जागरण विशेष :
- 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र आर्सेनिक युक्त प्रभावित
- 1.15 लाख किसान आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्र में
डॉ चंद्रभूषण शशि, छपरा : गंगा व सरयू नदियों के तटवर्ती करीब 25 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि आर्सेनिक प्रभावित हैं। इस कारण करीब 1.15 लाख किसानों की खेती पर असर पड़ रहा है। लेकिन, अब आर्सेनिक दूषित मिट्टी में भी धान की अच्छी खेती की उम्मीद जगी है। आर्सेनिक के प्रभाव को कम कर यहां जैवोपचारण विधि से धान की खेती का प्रयास होगा। कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक साथ मिलकर इस प्रयोग को जमीन पर उतारेंगे।
प्रारंभिक शिक्षकों ने कोरोना से बचाव को ले किया सजग यह भी पढ़ें
आर्सेनिक प्रभाव वाले इलाके में किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। किसानों को नई जीवाणु विधि से धान के बिचड़े उगाने और जैवोपचारण विधि से रोपनी के बारे में बताया जाएगा। जहरीली मिट्टी में भी धान की खेती से किसानों के जीवन में खुशहाली आएगी। इससे धान की उपज में करीब 20 फीसद तक का इजाफा हो सकता है।
फिलहाल आर्सेनिक प्रभावित इलाके में धान की खेती नहीं के बराबर है। यहां के किसान दूसरे फसलों की खेती करते हैं। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है आर्सेनिक प्रभावित मिट्टी में उपजने वाले अनाज और साग-सब्जियां भी आर्सेनियुक्त हो जाते हैं। सिचाई में आर्सेनिकयुक्त पानी के प्रयोग से पौधे आर्सेनिक को अवशोषित करते हैं। इससे मवेशियों के चारे से उनके दूध भी आर्सेनिकयुक्त होकर मानव स्वास्थ्य पर खतरनाक प्रभाव डालते हैं। इसके कारण पेट की गड़बड़ी, लीवर, किडनी, कैंसर जैसी कई घातक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
सारण में गंगा और सरयू नदियों के तटवर्ती मांझी, रिविलगंज, छपरा सदर, दिघवारा, गड़खा, सोनपुर आदि इलाके में आर्सेनिक की मात्रा काफी ज्यादा मिली है। मिट्टी जांच प्रयोगशाला ने इसे गंभीर बताया है। अब यहां मिट्टी में विशिष्ट बैक्टीरिया जीवाणु खाद के प्रयोग से आर्सेनिक प्रभाव कम करने का प्रयास होगा। सस्ते घोल को बिचड़े और रोपनी में इस्तेमाल की विधि से किसान लाभान्वित होंगे। जैवोपचारण विधि उपचार :
जनता कर्फ्यू से हराएंगे नोवल कोरोना वायरस को यह भी पढ़ें
एक एकड़ की रोपनी में 50 लीटर पानी के साथ 2.50 किलो गुड़ और 500 मिली सबौर बायो आर्सेनिक-1 मिटिगेटर का घोल तैयार करना है। रोपनी के पूर्व बिचड़े की जड़ों को जीवाणु घोल में 30 मिनट तक डुबो कर उपचारित करना है। शेष घोल के रोपनी वाले खेतों में ही डाल दिया जाएगा। इससे आर्सेनिक प्रभाव को कम कर धान की उपज में वृद्धि की जा सकेगी। वर्जन-
सबौर कृषि विवि में शोध और परीक्षण की सफलता के बाद इस विधि के प्रयोग पर विचार हो रहा है। इससे मिट्टी में आर्सेनिक प्रभाव को कम कर अच्छी फसल प्राप्त की जा सकेगी। सारण के आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में जैवोपचारण विधि से धान की उपज बढ़ाने का प्रयास होगा। इससे उत्पादन में खतरनाक आर्सेनिक प्रभाव में कमी लाई जा सकेगी।
- केएम मिश्रा,
कृषि वैज्ञानिक।
Posted By: Jagran
डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस