तीन सुंदरियों की होड़
इन दिनों अपने शहर में तीन सुंदरियों के बीच गजब की होड़ चल रही है। एक-दूसरे से बेहतर दिखने, आगे बढ़ने की होड़। इसके लिए वे हर दिन एक-दूसरे को नीचा दिखाने का नया-नया पैतरा भी इजाद करती हैं। जिले में होने वाले अहम कार्यक्रमों में मंचासीन होने की जुगाड़ लगाती हैं। जो सफल होती हैं वे दूसरे पर कटाक्ष करने से बाज नहीं आती। तीनों खुद को सबसे खूबसूरत बताने में भी नहीं चूकतीं। खूबसूरती का मानक तो देखने वालों पर निर्भर है, पर घर से निकलने से पहले वे अपनी ओर से कोई डेंटिंग-पेंटिंग में कोई कमी नहीं छोड़तीं। श्रेष्ठता की होड़ ही है कि वे कुछ नया करने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम भी आयोजित करती हैं। जिसके कार्यक्रम में अधिक भीड़ हो जाए वह अपनी जीत का सेहरा खुद पहन लेती हैं। इसका फायदा एक अधिकारी को मिलता है। उनके कार्यालय में रौनक बनी रहती है।
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गुरुजी और पान-गुटखा
गुरुजी आंदोलनरत हैं। कई दिनों के घरना-प्रदर्शन के बाद भी सरकार ने उनकी नहीं सुनी तो भूख हड़ताल का गांधीवादी हथकंडा अपनाया। सभी बैठ गए तय स्थल पर। घोषित किया कि शाम होने या मांग माने जाने तक तो कतई नहीं खाएंगे! अभी कुछ ही पल बीता था उनका मुंह जुगाली करता दिखा। वे पान-गुटखा चबा रहे थे। उनका फूला हुआ मुंह बता रहा था कि अंदर थूक घुल-घुलकर भर चुका है। जुगाली करते हुए पास से गुजरते लोगों को आशा भरी निगाहों से देखते रहे कि कोई पीठ ठोंके। शाम में एक ने टोका तो सिर उठाकर गोल सा होठ बनाते हुए तोतले टाइप से बोले- भूख हड़ताल पर हैं। फिर मुंह में बहुत देर से घुले थूक को पास में पिच से फेंका और हंस दिया। जता दिया कि सच में भूख हड़ताल पर दृढ़ प्रतिज्ञ थे, मुंह में रखकर भी माल गला के अंदर जाने नहीं दिया!
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कोरोना से बचाने का नया पैतरा
कोरोना वायरस का खौफ भले ही लोगों की रातों की नींद उड़ा दी है। लेकिन, इसने कइयों के लिए कमाई का एक नया रास्ता ही खोल दिया है। कई साक्षर टाइप लोग इसे मौके के रूप में देख रहे हैं। वे कोरोना से बचने का देसज दवा का ईजाद भी कर चुके हैं और लोगों को ठग रहे हैं। ऐसे लोग सुबह होते ही कचहरी, बस स्टैंड आदि भीड़ वाले जगहों पर पहुंचकर अपनी दुकान सजा देते हैं। लोग उनकी ओर आकर्षित हों इसके लिए जोर-जोर से कोरोना को गरियाते हैं। स्वभाविक तौर पर उनके पास लोगों का जुटान हो जाता है। इसके बाद वे अपनी खोजी दवाओं का बखान इतने कांफीडेंस के साथ लोगों की नजर में नजर डालकर करते हैं कि पढ़े-लिखे लोग भी फंस जाते हैं। वे कहते हैं कि दो-चार खुराक लेने से ही कोरोना खत्म। एडवांस में खा लिया तो वायरस पास फटकेगा भी नहीं।
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वर्दीवाले हाकिम और नए करोड़पति
अपने शहर में एक शख्स हैं। किस्मत के धनी हैं। नए-नए करोड़पति बने हैं। दिल्ली नामधारी शहर के नामचीन चौक पर ठेले से प्रतिबंधित लॉटरी खरीदते थे। उनकी लॉटरी सच में लग गई। उनके एक करोड़ 25 लाख रुपये मिलने की सूचना शहर में रातों रात फैल गई। वर्दी वाले साहब को इसकी जानकारी हुई। इसके बाद से वो कभी दिन में तो कभी रात में उसके घर पहुंच जाते हैं। लाव-लश्कर के साथ। अब उन्होंने नव करोड़ी के स्वजनों पर दबाव बनाया हुआ है- जल्दी बुलाओ। पहले दिन उनके पहुंचने से पहले करोड़ी एक नेताजी को हाईजैक कर महानगर जा चुका है। वहां वह मौज में है और यहां वर्दी वाले साहब मरे जा रहे हैं। पूरा जतन और जोर लगाए हैं, लेकिन गुलाबी नोट हाथ ही नहीं आ रहा। वैसे उन्हें तो शर्म से मरना भी चाहिए! आखिरकार चौक पर ठेले पर प्रतिबंधित लॉटरी बिक कैसे रही है?
Posted By: Jagran
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