साइंस की निगाह में 'मुर्दा' है कोरोना, फिर कैसे जिंदा होकर दुनिया को मार रहा ?



कोरोना वायरस को लेकर रोज नये किस्से कहानी सामने आ रहे हैं। तमाम फेक न्यूज आ रहे हैं। कोरोना वायरस है क्या और ये शरीर को कैसे नुकसान पहुंचाता है इस बारे में एम्स के चिकित्सक डॉ योगेश शुक्ला ने विस्तार से बताया। उनकी भाषा में सामान्य शब्दों में समझे तो वायरस निर्जीव होता है जिसमें खुद की संख्या बढ़ाने की क्षमता नहीं होती है। लेकिन किसी जीव के संपर्क में आकर तेजी से खुद की संख्या बढ़ाने लगता है। कोरोना वायरस बहुत खतरनाक नहीं है। इसका अधिकतम डेथ रेसियो 10 से 15 फीसदी है। अर्थात इस वायरस से पीडित 85 फीसदी लोग अपने से ठीक हो जाते हैं। डॉ योगेश बताते हैं कि कोरोना वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड औसतन 5 दिन का होता है। इन्क्यूबेशन पीरियड संक्रमण और लक्षण दिखने के बीच का वक़्त होता है। अर्थात वायरस अटैक होने के बाद मानव शरीर में इसके लक्षण पांच दिन बाद दिखने शुरू होते हैं।
कोरोना संक्रमित व्यक्ति में मिलने वाले लक्षण में बुखार, सूखी खांसी, बदन में दर्द, गले में खराश और सिर दर्द भी हो सकता है। कुछ मामलों में डायरिया की शिकायत भी पायी गई थी। कुछ केस में यह भी पाया गया है कि कोरोना पीड़ित को किसी भी चीज़ की गंध समझ नहीं आ रही थी। कई बार तो यह भी होता है कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित हो लेकिन उसमें कोई लक्षण नज़र ही नहीं आता और यह भी पता नहीं चलता कि वह संक्रमित है। जैसे की भोपाल के एक केस में हुआ। उसके बाद उसका नेत्रदान संभव नहीं हो सका। उन्होंने बताया क डब्लूएचओ संक्रमण के लक्षण की जो जानकारी दी है उसके अनुसार संक्रमित 88 फीसदी को बुखार, 68 फीसदी को खांसी और कफ, 38 फीसदी को थकान, 18 फीसदी को सांस लेने में तकलीफ, 14 फीसदी को शरीर और सिर में दर्द, 11 फीसदी को ठंड लगना और 4 फीसदी में डायरिया के लक्षण मिले हैं।
डॉ योगेश बताते हैं कि यह चर्चा भी आम है कि तापमान बढ़ने से वायरस का प्रकोप घटेगा। लेकिन अभी किसी क्लीनिकल रिसर्च में यह सिद्ध नहीं हो सका है। यह पता नहीं चल सका है कि गर्मी में यह वायरस क्या असर दिखाएगा। इसका संक्रमण कम हो जाएगा या यूं ही बना रहेगा। उन्होंने बताया कि कोरोना बहुत खतरनाक वायरस नहीं है। इसे DYr खतरनाक इसलिए माना गया है कि अभी तक इसकी कोई दवा या वैक्सीन नहीं खोजी जा सकी है। लिहाजा पीड़ित व्यक्ति का इलाज नहीं है।
डॉ योगेश ने बताया कि वायरस जीवन के ठीक पहले की उत्पत्ति है। यह जीव और निर्जीव के बीच की कड़ी है। अर्थात सृष्टि में जब पहला जीव बना होगा, उससे ठीक पहले की अवस्था है वायरस। जीव और निर्जीव में जो अंतर है उसमें जीव खुद से अपनी प्रतिलिपि बना सकता है लेकिन निर्जीव नहीं। जैसे वैक्टीरिया जीव होते हैं और ये खुद की प्रतिलिप तैयार कर सकते है लेकिन वायरस ऐसा नहीं कर सकते हैं। वायरस अनुकूल स्थितियों में हज़ारों सालों तक पड़ा रह सकता है तो प्रतिकूल स्थिति में वह पल भर में नष्ट हो जाता। लेकिन किसी जीव के संपर्क में आकर अपने को बढ़ाने लगता है।
