शहरनामा ::: अररिया :::

कोरोना तक घर में रहना

जिले में नेताओं की कमी नहीं। इनमें से आज एक की बात। नेताजी का सालों भर लोगों से मिलना-जुलना लगा रहता है। उन्हें डायबीटिज है। लोगों ने समझा दिया है कि कोरोना का खतरा सबसे अधिक बुजुर्ग और डायबीटिज वाले को है। जब से यह सुना है वे तब से घर के बालकोनी में भी नहीं निकल रहे। कोई मिलने पहुंचा तो साफ तौर पर खबर भेज देते हैं कि नेताजी घर में नहीं है। ऐसे में उनको एक साथ कई तरह का फायदा हो रहा है। एक तो सेहत भी ठीक है और कोरोना का खतरा भी नहीं है, दूसरे किसी को कोई पैसा भी नहीं देना पड़ रहा है। नेताजी का कहना है कि जनता ने चुना है सो लोग तो मिलने पहुंचेगा ही और ऐसे में बीमार होने का खतरा भी बढ़ेगा और पैसा भी लोग मांगेगे। इससे अच्छा कोरोना तक घर में ही कैद रहना बेहतर है।
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सहकर्मी को ही पीट दिया
लोगों के सेहत सुधारने वाले विभाग से जुड़े लोगों की बात है। सेहत सुधारने के दौरान अगर डंडा निकल जाए तो सुनने में थोड़ा अटपटा जरूर लगेगा। लेकिन कुछ ऐसा ही हुआ। सेहत सुधारते-सुधारते एक सफेद कोट वाले को एक आदमी ने सवाल दर सवाल करके परेशान कर दिया तो उन्होंने समाधान ढूंढ़ा। उसे समझाकर बड़े वाले सफेद कोट के पास भेज दिया। अधिक सवाल करने वाला यहां भी रेस। लगातार पूछे जा रहा था। इसी दौरान उसे मुंह से थूक का फव्वारा निकल गया। फिर क्या! उसका सवाल सुन सुनकर फ्यूज हो चुके बड़े सफेद कोर्ट ने आपा खो दिया। पहले तो थूक पड़ाने वाले का डंडे से पीटा और उसे भेजने वाले सहकर्मी को तीन-चार डंडा लगा दिया। अब तो दूसरे का दर्द ठीक करने वाले खुद आयोडेक्स मल रहे हैं और नौकरी छोड़ने तक की धमकी दे रहे हैं। अन्य कर्मी इसे हवा देने में लगे हैं।
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दोनों छुटभैया हुए बेरोजगार
दो छुटभैया नेताजी हैं। दोनों का काम है वाट्सएप ग्रुप पर जिले के अधिकारी व वर्दीवाले साहब की गुणगान। दोनों का टाइमिग भी सेट है पहले एक ग्रुप में डालकर वर्दीवाले साहब का गुणगान करता है। फिर महज एक मिनट के अंदर दूसरे नेताजी उसपर बहुत सराहनीय, बहुत अच्छा लिखकर साहब की चापलूसी करते हैं। यह कार्य लंबे समय से चल रहा है। अब कोरोना को लेकर उक्त साहब कोई ऐसा काम नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हर जगह कमान उनके बड़े साहब ही संभाले है। ऐसे में दोनों छुटभैया नेता बेरोजगार हो गए हैं। कोई कमेंट या मैसेज नहीं भेज रहे हैं। ऐसे में अब फेसबुक पर अपना ही पोस्ट डाल रहे हैं कि अब वे मानवहित के लिए ही विनती करने में लगे हुए हैं। लेकिन ऐसे में दोनों को भोजन ही नहीं पच रहा है, आखिर कोरोना ने उनकी चापलूसी को भी बंद करा दिया है।
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ऐन वक्त पर प्रभार खत्म
जिले के एक साहब हैं। उन्हें हाल में ही बड़े पद का प्रभार मिला। फिर क्या था। लगे मजे मारने। जल्द से जल्द फाइलों को निपटारा कर पॉकेट भी भरने में लग गए। उन्हें उम्मीद थी कि अब दो-चार महीने तो प्रभार में रहने का मजा मिल ही जाएगा। यही सोचकर दिन-रात एक कर दोनों हाथ से माल बटोरने में लगे थे। पिछले साहब ने अपनी ईमानदारी दिखाने में जिस फाइल को साइन नहीं किया था, सब धड़ाधड़ पास कर रहे थे। इसी बीच उनका प्रभार छिन गया। अब उनका चेहरा ेखने लायक हो गया है। अब तो ये डर सता रहा है कि उन्होंने जो काम किया है उसका कहीं भांडा न फूट जाए और अगर कहीं जांच हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। अब वे बड़े साहब के पास सटने में लगे हैं कि कहीं उनकी शिकायत वहां पहुंचे तो वो उसे वहीं से निपटा दें।
Posted By: Jagran
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