पूर्णिया। बच्चे स्वभाव से चंचल और शरारती होते हैं उन्हे शांत रखना काफी मुश्किल होता है। इन दिनों कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन है और उनका खेलना, स्कूल जाना और यहां तक की बाहर निकलना तक बंद है। ऐसे में घर की चार दीवारी के अंदर बच्चों की शरारत काफी बढ़ गई है। कभी यह इतना बढ़ जाता है कि माता -पिता के लिए मुसीबत भी खड़ी कर देता है। इस बात की शिकायत अब अभिभावक भी कर रहे हैं। मधुबनी के महेश शर्मा को दो बच्चे हैं। दोनों चौथी और पांचवी कक्षा के छात्र है। अभी इतने भी समझदार नहीं कि सभी परिस्थिति को समझ लें और शांत रहें। इस दौरान बड़ों को अपने मनोस्थिति को संभालना मुश्किल होता है तो बच्चे तो बच्चे ही हैं। डॉक्टर के मुताबिक अवसाद बच्चों में भी हो सकता है। वह अपनी बात को अभिव्यक्त नहीं कर सकते हैं। चिड़चिड़ापन और गुस्से में समान को इधर-उधर फेंकना और बात नहीं मानना है। अनावश्यक जिद करना आदि ऐसे लक्षण है जिससे बच्चे के अवसाद या मानसिक परेशानी के संकेत को समझा जा सकता है। उनकी मनोस्थिति पर सदर अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. राजेश भारती ने कहा की इन दिनों बच्चों को अधिक केयर की आवश्यकता है। बच्चों के प्रति अभी बड़ों का व्यवहार काफी संयम और विवेकपूर्ण होनी चाहिए। अगर उस पर गुस्सा करेंगे या फिर मारपीट करेंगे तो सुधार होने की बजाय उल्टा वे प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं। ऐसे में यह समझने की आवश्यकता है कि उनको अपने मन की करने दें। डॉ. राजेश भारती का कहना है कि बच्चे जब बात-बात पर रोने लगे और चिल्लाने लगे तो समझना चाहिए वह अवसाद से पीड़ित है और वह परेशान है। इसमें चितिंत होने की आवश्यकता नहीं है। यह स्वभाविक है बस इसको समझदारी से डील करने की आवश्यकता है। उनके साथ खेलें उनके साथ थोड़ा वक्त व्यतीत करें। अगर बड़े तनावपूर्ण स्थिति में रहेंगे तो उसका असर बच्चों पर पड़ता है। बच्चे काफी संवेदनशील होते हैं। परिवेश का सबसे अधिक असर बच्चों पर ही पड़ता है। कोरोना संक्रमण को लेकर लगातार टीबी के माध्यम से एक तनावपूर्ण माहौल बना है।
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बच्चे नहीं समझ पा रहे स्थिति, घर का माहौल बनाएं खुशनुमा
बच्चों को लगता है आखिर हुआ क्या है। परिवार के बीच आपसी चर्चा का असर उनके दिमाग पर भी हो रहा है। ऐसे में स्वयं तनाव मुक्त रहें। परिवार का माहौल हल्का और खुशनुमा बनाए रखें। इसका सीधा असर बच्चों पर पड़ेगा। डॉ. भारती का कहना है कि अभी उन पर अनावश्यक कोर्स और पढ़ाई का दवाब बनाने की आवश्यकता नहीं है। अगर वे स्कूल नहीं जा रहे हैं और घर में शिक्षक नहीं आ रहे हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि सभी समय को जोड़कर उन पर पढ़ाने के लिए अतिरिक्त दवाब बनाया जाए। इस माहौल में ना ही यह व्यवहारिक है और ना ही उनके लिए यह संभव है। खास कर ऐसे छोटे-छोटे बच्चे जो इन सारी परिस्थिति को अभी उस रूप में नहीं समझ पा रहे हैं जिस तरह बड़े समझ रहे हैं।
माता-पिता बच्चों के साथ बातचीत कर उनकी जिज्ञासा को करें शांत
बेहतर यह होगा कि बच्चों के साथ माता पिता बातचीत करें। उनकी जिज्ञासा को शांत करें। वह जिस समय और जितना पढ़ना चाहें उतना ही पढ़ने दें। अधिक टोकाटाकी से बच्चे बिगड़ जाते हैं और फिर जिद करने लगते हैं। उन्हे अपनी दिनचर्या स्वयं तय करने दें। बात-बात पर या गलती करने पर हमेशा डांटना उचित नहीं है। डॉ. राजेश भारती का कहना है कि बच्चों को घर में एक अच्छा माहौल देने की कोशिश करें। बच्चे तंग और परेशान करना बंद कर देंगे।
Posted By: Jagran
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