Lockdown बिहार को मिस कर रहे पंकज त्रिपाठी, बोले- मां-बाबूजी के साथ होता तो क्या बात होती

प्रभात रंजन, पटना। कोरोना के कारण पूरा देश लॉकडाउन हो गया है। ऐसा लग रहा है मानो जिंदगी ठहर सी गई है। हम जैसे लोग तो किसी प्रकार इस मुसीबत से उबर जाएं, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत उन लोगों की है जो दैनिक मजदूर हैं और अलग-अलग जगह पर फंसे हैं। उनका बुरा हाल है। हिंदी फिल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी का मानना है कि कोरोना के कारण व्यस्त जीवन पर मानो ब्रेक लग गया है।

परिवार के साथ समय गुजारने की अनुभूति अलग
पंकज कहते हैं कि भागदौड़ भरी जिंदगी में भविष्य की चिंता एक झटके में दूर हो गई। लाकडाउन अपने-आप को जानने का सबसे अच्छा अवसर है। कोरोना ने हमारी दिनचर्या को भी प्रभावित कर दिया है। अब रोज सुबह उठने के बाद थोड़ा-बहुत योग और प्राणायम जरूरी हो गया है। इससे दिल और दिमाग दोनों शांत होने लगा है। हल्के नाश्ते और घर परिवार वालों के साथ समय गुजारने की अनुभूति कुछ अलग हो रही है। फुर्सत के क्षणों में घर की छत से काफी देर तक समुद्र को निहारने के साथ डूबते सूर्य की लालिमा मन को सुकून दे रही है। रोज घंटों इसे निहारने में लगा हूं।
बहुत याद आ रही गांव की...
पंकज कहते हैं कि मुंबई जैसा ही दृश्य अपने गांव (गोपालगंज, बिहार) में दिखाई पड़ता है। इन दिनों गांव की बहुत याद आती है। काश आज गांव में माता-पिता के साथ समय गुजार पाता। हर दिन भगवान से प्रार्थना कर रहा हूं कि जल्द से जल्द कोरोना जैसी महामारी को दूर करें। ऐसे माहौल में गांव में रहने वाले दोस्त और संगे-संबंधियों की बहुत चिंता होती है। अपने मन को बहलाने के लिए कई प्रकार की पुस्तकों को पढऩे में लगा हूं।
संगीत के बिना जीवन अधूरा
पंकज बताते हैं कि वे ऑनलाइन नाल बजाने की कोशिश भी कर रहे हैं। बकौल पंकज, मेरा ऐसा मानना है कि संगीत लोगों को न केवल सुकून देता है बल्कि दिल और दिमाग को भी तरोताजा कर देता है। संगीत के बिना जीवन अधूरा है। लोग ऐसे समय अपने आप को व्यस्त रखने के लिए अपने शौक को पूरा करने में समय लगाएं। साथ ही अधिक से अधिक समय अपने परिवार को दें। थोड़ा-बहुत समय निकाल कर दोस्तों और अपने चाहने वालों से फोन और सोशल मीडिया के जरिए बात करता हूं, जिससे उनका भी मन लगा रहे।

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