दरभंगा । सूर्य की तपिश, कोरोना वायरस का खतरा और रोजगार बंद होने के बाद अपनों के बीच जाने की चाहत। इन सबके बीच जारी द्वंद के बीच जमीन का आदमी सूर्य की तेज किरणों से बेपरवाह अपनों के बीच चल पड़ा है। कंधे पर सामान का बोझ तन को पका देनेवाली धूप, घिस चुके चप्पल, जख्म खाते पांव रूकते नहीं।
रविवार को शहर के विभिन्न रास्तों पर लोगों की भीड़ जाती दिखी तो सब सकते में आ गए। पता चला पीठ में समा रहे पेट और सूखते होंठ लिए चल रहे ये लोग काम के लिए दूसरे प्रदेश गए थे। अब जबकि रोजगार के दरवाजे बंद हैं। कोरोना का खतरा है तो फिर घर वापसी ही एकमात्र विकल्प था।
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कोई सिलीगुडी से अररिया, किशनगंज से होते हुए अपने घर समस्तीपुर और बेगूसराय पहुंचने को बेताब तो किसी को कहीं और जाने की बेचैनी। लोग एक-दूसरे से पूछते और चलते मिले अब और कितने किमी का सफर शेष है। इस बीच जगह-जगह खाना-पानी की चिता भी लोगों को सता रही थी। लेकिन, खाने-पीने की दुकानें नहीं खुली रहने के कारण मन को सांत्वना देकर लोगों का हुजूम आगे बढ़ता रहा।
जगह-जगह पुलिस चेक पोस्ट पर लोगों को रोककर उनसे पूछताछ की जा रही थी। हालांकि, पूछताछ के बाद जैसे ही यह पता चलता था कि लोगों का हुजूम दूसरे जिले की ओर बढ़ रहा है, पुलिस वाले भी राहत की सांस लेते थे।
शहर के नाका नंबर छह पर वाराणसी से पैदल चलकर अपने गांव सीतामढ़ी के रीगा जा रही एक युवती रैन बसेरा खोजते नजर आई। हालांकि सड़कों पर लोगों के नहीं रहने से युवती को रैन बसेरा खोजने में काफी परेशानी हुई। देर शाम तक लोगों का अपने घरों की ओर जाने का सिलसिला जारी रहा। इधर बाघ मोड़ पर बेगुसराय के सोहन सिंह, समस्तीपुर के रोहन कामती, सोनू परदेशी आदि ने बताया कि रोजगार की तलाश में अपने से दूर चले गए थे। विपदा आई तो घर वालों की याद सताने लगी। लॉकडाउन के बाद परदेश में कोई अपना ना रहा। सभी ने हाथ खड़े कर दिए। घर लौटने के सिवा कोई दूसरा रास्ता ना बचा। घर की दूरी तय कर कई के चप्पल घिस गए, लेकिन मंजिल अभी भी कोसो दूर नजर आ रही है। मोबाइल ने भी साथ छोड़ दिया है। संपर्क का भी कोई स्त्रोत नहीं बचा हुआ है। रास्ते भर सही सलामत घर पहुंचने की आश ही मन में बची हुई है।
Posted By: Jagran
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