दिए अपने चारपहिया से गांव में कोरोना पर जागरुकता का संदेश देने। धूप में काला चश्मा और मुंह में पान गिलौरी करते पहुंचे एक टोला में। कोरोना को लेकर मॉस्क और साबुन बांटना था। अब लोगों को क्या पता कि ऊंचे वाले नेता हैं। जरूरतमंदों की हाथों से कपड़ा नेताजी का कुर्ता गंदा हो गया। इसके बाद नेताजी के आंखे ललिया गई। कुछ बोले नहीं पाए। तमतमाया चेहरा लेकर चार पहिया पर चढ़ गए। उसके बाद ड्राइवर को बोला चलो वापस इन मैले-कुचैले लोगों के बीच नहीं आना।
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नाम नहीं छापिएगा
सात मार्च को कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य सेवा का शुभारंभ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था। फिलहाल ओपीडी शुरू किया गया है। अस्पताल की स्थिति ठीक नहीं है। जब भी इसकी जानकारी अस्पताल प्रशासन से ली जाती है तो फोन पर कहा जाता है सब कुछ बताएंगे लेकिन नाम नहीं छापिएगा। इतनी हिदायत के बाद भी एक दिन अखबार में डॉक्टर साहब का नाम छप गया। अब वे परेशान। कहने लगे देखिए न नाम छप गया है। ऊपर से पूछेंगे। क्या बताएंगे। उस दिन तो किसी का फोन भी नहीं उठाया। दूसरे दिन से किसी पत्रकार के नंबर से फोन आने पर स्वीच ऑफ। अस्पताल के दूसरे साहब की भी यही स्थिति। दोनों एक-दूसरे पर कमी को टालते रहते हैं। ऐसे में बेहतर उम्मीद की आशा पर पानी फिर रहा। एक दिन दोनों साहब आपस में बतिया रहे थे। पत्रकार कब क्या पूछ दे, देखिए बचकर ही रहिएगा..।
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नेताजी को बुलानी पड़ी पुलिस
जिले भर में नेताजी का प्रभाव है। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन में अपने ही गांव के युवा नेताजी की बात नहीं सुन रहे थे। गांव के दर्जनों युवा तालाब में मछली मार रहे थे। नेताजी के बार-बार मना करने के बावजूद युवा उनकी बातों की अनदेखी कर रहे थे। यह नेताजी को नागावार गुजरी। तत्काल उन्होंने पुलिस को फोन लगाया। पुलिस ने पहुंचकर लोगों तालाब से निकलने को कहा। उसके बाद सभी को घर में रहने की हिदायत दी। पुलिस आने पर नेताजी ने भी युवाओं से कहा, बार-बार मना कर रहे थे, माने नहीं, अब जेल भेजवा दें? युवाओं ने तिरछी नजर से नेताजी को देखा लेकिन चुप थे, पुलिस का जो डर था। इधर नेताजी मन ही मन खुश थे। आखिर ऐसे नहीं तो वैसे। बात तो मनवा ही लिए। गांव के लोगों के बीच रूतबा और धाक भी अलग..।
Posted By: Jagran
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