वायरस दो प्रकार के जेनेटिक मटेरियल डीएनए या आरएनए से बनते हैं। डीएनए जीव है और आरएनए निर्जीव। कोरोना आरएनए वायरस है। शरीर में वायरस से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली होती है। जो श्वेत रक्त कणिका के रूप में जानी जाती है। ये वायरस को खुद को नष्ट करती है या फिर एन्टीबॉडी बनाकर नष्ट करती है। अगर कोई वायरस डीएनए वाला होता है तो वह शरीर के अंदर जाकर खुद को द्विगुणित करने लगता है। जिसकी पहचान शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कर लेती है और आसानी से खत्म कर देती है। लेकिन आरएनए वायरस खुद को नहीं बढ़ा सकता है। लिहाजा यह शरीर की कोशिका में प्रवेश करके उससे खुद को बढ़ाता है। ऐसे में प्रतिरक्षा प्रणाली उसे पहचाने में समय लेती है या पहचान नहीं पाती। क्योंकि उसे यह लगता है कि यह शरीर का ही एक हिस्सा है।
डॉ योगेश ने बताया कि कोरोना वायरस नाक, मुंह या आंख के माध्यम से प्रवेश करता है। यह वायरस प्रवेश के बाद गले तक पहुंचता है जहां से यह फेफड़े में पहुंच जाता है। फेफड़े में पहुंचने के बाद बाद यह वायरस श्वसन कोशिकाओं में मौजूद रिसेप्टर (एसीई 2) नामक प्रोटीन और एंजियोटेंसिन-कंवर्टिंग एंजाइम 2) से जुड़ता है। इस रिसेप्टर को सामान्य भाषा में कोशिका झिल्ली कहते हैं। इस प्रक्रिया में वायरस मानव कोशिका झिल्ली के साथ अपनी तैलीय बुलबुलेनुमा झिल्ली को जोड़ता है। इसके बाद तैलीय झिल्ली को फ्यूज कर मानव कोशिका को संक्रमित करता है। इस दौरान कोरोना वायरस आरएनए नामक आनुवांशिक पदार्थ मानव कोशिका में छोड़ देता है।
ऐसी वायरस प्रभावित श्वसन कोशिका अपनी सतह पर आए आरएनए को पढ़ती हैं। इस आरएनए में सकारात्मक सिग्नल देने के गुण होते हैं। जिसकी वजह से कोशिका इसे अपना मददगार समझती है और अपनी सतह में आए वायरस को नष्ट करने के लिए इस आरएनए की मदद से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाए रखने के लिये इसका कॉपी (प्रतिलिपि) बनाना शुरू कर देती है जो वायरस की कापी के रूप में बनता है। इस तरह कोशिका लगातार इसे बनाती जाती है और एक स्थित यह हो जाती है कि वह भर कर फट जाती है और ये वायरस अन्य कोशिका को संक्रमित करने लगता है साथ ही दूसरी ओर मानव कोशिकाएं तेजी से मृत होने लगती हैं। तेजी से मृत हो रही श्वसन कोशिकाएं कोशिकाओं के कारण शरीर को आक्सीजन मिलना कम होने लगता है। जिससे मनुष्य को सांस लेने के परेशानी होती है। इसके अलावा आरएनए के गुण के अनुरूप कोशिका प्रोटीन भी काफी मात्रा में बनाती है। जो म्यूकस के रूप में जमा होता रहता है।
वायरस की सबसे बड़ी खासियत खुद को बदलने की होती है। शरीर की कोशिका से बनने के कारण उसके गुणसूत्र बदल जाते हैं। वायरस में जो जैविक सामग्री होती है, वह एक ख़ास क्रम में ढली होती है। अगर उस क्रम का कोई एक हिस्सा ग़ायब हो गया या उसकी जगह कोई और जुड़ गया तो वायरस का रूप बदल जाता है। कोरोना वायरस भी इसी तरह का एक नया वायरस है। चार कोरोना वायरस इससे पहले मौजूद थे जो उतने हानिकारक नहीं हैं। उनका इलाज भी संभव है। लेकिन 2019 में उनमें से किसी एक कोरोना वायरस की जैविक सामग्री में से कुछ घटा या कुछ जुड़ा और वह ख़तरनाक नया कोरोना वायरस बन गया।
डॉ योगेश शुक्ला बताते हैं कि नया कोरोना वायरस उतना ख़तरनाक नहीं है जितना लगता है। नए कोरोना वायरस से संक्रमित 80% लोग बिना दवा के कुछ दिनों में आसानी से ठीक हो जाते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में कोरोना वायरस के जितने भी केस अब तक मिले हैं, उनमें मृतकों की संख्या 5% से ज़्यादा नहीं है। दूसरे शब्दों में 95% रोगी इस वायरस का शिकार होने के बाद भी ठीक हो रहे है।

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