पटना : राजधानी में लॉकडाउन के दौरान कई स्तरों पर जिला प्रशासन ने कोई इंतजाम नहीं किए हैं। इसका खामियाजा दूसरे शहरों से आए लोगों के साथ पटना पुलिस को भुगतना पड़ रहा है। दूसरे राज्यों व शहरों से आए लोग जो यहां फंसे हुए हैं, उनके रहने और खाने के लिए प्रशासन ने कोई इंतजाम नहीं किया है। मजदूर वर्ग के लोग सड़क पर सोने के लिए मजबूर हैं। आलम यह है कि पटना जंक्शन और करबिगहिया से मीठापुर बस स्टैंड के आसपास लॉज व होटलों में ठहरे लोग सवारी वाहनों की तलाश में बाईपास पर पहुंच जा रहे हैं। वे भीड़ की शक्ल में सड़क पर खड़े हो जाते हैं। उन्हें तितर-बितर करने में पुलिस के पसीने छूट रहे हैं। जक्कनपुर थानाध्यक्ष मुकेश कुमार वर्मा ने बताया कि बसों के परिचालन पर पूरी तरह रोक है। - -- - - - - : सुबह सात बजे पहुंचे 200 लोग, शाम तक हो गए हजार : बाईपास किनारे बने भवनों में रहने वाले लोगों का कहना है कि सुबह सात बजे तक लगभग 200 लोग टोली बनाकर पहुंचे थे। सबके हाथ में झोला और बैग था। थाने में सूचना देने के बाद एक जिप्सी में पुलिस बल पहुंचा। उन्होंने लोगों को समझाया और भीड़ हटा दी। लेकिन, धीरे-धीरे लोगों की संख्या बढ़ती चली गई। शाम छह बजे तक लगभग एक हजार लोग पहुंचकर शोरगुल करने लगे। सिपारा फ्लाईओवर के नीचे खड़ी बस को जबरन खोलने की जिद पर अड़ गए। उन्हें हटाने में पुलिस के पसीने छूट गए। घर लौटने के लिए व्याकुल लोगों में मजदूर वर्ग के अधिक हैं। जब पुलिस उन्हें हटाने लगी तो वे रुपये मांगने लगे। - - - - - - - - - - : अब 150 रुपये में कितने दिन खाएं और कहां रहें? पूर्णिया के शेखूबाग निवासी कासिम बेग ने बताया कि वह दो भाइयों के साथ दिल्ली में रहकर दिहाड़ी मजदूरी करता है। कोरोना संक्रमण का प्रकोप बढ़ने पर पिछले गुरुवार को उसने तत्काल आरक्षण में एक टिकट लिया और सारा सामान व मजदूरी के रुपये के साथ एक भाई को घर भेज दिया। वह और उसका एक भाई सोमवार को जनरल बोगी से पटना आए। उसके पास 3200 रुपये थे। पूर्णिया वाली बस में सोमवार को प्रति व्यक्ति 1500 रुपये किराया लिया जा रहा था तो उसने ट्रेन से जाने की ठान ली। लेकिन, रेल सेवा बंद होने के कारण वह यहीं फंस गया। दो दिन होटल में रहकर खाने-पीने में उसके रुपये खर्च हो गए। अब 150 रुपये बचे हैं। बिना रुपये के लॉज में न तो ठहर सकते हैं और न ही होटल में खा सकेंगे। इस लिए वह भाई के साथ सड़क पर आ गया है।