इंसानियत लापता हैं, मिले तो हिंदुस्तान के पते पर भेजना...

दिल्ली जल रही है, किसी की दुकान जली, तो किसी का मकां जला, किसी का लख्ते जिगर मरा तो किसी का लाडला और इन सबके बीच मरता रहा इंसान और मरती रही इंसानियत. मजहब और धर्म के नाम पर व्यस्ततम इलाके को सन्नाटे में बदल दिया गया. जो दिखा उसे गोली मार दी गयी. सरेराह कत्लेआम हुआ... लेकिन बचाने न तो पुलिस आई और न ही नेता.. देश की 100 करोड़ जनता ने क्या इसी हिंदुस्तान का सपना और अच्छे दिनों की ख्वाहिश की थी.? क्या यही है गुजरात मॉडल.? छोटे-छोटे सपनों में खुश होने वाले आम आदमी ने क्या देश में इसी गुजरात मॉडल को मांगा.? 2002 में गुजराती जिस दहशत और दर्द से गुजरे थे, वो दर्द तो दिल्ली वासियों ने मांगा नहीं था.! तो फिर यह दर्द उन्हें दिया गया.? 27 जिंदगियों के साथ न जाने कितने ही घरों में अंधेरा हो गया है. यह लोग कभी न भूल पाने वाली इस दहशत से कभी बाहर नहीं आ सकेंगे. इनके सामने यह सवाल हमेशा रहेगा कि कौन थे वो दहशतगर्द.? पड़ोस के हुसैन साहब तो नहीं थे.! न ही दूसरे पड़ोसी के शर्मा जी थे.! तो फिर कौन थे यह दहशतगर्द.?

कौन थे वो दहशतगर्द.? अब तो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तक विधानसभा में यह कह दिया कि दंगा करने वाले दहशतगर्द उन क्षेत्रों के वासी नहीं थे, जिन क्षेत्रों में दंगा हुआ. हथियारबंद दंगाई, दहशतगर्द बाहरी थे. इस योजनाबद्ध तरीके से फैलायी गयी दहशत और कत्लेआम के पीछे राजनीतिक लोग और असामाजिक तत्व थे. क्षेत्रीय लोग दंगे में शामिल नहीं हुए, क्षेत्रीय लोग तो इसका शिकार हुए हैं. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बात ने सवाल खड़ा कर दिया कि कौन राजनीतिक लोग थे इस योजनाबद्ध कत्लेआम में.? कौन थे वो दहशतगर्द.? क्या 2002 के दंगों की तरह इनकी भी कभी कोई पहचान हो सकेगी.? क्या मरे हुए 27 लोगों को कभी इंसाफ मिल पाएगा.? क्या उनके गुनहगारों को सजा तो दूर उनकी पहचान हो पाएगी.? सवाल है कि इतने हथियार कहां से लाकर युवाओं के हाथों में थमाए गए होंगे.? इस दहशत की तैयारी कितने दिनों से चल रही होगी.? इन दहशतगर्दों को तैयार करने में कितना समय लगा होगा.? इन्हें किसने और किसके कहने पर तैयार किया गया होगा.? क्या इसकी कभी कोई जांच होगी.?
क्यों पुलिस दहशतगर्दों का बचाव करती दिखी..? पुलिस अब तक 48 एफआईआर दर्ज कर 106 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है, लेकिन इस नफरत को फैलाने वालों के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद न तो एफआईआर दर्ज हुई, न ही गिरफ्तारी.! सवाल तो यह भी हैं कि आमजन में सुरक्षा का भाव देने वाली पुलिस आखिर क्यों हाथ बांध कर खड़ी रही.? सरेराह हो रहे कत्लेआम में दहशतगर्दों को पकड़ने के लिए पुलिस को कौन रोक रहा था.? करंट मारने जैसे बयान देने वाले गृहमंत्री ने उस वक्त कोई करंट पुलिस को क्यों नहीं दिया कि वह सक्रिय हो जाती.? 2002 में हुए गुजरात दंगों में सरेराह कत्लेआम हुआ था. 2000 से ज्यादा लोगों की जानें गयी थीं और सैकड़ो लापता और हजारों घायल हुए थे. उस समय गुजरात मुख्यमंत्री वर्तमान देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी थे. आरोप लगे थे कि उस समय दंगे करवाए गए थे, उस समय भी दहशतगर्द स्थानीय न होकर बाहरी थे और पुलिस को दंगे नहीं रोकने के निर्देश थे..! तो क्या ऐसे ही आदेश दिल्ली दंगों में पुलिस को मिले थे.? आखिर क्यों पुलिस ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया.? क्यों वह दहशतगर्दों के पीछे उनका बचाव करती नजर आयी.? इस नफरत-दहशत के खिलाफ न्यायपालिका ने कर्तव्य निभाने का प्रयास किया और नफरत फैलाने वालों के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दिया तो क्यों हाईकोर्ट के न्यायाधीश एस.मुरलीधर का तबादला कर दिया गया.
आपने नफरत को पनाह दी.! आपके घरों पर भी दस्तक दे सकती है यह दहशत पिछले महीनों प्रधानमंत्री मोदी को बतौर तत्कालीन मुख्यमंत्री साल 2002 के गुजरात दंगों के लिए तो क्लीन चिट मिल गयी, लेकिन अब इन दंगों की जांच भी होगी क्या.? पुलिस तो अब भी नफरत फैलाने वालों का बचाव करती नजर आ रही है. उसने हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद जवाब दिया कि भड़काउ भाषण देने वालों के खिलाफ केस दर्ज करना अभी के हालात में ठीक नहीं होगा. इसका यह भी मतलब निकाला जा सकता है कि अभी केस दर्ज करने के हालात नहीं है और बाद में केस दर्ज करने की जरूरत नहीं रहेगी और इस तरह नफरत फैलाने का कार्यक्रम चलता रहेगा, जनता को चर्चा के लिए दूसरे मुद्दे मिल जाएंगे. दहशत और दर्द तो सिर्फ उन सूख चुकी आंखों में बचेगा, जिन्होंने इन दंगों में अपनों को इस तरह खोया कि वो कभी वापस नहीं लौट सकेंगे.! देश की राजधानी में तो गुजरात मॉडल पहुंचा दिया गया, यही हालात रहे तो यह हमारे घरों, मौहल्लों की दरवाजों पर भी दस्तक देगा और इस नफरत में हम, हमारी पीढ़ियां जलेंगीं.

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