क्या कोविड-19 का संक्रमण हवा में होता है? वैज्ञानिकों ने नतीजा निकाला है कि यह वायरस तीन घंटे तक हवा में जीवित रह सकता है. ऐसे में यह भी नतीजा निकाला गया कि हवा के जरिये यह दूसरे आदमी में फैल सकता है.
लेकिन दुनिया स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है. हाल में हुए कुछ नए अध्ययनों के आधार पर संगठन का मानना है कि यह हवा से नहीं फैलता. लेकिन उसने पूर्व के अपने दिशा-निर्देशों में अभी किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया है. अलबत्ता, कोविड मरीज के कमरे में इस वायरस की पहचान के लिए नये सिरे से अध्ययन की सिफारिश की है.
कोविड के हवा में फैलने को लेकर करीब 10 जरूरी अध्ययन अब तक सामने आ चुके हैं. डब्ल्यूएचओ इनकी निगरानी कर रहा है. इन अध्ययनों के आधार पर हाल में डब्ल्यूएचओ ने एक वैज्ञानिक शोधपत्र जारी किया है जो न्यू इग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है. पूर्व में चाइना में 75,465 लोगों पर हुए अध्ययन में भी दावा किया गया था कि बीमारी हवा से नहीं फैलती है.
ड्रॉपलेट से होने कि सम्भावना है संक्रमण
इसमें डब्ल्यूएचओ ने दो-तीन बातें साफ की हैं. एक, छींक या खांसने के दौरान ड्रापलेट (छोटी बूंद) से एक मीटर के दायरे में खड़े आदमी को संक्रमण होने कि सम्भावना है. ड्रापलेट का आकार 5-10 क्यूबिक मीटर होता है. ऐसे संक्रमण को हवा से फैलना नहीं कहते हैं. यदि ड्रापलेट का आकार पांच क्यूबिक मीटर से कम हो तो वह वायु कण बोला जाएगा जिससे होने वाले संक्रमण को हवा से होने वाला संक्रमण बोला जाएगा.
वायरस को तलाशने की कोशिश
डब्ल्यूएचओ के अनुसार ताजा अध्ययन में लैब परीक्षण में वायुकणों को मशीन से छिड़का गया व फिर उसमें कोविड वायरस को तलाश करने की प्रयास की गई, लेकिन इसमें वायरस नहीं मिला. डब्ल्यूएचओ ने बोला कि इस अध्ययन के नतीजे अहम तो हैं. लेकिन अंतिम नतीजे पर पहुंचने से पहले कोविड मरीज के कमरे में उपस्थित हवा में वायरस को तलाश किया जाना चाहिए.
संक्रमण से बचाव पर दिशानिर्देश
इस पर अलग से अध्ययन करने के बाद ही कोई नतीजा निकाला जा सकता है. डब्ल्यूएचओ ने वैसे हवा में इस बीमारी के फैलाव की आसार के मद्देनजर आवश्यक बचाव तरीका करने के दिशानिर्देश दे रखे हैं. संगठन ने संसार से बोला है कि मौजूदा दिशानिर्देश को जारी रखा जाए. हवा में फैलने को लेकर व अध्ययन के बाद ही इनमें किसी प्रकार के परिवर्तन पर विचार किया जा सकता है.