लॉकडाउन और कैरम
किसी न किसी कारण से वर्दी वाले साहब विवादों से घिरकर खुद से परेशानी मोल ले लेते हैं। एनएच किनारे की थानेदारी किस्मत वालों की मिलती है यह बात वे भी जानते हैं, लेकिन होशियार बनने के चक्कर में वे खुद फंस जाते हैं। कोरोना को लेकर लॉकडाउन है। इसका सख्ती से पालन कराने की जबावदेही सरकार ने पुलिस को दे रखी है। पर, वर्दी वाले इस साहब के क्षेत्र में पूरे दिन लोगों की आजादी है। इनकी जानकारी में लॉकडाउन का मतलब शाम छह बजे के बाद बाहर दिख रहे सभी लोगों, सब्जी विक्रेताओं को बाजार से खदेड़ देना है। इस बीच दिन में वे बाजार में ही कैरम खेलते थे। किसी ने कप्तान को इसकी शिकायत कर दी। कप्तान ने उन्हें डांट पिला दी। अब वे करें तो क्या करें! कहीं बोलें तो जगहंसाई होगी। पूरे दिन लॉक रहकर शाम में बाजार और एनएच पर डंडे भांजते हैं।
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दान करके भी बदनाम
वैश्विक महामारी कोरोना जहां जिदगी ले रही है वहीं आर्थिक व्यवस्था को पीछे धकेल दिया है। केंद्र एवं राज्य सरकारें संपन्न लोगों से आर्थिक मदद की गुहार लगा रही है। ऐसे मे गेरुआ वस्त्र वाले अपने नेताजी पीछे रहने वाले कहां थे। 51 हजार रुपये का चेक पीएम केयर्स के नाम से लिखकर फेसबुक सहित अन्य सोशल साइट्स पर डाल दिया। इसके बाद लोगों की ओर से बधाई आना का सिलसिला शुरू हो गया। इस बीच किसी की नजर पड़ी कि नेताजी ने चेक को पोस्ट करने से पहले उस पर अंकित अपने खाता नंबर को मिटा दिया था। लोग छोड़ने वाले कहां थे। लोगों के कमेंट आने लगे कि नेताजी ने फर्जी चेक जारी करके फेसबुक पर पोस्ट कर दिया है। इससे नेताजी की किरकिरी भी खूब होने लगी। अंत में नेताजी ने सफाई दी कि वे अपने खाता नंबर को सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे, इसलिए ऐसा किया।
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बढ़ रही चिता की लकीर
कोरोना ने चिता की लकीर लंबी कर दी है। लॉकडाउन के कारण योजनाओं का काम बंद है। कार्यालय का कामकाज भी सही से नहीं हो रहा है। बिल पास नहीं होने के कारण भुगतान की समस्या भी सामने है। शहर का चौक-चौराहा सूना है। कल तक जहां चौकड़ी लगती थी, विधानसभा पहुंचने की चाह रखने वालों की भी जमघट होती थी। आज वीरान है। दुकानें बंद है। चार चक्का वाहन से लेकर बाइक तक से सफर करने वाले भाई साहब अपने घर में कैद हैं। मुंह में पान दबाए स्थानीय निकाय से लोकसभा तक की चर्चा के साथ ही सार्वजनिक तौर पर अपनी अकूत संपत्ति को दरकिनार कर खुद को फकीर बतलाने वाले भाई साहब चितित हैं। चिता जायज भी है क्योंकि कामकाज बंद रहने से उनकी धन-संपत्ति स्थिर सी हो गई है। उसमें वृद्धि नहीं होने से उनकी नींद ही गायब है। कब लॉक डाउन हटे, इसका इंतजार है।
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माननीय की खोज जारी है
हर सप्ताह सरकारी गेस्ट हाउस की शोभा बढ़ाने वाले और लोगों की पीड़ा सुनकर त्वरित निदान करने का सपना दिखाने वाले माननीय की खोज जारी है। आपदा के समय में जिले के लोग माननीय की खोज आखिर क्यों न करें! सरकारी दस्तावेज बता रहे हैं कि माननीय काफी धनी हैं। लोगों की अपेक्षा तो रहेगी ही। धनी नहीं भी रहते तो उनको चुनने वाले लोगों के लिए विधाता तो हैं ही। राष्ट्रीय आपदा में भुखमरी के कगार पर पहुंचे कुछ असंगठित लोगों की अपेक्षा को गलत नहीं ठहराया जा सकता। सोशल साइट के माध्यम से जिले के लोग उनकी खोज कर रहे हैं पर वे कहीं दिख नहीं रहे हैं। अब लोगों की जुबान पर है कि आखिर किस दिन के लिए माननीय का चुनाव किया? वंचित लोगों के लिए सामूहिक रसोई घर का संचालन तो वे कर ही सकते थे, पर उन्हें तो करना कम बोलना अधिक आता है।
Posted By: Jagran
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