पी. चिदंबरम ने लॉकडाउन को बताया क्रूर लापरवाही
CMIE के मुताबिक भारत में बेरोजगारी दर पहुंची 23%
गरीबों को लॉकडाउन के दौरान आर्थिक मदद की मांग
नई दिल्ली: पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक हैं। चिदंबरम ने ट्वीट कर सरकार को आगाह किया कि 23% बेरोजगारी दर (CMIE) के बीच दिहाड़ी मजदूरों के हाथ खाली है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहीं कहीं सरकार को लॉकडॉउन की रणनीति में चूक की ओर इशारा किया। चिदंबरम के मुताबिक जो धनराशि सरकार गरीबों के खातों में डाल रही है वो नाकाफी है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम लॉकडाउन को लेकर केंद्र की मोदी सरकार की आलोचना करते रहे हैं। चिदंबरम ने ट्वीट कर सरकार से अपील की है कि जल्दी से जल्दी गरीबों को आर्थिक मदद पहुंचाने के उपाय किए जाएं।
इस कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामलों से ये तय लगता है कि भारत में लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने को लेकर सरकार विवश होगी। कांग्रेस पार्टी और बाकी विपक्षी नेताओं ने इस बार सरकार को चेताया है कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने के साथ ही मुकम्मल रणनीति भी होनी चाहिए। ताकि गरीबों और बेरोजगारों तक मुश्किल घड़ी में राहत तत्काल पहुंच सके।
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भारत के तमाम हिस्सों में कोरोना वायरस के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। मरीजों की संख्या जहां पांच हजार के पार चली गई है वहीं मरने वालों के तादाद में भी इजाफा हुआ है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबंरम ने अपने ट्वीट में लिखा, 'जैसा कि मैं लॉकडाउन की वकालत करने वाले पहले लोगों में था, मैं स्वागत करता हूं केंद्र सरकार का जो राज्यों से परामर्श कर रही है कि 14 अप्रैल के बाद लाकडाउन जारी रहना चाहिए या नहीं. उस प्रश्न का उत्तर व्यक्तिगत या क्षेत्रीय हितों पर आधारित नहीं हो सकता है. उत्तर केवल दो संख्याओं द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए - हर दिन पॉजिटिव मामलों में पूर्ण वृद्धि और कुल वृद्धि दर'.
पी. चिदंबरम ने साफ कहा कि लॉकडाउन की रणनीति में जो चीज गायब है वह गरीबों के हाथों में नकदी, गरीबों में बड़ा तबका ऐसा है जिसे सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है।
पूर्व वित्त मंत्री ने गरीबों को आर्थिक मदद देने की अपील की और कहा कि 23% बेरोजगारी दर (CMIE) और दैनिक मजदूरी या आय पर पड़े असर की वजह से, सरकार को तुरंत गरीबों को नकद सहायता करनी होगी। चिदंबरम ने तल्ख लहजे में सरकार की दयनीय और क्रूर लापरवाह दृष्टिकोण की आलोचना की जिसने गरीबों की कठिनाइयों को बढ़ाया है।