चर्चा में साहब की नई गाड़ी
शहर में इन दिनों कोरोना वायरस की तरह साहब की नई चमचमाती गाड़ी भी खूब चर्चा में है। साहब न सिर्फ अपने बल्कि विभिन्न विभागों में प्रभारी पदाधिकारी भी हैं। उनका अंदाज भी निराला हैं। दिखावे के लिए काफी भागदौड़ भी रहती है तो गाड़ी खरीदनी भी चाहिए। कई विभागों के प्रभार में हैं तो गाड़ी भी महंगी और लक्जरी होनी चाहिए न। यह किसी को खटके तो उनकी बला से। खटकने की बात कहे कौन? चर्चा बुलंद करने का रास्ता निकाला गया है- लग्जरी वाहन खरीदे हैं लेकिन किसी को मिठाई भी नहीं खिला रहे हैं। गाड़ी खरीदते ही पहाड़ की ओर टूर पर गए। वहां से लौटे तो निकटस्थ कर्मियों से थोड़ी दूरी बनाने लगे हैं। चुटकी लेते हुए कर्मी कहने लगे कि साहब गाड़ी खरीदने का लाजबाब समय ढूंढ़ा। कोरोना के कारण सबसे दूरी बना लिए हैं, इस बहाने गाड़ी पर उनसे कोई गप तो नहीं करेगा।
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चुनाव से पहले मौका जरूर मिलेगा
थानेदारी या आरामतलबी वाली पोस्टिग आज न कल जरूर मिल जाएगी, बस जरूरत है थोड़ी इमेज बिल्डिग की। अगर साहब के नजर में आ गए तो समझो मेहनत का फल मीठा मिलेगा ही। पुलिस पदाधकिारियों के बीच आपसी बातचीत में हास्य-व्यंग्य के साथ-साथ काम की भी बातें आजकल खूब हो रही है। कोई थानेदार बनने के लिए थोड़े बेचैन दिख रहा है तो कोई जिला से ट्रांसफर कराने के लिए। लेकिन फिलहाल कोरोना सबके अरमानों का गला घोंटता दिख रहा है। वैसे इन दिनों पुलिस पदाधिकारियों के बीच दुआ-सलाम में भी चर्चा आम है कि विधानसभा चुनाव नजदीक है। एक-दूसरे को समझाते हुए कहते हैं कि घबराइए मत, मौका जरूर मिलेगा। बस इमेज बिल्डिग पर ध्यान दीजिए, थाने से लेकर मनचाहा पोस्टिग तक संभावना रहेगी। हालांकि वे यह भी कह रहे कि ड्यूटी की भागदौड़ की जगह थोड़ा आराम भी महत्वपूर्ण है। अभी 24 घंटे के तनाव से बेहतर हैं।
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तीन-तीन दिन वाला रूटीन शानदार
कोरोना वायरस को लेकर दिन-रात एक किए पदाधिकारियों व कर्मियों के बीच पहले वाले साहब की चर्चा खूब हो रही है। सभी उनकी प्रशंसा करते नहीं थक रहे हैं। कहते हैं कि उनके साथ ट्यूनिग बढि़या बन गया था। वे थोड़े लिबरल भी थे। नए वाले साहब जब से आए हैं तब से काम के पीछे खुद भी भाग रहे हैं और हम सभी को दौड़ा रहे हैं। ऐसा लगता है कि साहब टारगेट बेस्ड काम के आदि हैं। अभी कोरोना वायरस का ऐसा असर हो गया है कि दिन-रात एक करना पड़ेगा सबको। फुर्सत के समय ऑफिस-ऑफिस खेल रहे कर्मियों के बीच इस तरह की चर्चाएं खूब हो रही है कि साहब का तीन दिन वाले रूटीन का आइडिया बेहतर है। लगता है कि बड़ी सोच समझकर साहब ने तीन-तीन दिन के रोटेशन वाला नियम लागू किया है। इसी बहाने साहब को सभी का असलियत का पता चल जाएगा।
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कुछ दिन तो गुजारिए घर में
कोरोना वायरस से बचाव के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। कार्यालय में भीड़ लगाकर, मीटिग कर नेताजी कार्यकर्ताओं को थोड़ी बहुत सोशल रिस्पांसिबिलिटी निभाने की बात कहते हैं और घर में रहने की सलाह भी दे रहे हैं। यहां तक तो सब ठीक है, पर असल दिक्कत तो तब हो रहा है जब पार्टी के अन्य पदाधिकारियों का फोन आ जाता है। जैसे ही सामने से हेलो सुनते हैं, धाराप्रवाह बोलने लग जाते हैं। एक सुर में चीन, इटली, लंदन, दिल्ली से लेकर कनिका कपूर तक की कहानी बयां कर सीधा बोल उठते हैं- सुनिए घर में ही रहिए, खतरा मोल मत लीजिए। हमारा-आपका जीवन बीत गया जनता सेवा में, अब कुछ दिन गुजारिए घर में। जनता को भी सलाह दीजिए कि बहुत जरूरी नहीं हो तो घर में ही रहें। यह मिलने जुलने का माहौल नहीं है। रिलैक्स कर सरकार की मदद कीजिए।
Posted By: Jagran
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