बिहारशरीफ। परीक्षा कठिन है पर इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं। स्वयं को संयमित रखकर ही हम कोरोना के खिलाफ युद्ध जीत सकते हैं। अगर हमने ऐसा नहीं किया तो मौत की संख्या गिन पाना भी शायद मुश्किल होगा। कोराना वायरस पर अंकुश लगाने की अब तक कोई दवा इजाद नहीं की गई है। ऐसे में स्वयं को भीड़ से अलग-थलग रखकर ही कोरोना के इस आफत से बचा जा सकता है। सरकार ने ऐपिडेमिक एक्ट के तहत घरों में बंद रहने का निर्देश जरूर जारी किया है। लेकिन सोमवार को सरकार के इस आदेश का पूरे दिन मजाक उड़ता दिखा। जनता कर्फ्यू के बाद लॉक डाउन की ऐसी तस्वीर विचलित करने वाली थी। लोग बेवजह सड़कों पर गप्पे हांकते रहे। चाय की दुकानों पर कोराना पीड़ित के आंकड़े की गिनती चलती रही। कुल मिलाकर ²श्य ऐसा मानों सब कुछ टल गया हो। लेकिन ऐसी बात नहीं, जनता कर्फ्यू युद्ध का शंखनाद था जिसे संयमता से ही जीता जा सकता है। हमें यह सोंचना होगा कि स्वास्थ्य के मामले में पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर रहने वाले इटली की जब इतनी बदतर स्थिति हो सकती है तो स्वास्थ्य के मामले में 112वें स्थान पर रहने वाले भारत का क्या होगा ? जहां न पर्याप्त चिकित्सक हैं न ही संसाधन। बाजार से गायब होने लगे खाद्य पदार्थ
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संसाधनों की कमी तथा कुव्यवस्था से घिरे प्रशासन के लिए भी यह अग्नि परीक्षा है। जहां न केवल भीड़ को रोकना उनके लिए चुनौती है। बल्कि खाद्य पदार्थों की कालाबाजारी रोकना भी प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं। सोमवार को पूरे बाजार से आटा एकाएक गायब हो गया। वहीं 15 रु. किलो बिकने वाले आलू की कीमत सीधे 20 रुपए हो गई। प्याज की कीमत भी बढ़ती दिखी। खाद्य पदार्थों में ऐसी बढ़ातेरी कहीं न कही प्रशासन की असफलता का प्रतीक है। बढ़ती कालाबाजारी रोकने का दायित्व प्रशासन पर है। अगर प्रशासन इस कार्य में भी नकाम रहती है तो जनता की ओर से आवाज उठना लाजमी है। हालांकि एसडीओ जर्नादन अग्रवाल ने शहर में बढ़ती कालाबाजारी रोकने का भरोसा दिलाया है। उन्होंने इसके लिए टॉस्क फोर्स के गठन की बात भी कही।
Posted By: Jagran
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