प्रशांत कुमार चटर्जी की किताब 'डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एंड इंडियन पॉलिटिक्स'में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लेकर महत्वपूर्ण और विस्तृत जानकारी दी गई है। आज इस ऐतिहासिक दस्तावेज को पढ़ा जाना अत्यंत आवश्यक है। आज ही के दिन यानि 19 अप्रैल को ब्रिटिश हुकूमत की सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाली नीतियों के प्रति मन में उठे विरोध के भाव ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को त्यागपत्र देने पर मजबूर कर दिया। लेकिन उन्होंने मुस्लिम लीग को बंगाल की सत्ता से किनारे करके अंग्रेजों की मंशा पर पानी फेरने का काम तो कर ही दिया था। बंगाल विभाजन के दौरान हिंदू अस्मिता की रक्षा में भी डॉ. मुखर्जी का योगदान बेहद अहम माना जाता है।
1941 में बंगाल को मुस्लिम लीग के चंगुल से मुक्त कराया
वर्ष 1937 से लेकर 1941 तक फजलुल हक और लीगी सरकार चली और इससे ब्रिटिश हुकूमत ने फूट डालो और राज करो की नीति को मुस्लिम लीग की आड़ में हवा दी लेकिन अपनी राजनीतिक सूझबूझ की बदौलत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1941 में बंगाल को मुस्लिम लीग के चंगुल से मुक्त कराया और फजलुल हक के साथ गठबंधन करके नई सरकार बनाई। इस सरकार में डॉ. मुखर्जी के प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह साझा सरकार 'श्यामा-हक कैबिनेट' के नाम से मशहूर हुई। इस सरकार में डॉ. मुखर्जी वित्तमंत्री बने थे। श्यामा प्रसाद ने नई सरकार के माध्यम से बंगाल को स्थिरता की स्थिति में लाने की दिशा में ठोस कदम उठाना शुरू किया तो यह बात ब्रिटिश हुकूमत को रास नहीं आई।
प्रशांत कुमार चटर्जी की किताब 'डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एंड इंडियन पॉलिटिक्स' (पृष्ठ संख्या 222 से 259) में उनके द्वारा बेहद कम समय में किए औद्योगिक विकास के कार्यो का विस्तार से उल्लेख है। छोटे से कार्यकाल में डॉ. मुखर्जी ने भावी भारत के औद्योगिक निर्माण की दिशा में जो बुनियाद रखी उसको लेकर किसी के मन में को संदेह नहीं होना चाहिए। भावी भारत के औद्योगिक निर्माण की जो कल्पना डॉ. मुखर्जी ने उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री रहते हुए की थी, उसके परिणामस्वरूप औद्योगिक विकास के क्षेत्र में देश ने कई प्रतिमान स्थापित किए। नीतिगत स्तर पर उनके द्वारा किए गए प्रयास भारत के औद्योगिक विकास में अहम कारक बनकर उभरे।
पूर्वी पाकिस्तान में बंगाल का पूरा हिस्सा जाने से रोक लिया था
हिंदुओं की ताकत को एकजुट करके डॉ. मुखर्जी ने पूर्वी पाकिस्तान में बंगाल का पूरा हिस्सा जाने से रोक लिया था। अगर डॉ. मुखर्जी नहीं होते तो आज पश्चिम बंगाल भी पूर्वी पाकिस्तान (उस दौरान के) का ही हिस्सा होता, लेकिन हिंदुओं के अधिकारों को लेकर वे अपनी मांग और आंदोलन पर अडिग रहे, लिहाजा बंगाल विभाजन संभव हो सका। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो स्वयं महात्मा गांधी एवं सरदार पटेल ने डॉ. मुखर्जी को तत्कालीन मंत्रिपरिषद में शामिल करने की सिफारिश की और नेहरू द्वारा डॉ. मुखर्जी को मंत्रिमंडल में लेना पड़ा। डॉ. मुखर्जी देश के प्रथम उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री बने। उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में उन्होंने कम समय में उल्लेखनीय कार्य किए।
उनके कार्यकाल में खादी ग्रामोद्योग की स्थापना उनके कार्यकाल में ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट बोर्ड, ऑल इंडिया हैंडलूम बोर्ड, खादी ग्रामोद्योग की स्थापना हुई थी। जुलाई 1948 में इंडस्टियल फिनांस कॉरपोरेशन की स्थापना हुई। डॉ. मुखर्जी के कार्यकाल में देश का पहला भारत निर्मित लोकोमोटिव एसेंबल्ड पार्ट इसी दौरान बना और चितरंजन लोकोमोटिव फैक्ट्री भी शुरू की गई। चटर्जी की किताब में इस बात का बड़े स्पष्ट शब्दों में जिक्र है कि भिलाई प्लांट, सिंदरी फर्टिलाइजर सहित कई और औद्योगिक कारखानों की परिकल्पना मंत्री रहते हुए डॉ. मुखर्जी ने की थी, जो बाद में पूरी भी हुईं। हालांकि कुछ साल बाद उन्होंने इस पद से भी इस्तीफा दे दिया।
लियाकत-नेहरू पैक्ट को वे हिंदुओं के साथ छलावा मानते थे दरअसल लियाकत-नेहरू पैक्ट को वे हिंदुओं के साथ छलावा मानते थे। नेहरू की नीतियों के विरोध में एक वैकल्पिक राजनीति की कुलबुलाहट डॉ. मुखर्जी के मन में हिलोरे मारने लगी थी। आरएसएस के तत्कालीन सर संघचालक गुरुजी से सलाह करने के बाद 21 अक्टूबर, 1951 को दिल्ली में एक छोटे से कार्यक्रम में भारतीय जनसंघ की नींव पड़ी और डॉ. मुखर्जी उसके पहले अध्यक्ष चुने गए। 1952 में देश में पहला आम चुनाव हुआ और जनसंघ तीन सीटें जीत पाने में कामयाब रहा। डॉ. मुखर्जी भी बंगाल से जीत कर लोकसभा में आए। वे सदन में नेहरू की नीतियों पर तीखा चोट करते थे। शायद अगर डॉ. मुखर्जी न होते तो एक स्वस्थ लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की अवधारणा की नींव नहीं रखी गई होती।
Literature Desk: updarpan.com