रामायण की एक कथा के अनुसार एक बार जगत माता जानकी सीता जी अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थीं।
उसी समय हनुमान जी आ गए और सीता जी को सिंदूर लगाते देखकर बोले, ''माता जी यह लाल द्रव्य जो आप मस्तक पर लगा रही हैं, यह क्या है और इसके लगाने से क्या होता है?''
श्री हनुमान जी का प्रश्र सुनकर सीता जी क्षण भर चुप रहीं और फिर बोलीं, ''यह सिंदूर है इसके लगाने से प्रभु दीर्घायु होते हैं और मुझसे सदैव प्रसन्न रहते हैं।''
चुटकी भर सिंदूर लगाने से प्रभु श्री रामचंद्र जी की दीर्घायु और प्रसन्नता की बात माता जानकी के मुख से सुनकर श्री हनुमान जी ने विचार किया कि जब थोड़ा-सा सिंदूर लगाने से प्रभु को लम्बी उम्र प्राप्त होती है तो क्यों न मैं अपने सम्पूर्ण शरीर में सिंदूर पोतकर प्रभु को अजर-अमर कर दूं और उन्होंने वैसा ही किया।
सम्पूर्ण तन में सिंदूर पोत कर वह दरबार में पहुंचे और श्री राम जी से कहने लगे, ''भगवन! प्रसन्न होइए।''
हनुमान जी का सिंदूर पुता शरीर देखकर श्री राम जी हंसने लगे और हंसते-हंसते बोले, ''वत्स! कैसी दशा बनाकर आए हो।''
तब हनुमान जी ने सारा वृत्तान्त बताया सारी बात सुनकर श्री राम जी अति प्रसन्न हुए और बोले, ''वत्स तुम जैसा मेरा भक्त अन्य कोई नहीं है।''
उन्होंने हनुमान जी को अमरत्व प्रदान किया तभी से हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाया जाता है।