दुनियाभर के कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच कई देशों में लॉकडाउन घोषित है। भारत में भी 15 अप्रैल तक के लिए लॉकडाउन लगाया गया है। इस बीच केवल बहुत जरूरी सेवाओं को इससे छूट है। आईसीएमआर यानी भारतीय आयुर्विज्ञान शोध परिषद के मुताबिक कोरोना वायरस अभी देश में स्टेज-2 में है और इसे स्टेज-3 यानी सामुदायिक प्रसार (Community Transmission) से रोकने की दिशा में लॉकडाउन एक अहम कदम है। आज से करीब 100 साल पहले स्पेनिश फ्लू का कहर फैला था, उस समय लॉकडाउन महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ था। वैज्ञानिकों ने अपनी हालिया रिसर्च स्टडी में यह बात कही है। उन्होंने दावा किया है कि जिन शहरों ने पहले लॉकडाउन किया, वहां मरने वालों की संख्या कम रही।
अमेरिका स्थित लॉयोला विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ई पैम्बुसियन सहित वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि 1918-19 में जब स्पेनिश फ्लू की महामारी फैली थी तो इस दौरान भी लॉकडाउन जैसा अहम कदम उठाया गया था। जिन शहरों ने पहले ही क्वारंटीन जैसे एहतियाती कदम उठाए, वहां इस महामारी से मृत्यु दर कम रही। टीम ने इस नतीजे पर पहुंचने के लिए स्पेनिश फ्लू पर पहले हुए तीन रिसर्च पेपर की समीक्षा की।
स्पेनिश फ्लू की महामारी से दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी और करीब पांच करोड़ लोगों की मौत हुई थी। शोधकर्ताओं ने कहा कि उस दौरान स्कूलों को बंद करना, भीड़ एकत्र होने से रोकना, अनिवार्य रूप से मास्क पहनना, मरीजों को पृथक रखना और और साफ-सफाई जैसे उपाय विभिन्न शहरों में बीमारी को नियंत्रित करने में बहुत ही प्रभावी साबित हुए।
अमेरिकन सोसाइटी ऑफ साइटोपैथोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित इस शोध समीक्षा के मुताबिक अमेरिकी शहर सैन फ्रांसिस्को, सेंट लुइस, मिलवाकी और कंसास में मृत्यु दर में 30 से 50 फीसदी कमी रही। वहीं, उन शहरों में मौतें ज्यादा हुई, जहां पर बाद में लॉकडाउन किया गया या फिर बाद में बंदी जैसे एहतियाती कदम उठाए गए। स्टडी में वैज्ञानिकों ने पाया कि इन शहरों में मृत्यु दर देर से चरम पर पहुंचा। यह एहतियाती उपायों और मृत्यु दर में कमी के अंतरसंबंध को रेखांकित करता है। पैम्बुसियन ने कहा कि सख्त पृथक नीति यानी कम मृत्यु दर।
उस समय भी लोगों को थी शंका लॉयोला विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कहा कि मौजूदा कोरोना वायरस की महामारी की तरह ही वर्ष 1918-19 में कई लोगों ने सोचा कि सख्त कदम उचित नहीं है या इस समय प्रभावी नहीं है।पैम्बुसियन ने कहा कि एक आकलन के मुताबिक अमेरिका में स्पेनिश फ्लू से 6.75 लाख लोगों की मौत हुई। क्वारंटीन जैसी नीतियों के प्रभाव पर संदेह व्यक्त किया जाता है, लेकिन उन कदमों से दूरगामी प्रभाव देखने को मिले।
पैम्बुसियन ने कहा कि वर्ष 1918 में विश्वयुद्ध चल रहा था और बैरक में क्षमता से अधिक लोग थे, इसके साथ ही अधिकतर अमेरिकी गरीबी, कुपोषण और गंदगी में रह रहे थे। घर और समुदाय के स्तर पर भीड़ थी, लोगों को इसके लिए तैयार करने और फैसला लेने के लिए तब के नेताओं में क्षमता नहीं थी, चिकित्सा और नर्सिंग सेवा भी खराब थी। उन्होंने कहा कि हालांकि 100 वर्ष पहले के मुकाबले आज दुनिया काफी अलग है। फिर भी 1918-19 की महामारी के दौरान उठाए गए कदम हमें उम्मीद देते हैं कि मौजूदा उपायों से हम कोरोना वायरस के संक्रमण को नियंत्रित कर पाएंगे।