भारत में वित्त वर्ष की शुरुआत एक अप्रैल से ही क्यों होती है?

'वित्त वर्ष की शुरुआत के पहले दिन ही मूर्ख दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि 31 मार्च को अपनी बारह महीनों की कमाई का हिसाब-किताब करके और उसका टैक्स चुकाकर हम सालभर के लिए मूर्ख बन चुके होते हैं और एक अप्रैल से अगले साल की तैयारी करने लगते हैं.' सरकार और टैक्स व्यवस्था पर यह चुटकी हर साल ही इन दिनों सुनने-पढ़ने को मिलती है. हालांकि इस मजे-मजाक से इतर यहां पर यह सवाल पूछा जा सकता है कि अगर नया साल जनवरी से शुरू होता है तो हम रुपए-पैसे का हिसाब भी साल के पहले दिन से क्यों नहीं रखते, या फिर यूं पूछें कि आखिर वित्त वर्ष (फाइनेंशियल इयर) को एक अप्रैल से शुरू करने के पीछे क्या कारण है? चलिए, सिर-पैर के सवाल में इस बार इसी सवाल का जवाब खोजते हैं.

भारत में फाइनेंशियल इयर पहली अप्रैल से शुरू होने की वजह हमारे इतिहास में छिपी है. यहां पर करीब डेढ़ सौ सालों तक अंग्रेजों का राज रहा है और उसका असर आज भी कई जगह हमारी व्यवस्था में दिखाई देता है. यह नियम भी अंग्रेजों के चले जाने के बाद बच गई अंग्रेजियत का हिस्सा है इसलिए यह जानना जरूरी है कि ब्रिटेन में वित्त वर्ष अप्रैल में क्यों शुरू होता है.
दरअसल अंग्रेज ग्रेगोरियन से पहले जूलियन कैलेंडर का इस्तेमाल करते थे. इन दोनों कैलेंडरों में दस दिन का अंतर होता है. जूलियन कैलेंडर में 25 मार्च, जो साल का आखिरी दिन होता है, ग्रेगोरियन के हिसाब से 4 अप्रैल की तारीख हो जाती है. इसका मतलब है कि जूलियन कैलेंडर में साल की पहली तारीख ग्रेगोरियन के हिसाब से पांच अप्रैल की तारीख है. इस तरह देखा जाए तो जूलियन कैलेंडर के मुताबिक ब्रिटिश साल के पहले दिन से ही अकाउंटिंग शुरू करते थे, लेकिन जब उन्होंने ग्रेगोरियन कैलेंडर अपना लिया तो उनका वित्तीय वर्ष भी चौथे महीने से शुरू होने लगा.
कुछ इतिहासकार बताते हैं कि ग्रेगोरियन कैलेंडर के पहले दिन यानी एक जनवरी से वित्त वर्ष शुरू करने का विचार भी शुरुआत में लोगों को आया लेकिन ऐसा करने पर उनके क्रिसमस और नए साल की छुट्टियां खराब होने का डर था. इसलिए इस विचार को छोड़ दिया गया. इस तरह यह कहा जा सकता है कि बाकी चीजों के लिए भले ही ब्रिटिश ग्रेगोरियन कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अकाउंटिंग के लिए अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, जूलियन कैलेंडर पर निर्भर हैं. औरएक समय उसका उपनिवेश होने के चलते भारत में भी यह व्यवस्था लागू की गई, जो आज तक कायम है.
इस व्यवस्था को हिंदू नव वर्ष से भी जोड़कर देखा जाता है. हिंदी कैलेंडर का पहला महीना चैत्र, मार्च या अप्रैल में पड़ता है. कुछ जानकारों के अनुसार जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई तो अंग्रेजों को इस बात का पता चला. फिर हुआ ये कि अपने व्यापार से भारतीयों को जोड़े रखने के साथ-साथ ब्रिटिश और भारतीय कैलेंडर की संगत बिठाने के लिए उन्होंने इसी समय को वित्त वर्ष की शुरुआत के लिए चुना. इस तरह अंग्रेजों ने हिंदू नव वर्ष के शुरुआती महीनों (चैत्र-वैशाख) में पड़ने वाली तारीख - एक अप्रैल - अकाउंटिंग शुरू करने के लिए निश्चित कर ली.
इसके अलावा भारतीय जलवायु भी इसकी एक वजह है. भारत में कृषि के मुख्य रूप से दो चक्र चलते हैं. कृषि के पहले चक्र में खरीफ और दूसरे में रबी की फसल उगाई जाती है. खरीफ की फसल की कटाई अक्टूबर-नवंबर में और रबी की फसल की कटाई मार्च-अप्रैल में की जाती है. कृषि प्रधान देश होने के चलते फसल काटने के बाद का ही वक्त ऐसा होता है जब किसानी और उससे जुड़े व्यापारियों-कारोबारियों के पास पैसा होता है और वे सरकार द्वारा लगाए कर चुका सकते हैं. अब चूंकि भारत उत्सव प्रधान देश भी है और हमारे यहां ज्यादातर बड़े त्यौहार अक्टूबर-नवंबर में ही पड़ते हैं इसलिए इस दौरान कर की मांग करना शासन के खिलाफ नाराजगी का सबब बन सकता है. इस तरह मार्च-अप्रैल का समय ही इसके लिए सबसे उपयुक्त साबित होता है. माना जाता है कि इस वजह से भी अंग्रेजों के लिए भारत में एक अप्रैल से वित्तीय वर्ष की शुरुआत करना सहूलियत भरा था.

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