सहरसा। पूर्व सांसद शरद यादव ने लोजद जिलाध्यक्ष धनिकलाल मुखिया के हवाले से बयान जारी कर कहा है कि लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में अटके श्रमिकों की चिता सरकार को नहीं है। सरकार संपन्न परिवारों के लोगों को विदेश से ला सकती है तो श्रमिकों को उनके घर क्यों नहीं पहुंचा सकती है। कुछ राज्य सरकारें अपने छात्रों और अन्य लोगों को बसों में ला रही है। लेकिन बिहार के श्रमिक की चिता सरकार को नहीं है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि बिहार के श्रमिक, छात्र कई जगहों पर फंसे हुए है। लेकिन बिहार सरकार ने अपने छात्रों और मजदूरों को लाने की व्यवस्था से इंकार कर दिया। बिहार के म•ादूर भाइयों और बहन, छात्रों के साथ भेदभाव हो रहा है इसकी जितनी भी निदा की जाय वह कम है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन लागू करने से भी स्थिति को नहीं संभाला जा रहा है। सरकार मानव जीवन के ऊपर राजनीति को प्राथमिकता दे रही है। प्रकृति ने हमें इस घातक वायरस से बचाने के लिए खुद को तैयार करने के लिए पर्याप्त समय दिया था। लेकिन भारत सरकार ने उस समय ठोस कदम नहीं उठाया। कहा कि उसी समय से विदेश से उतरने वाले सभी लोगों की जांच कर सरकार के नियंत्रण के तहत क्वारंटाइन में डाला गया होता तो आज यह मुश्किल पैदा नहीं होती। सरकार अपनी भूल को स्वीकार करने के बजाय इस देश के लोगों को बताएगी कि अन्य देशों की तुलना में यहां संक्रमित लोगों और मौतों की संख्या बहुत कम है। जबकि वास्तविकता यह है कि सरकार ने कोरोना के टेस्ट में फेल हो रही है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन पूरी तरह से अनियोजित था और बहुत पहले लगाया जाना चाहिए था। लेकिन सरकार ने राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं किया। कहा कि वर्तमान समय में इस देश के लोग जिस दर्दनाक समय से गुजर रहे हैं उसे देखते हुएए देश में हर चीज के पुनरुद्धार के लिए भारत सरकार को ठोस उपायों के साथ अग्रिम रूप से तैयार होना आवश्यक है। वैसे नहीं जैसे अनियोजित लॉकडाउन किया, नोटबंदी और जल्दबाजी में जीएसटी को लागू किया और देश की अर्थव्यवस्था को बिल्कुल बिठा दिया।
Posted By: Jagran
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