23 मार्च को हम शहादत दिवस के रूप में मानते है, ये वही दिन है जिसका जिक्र होते ही हमारे देश भारत के नौजवानो के खून उबाले मारने लग जाती है. इसी दिन हमारे देश के स्वतंत्रता के तीन रक्षको - भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को अंग्रेजी हुकूमत ने 23 मार्च, 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया था.
आजादी के महानायक, अमर भगत सिंह.. वो भगत सिंह जिन्होंने चरखा चलाकर नहीं, रैलिया करके नहीं और नहीं असहयोग आंदोलन चलाके बल्कि हँसते हुए फांसी के फंदे को चूमकर हिंदुस्तान को आज़ादी दिलाई थी.. वो भगत सिंह जिनका नाम सुनकर ही राष्ट्रभक्तों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.. वो भगत सिंह जो हिंदुस्तान के युवाओं के प्रेरणा श्रोत हैं.. उन भगत सिंह के बारे में हम आपको एक ऐसी बताने जा रहे हैं, जिसे सुन आपका खून खौल उठेगा.
पूरे भारतवासी को पता हैं कि भगत सिंह तथा उनके साथियों राजगुरु तथा सुखदेव को अंग्रेजी हुकूमत ने 23 मार्च, 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया था. लाहौर सेंट्रल जेल, साल 1947 में हिन्दुस्तान के आजाद होने और भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद पाक की सीमा में चली गई. जिस जगह पर भगत सिंह फांसी के फंदे पर झूले थे, क्या आपको पता है कि उस जगह अब क्या बन गया है? वहां अब मस्जिद बन चुकी है. इसका खुलासा पत्रकार-लेखक कुलदीप सिंह नैयर ने अपनी किताब में किया था. कुलदीप नैयर ने "शहीद भगत सिंह पर शहीद भगत सिंह, क्रांति के प्रयोग (The Martyr Bhagat Singh Experiments in revolution) नाम किताब लिखी है.
कुलदीप सिंह नैयर के द्वारा लिखी गयी किताब के अनुसार - जिस जगह भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गयी थी वो जगह अब ध्वस्त हो गयी है, वो कोठारिया जहाँ हमारे देश के क्रांतिकारियों को रखा गया था वो भी ध्वस्त होके मैदान के रुप में तब्दील हो गयी है.
लेखक नैयर के अनुसार पाकिस्तान की हुकूमत भी नहीं चाहती कि भगत सिंह की कोई निशानी वह ठीक से रहे इसलिए अब पाकिस्तान में लहौर सेंट्रल जेल के उस स्थान पर अधिकारियों ने शादमा नाम की एक कॉलोनी बसाने की अनुमति दे दी थी. जबकि भगत सिंह व उनके दोस्तों को जिन कोठरियों में रखा गया था उसके सामने एक शानदार मस्जिद के गुंबद खड़े हैं तथा जहाँ उनको फांसी दी गई थी, वहां मस्जिद बन चुकी है.