सहरसा। मैं गरीब आदमी हूं साहब, मुझे किसी का खौफ नहीं है, बाहर जाऊंगा तो बीमारी मार देगी, अंदर रहूंगा तो भूख। गुलजार की यह पंक्ति लॉकडाउन में गरीबों की दशा देखकर पूरी तरह युक्तिसंगत लगती है।
हमेशा गुलजार दिखनेवाले शहर के डीबीरोड में सड़क के सन्नाटे को चीरकर कुछ भिक्षुक रोजी की खोज में भटकते दिखे। शहर के पूर्वी भाग ठुट्ठी टोला में निवास करनेवाले भिक्षुक शैनी सादा अपनी कुष्ठपीड़ित पत्नी परबतिया को लकड़ी की गाड़ी को ठेलते हुए पांच किलोमीटर दूर शहर में भटक रहा है। बाजार की सभी दुकानें बंद हैं। अधिकांश लोगों के घर का दरवाजा भी बंद हैं। कोई भीख देनेवाला भी निकल नहीं रहा है। जब शैनी ने पूछा गया कि लोग संक्रमण और बीमारी के भय से घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं। ऐसे में आपलोग अपने घर से इतनी दूर क्यों भटक रहे हैं? तो उनका कहना है कि बाबू हमलोग तो पहले ही कुष्ठ जैसी बीमारी से ग्रसित हैं। कोई देखनेवाला नहीं है। सरकार के विकास की बह रही गंगा में अभी भी हमलोग भीख मांगकर जीवन बसर कर रहे हैं। न तो उनलोगों को आवास मिला, न राशन कार्ड और न ही जीने की अन्य कोई सुविधा। ऐसे में बीमारी तो उनलोगों को पहले से ही बीमारी धीरे- धीरे मार रहा है। ऐसे में वे घर में रहकर किसी बीमारी से बचने का इंतजार करेंगे। जब उनके कहा गया कि पटेल मैदान में गरीबों के लिए सामुदायिक किचन चल रहा था तो शैनी ने कहा कि उससे उनका कितना दिन काम चलेगा। सरकार जब कोई स्थायी प्रबंध कर ही नहीं रही है तो उन्हें अपनी इस आदत को बरकरार रखने में ही फायदा है। अगर सरकार और प्रशासन को हमारी चिता है, तो हमारा कोई स्थायी प्रबंध करें, नहीं तो हमलोग ऐसे ही भटककर कोरोना की जिद्द देखना चाहते हैं।
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Posted By: Jagran
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