सीतामढ़ी। चैत नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि स्वरूप की पूजा-अर्चना विधिपूर्वक की जाती है। देवी कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण यानी काले रंग का है, इसलिए इनको कालरात्रि कहा जाता है। आचार्य शिवशंकर झा ने बताया कि आदिशक्ति मां दुर्गा ने राक्षसों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए मां कालरात्रि को अपने तेज से उत्पन्न किया था। इनका स्वरूप विकराल, दुश्मनों में भय पैदा करने वाला और कृष्ण वर्ण का है। मां कालरात्रि का रंग गहरे काले रंग का है और केश खुले हुए हैं। वह गर्दभ पर सवार रहती हैं। उनकी चार भुजाएं हैं। उनके एक बाएं हाथ में कटार और दूसरे बाएं हाथ में लोहे का कांटा है। वहीं एक दायां हाथ अभय मुद्रा और दूसरा दायां हाथ वरद मुद्रा में रहता है। गले में माला है। आचार्य झा कहते हैं कि नवरात्र के सातवें दिन सुबह में स्नानादि से निवृत होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर मां कालरात्रि की विधि विधान से पूजा अर्चना करें। देवी को अक्षत्, धूप, गंध, रातरानी पुष्प और गुड़ का नैवेद्य आदि विधिपूर्वक अर्पित करें। मां कालरात्रि की पूजा से शुभ फल प्राप्त होता है। इस वजह से मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है। देवी को रातरानी का फूल प्रिय है, इसलिए पूजा में उनको यह फूल अर्पित करें। पूजा के बाद दुर्गा चालीसा और दुर्गा आरती अवश्यक करें। इससे आकस्मिक संकटों से मां कालरात्रि रक्षा करेंगी। मां कालरात्रि की आरती और पूजा के समय अपने सिर को खुला न रखें। पूजा के समय सिर पर साफ रूमाल आदि रख लें।