अरवल : मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता ..। कुछ ऐसा ही हुआ अरवल के सोन दियारा की बंजर भूमि के साथ। आज बंजर पड़ी जमीन में हरी सब्जियों का भंडार बन गया है। अब यहां सालो भर सब्जी की फसल लहलहा रही है।
90 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री सोन दियारा में 262 गरीब परिवारों को बसाने के लिए पर्चा दिया था। तब यहां झाड़ जंगल था। किसानों ने यहां झाड़ जंगलों को काटकर जुताई और बोआई की तो सिंचाई का प्रबंध नहीं होने के कारण धान-गेहूं की फसल मन लायक नहीं हुआ। किसानों ने हिम्मत नहीं हारी और सब्जी की ओर रूख किया। मेहनत रंग लाती चली गई। आज यहां की भूमि आलू की खेती के लिए उपयोगी बन गया। आलू का उत्पादन इतना होने लगा कि दूसरे जिले के थाली में पहुंचने लगा। हरी सब्जी की खेती भी इस भूमि पर जोर शोर से हो रही है। अब जो किसान दूसरे की खेतों में मेहनत कर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे उनलोगों के लिए यह जमीन वरदान साबित हो गया। सब्जी की खेती ने उनलोगों की माली हालात को बदल दिया।
इस दियारा में अधिकांश अनुसूचित जाति के लोगों को जगह मिली थी। किसान दीनानाथ पासवान, रामलाल पासवान, प्रभू पासवान, श्रीभगवान पासवान बताते हैं कि आधुनिक तरीके से खेती कर रहे हैं। सब्जी की खेती को और अधिक बढ़ावा देने के लिए कृषि यंत्र की जरूरत वे लोग महसूस कर रहे हैं। प्रति बिगहा 14 से 15 हजार की लागत में 100 से 150 क्विंटल आलू की उपज होती है। किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या नीलगाय का आतंक है जिससे बचने के लिए वे घेराबंदी समेत अन्य तरकीब अपनाते रहते हैं। सभी बाधाओं को पार करते हुए यहां के किसान अन्य किसानों के लिए नजीर बने हुए हैं।
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Posted By: Jagran
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