कोरोना वायरस मिथक और सच्चाई: सोशल मीडिया पर वायरल मैसेज से न हों गुमराह, ये है सच्चाई

कोरोना वायरस के नाम पर सोशल मीडिया पर कई तरह की अफवाहें फैल रही है। इनसे लोग गुमराह हो रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) समय समय पर लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव और इसके लक्षण को लेकर सटीक जानकारी दे रहा है। यहां जानें कौन से मिथक इन दिनों लोगों के बीच फैले हुए हैं और क्या हकीकत है-

कोरोना वायरस सामान्य जुकाम का परिवर्तित रूप है। हकीकत : यह सही नहीं है। हां, कोविड-19 व दूसरे कोरोना वायरस में कुछ समानताएं जरूर हैं, जिनमें से चार प्रकार के कोरोना मनुष्यों में सामान्य जुकाम के लिए जिम्मेदार होते हैं। जबकि, कोविड-19 के आनुवंशिक गुण 90 फीसदी तक चमगादड़ों को संक्रमित करने वाले कोरोना वायरस जैसे हैं। कोविड-19 संक्रमण, मौसमी फ्लू से ज्यादा खतरनाक नहीं है। हकीकत : वैज्ञानिक फ्लू के वायरस के बारे में काफी जानते हैं। वहीं कोविड-19 एक नया वायरस है। हमें कोविड-19 और इससे होने वाली बीमारी के बारे में बहुत कम जानकारी है। मौसमी फ्लू से संक्रमित लोगों में मृत्यु दर लगभग 0.1 फीसदी है, जबकि कोरोना में मृत्यु दर चार प्रतिशत से ज्यादा है। इसलिए कोविड-19 ज्यादा खतरनाक है।
सभी दूरसंचार कंपनियां कोरोना के चलते 50 जीबी डेटा मुफ्त दे रही हैं हकीकत : यह सच नहीं है। लोगों को घर से काम करने में दिक्कत न हो, इसलिए कंपनियां अपने यूजर्स के लिए अधिक डेटा वाला सस्ता प्लान लाई हैं। लेकिन इस स्थिति का फायदा कुछ हैकर उठा रहे हैं। वे 50 जीबी फ्री डेटा वाला मैसेज वायरल कर रहे हैं, ताकि लोगों का अकाउंट हैक कर सकें।यह संक्रमण तब फैलना शुरू होता है जब व्यक्ति में लक्षण दिखने लगे हकीकत : एक नए अध्ययन का अनुमान है कि लगभग 10 फीसदी तक संक्रमण उन लोगों से भी फैला है, जिनमें कोविड-19 संक्रमण के कोई लक्षण नजर नहीं आए हैं। हालांकि, ये बीमारी तब ज्यादा संक्रामक हो जाती है, जब पीड़ित व्यक्ति में इसके लक्षण तीव्र होते हैं। शोध-पत्रों के अनुसार, प्रत्येक 10 लोगों में छह लोगों को जरूरी नहीं कि संक्रमण का एहसास हो।
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