संवाद सूत्र तारापुर मुंगेर : ब्रज की गोपियां भक्ति की साकार मूर्तियां थी। श्री कृष्ण उनके प्राणों से भी प्यारे परम प्रियतम थे। गोपियों ने अपना जीवन ही श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था। भगवान से प्रेम कैसे करें, यह सीखना हो तो ब्रज की गोपियों से सीखना चाहिए।
उक्त बातें धोबय गांव में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में स्वामी सुबोधानंद जी महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि गोपी शब्द का तात्पर्य है वह जीवात्मा जो संपूर्ण इंद्रियों और अंत:करण से कृष्ण प्रेम रस का पान करें। गोपियां बड़े प्रेम से माखन तैयार करती थी। इसलिए श्रीकृष्ण ग्वाल बाल सखाओं के साथ गोपियों के घर का माखन चुरा कर खाते थे।
माखन अत्यंत स्वादिष्ट, मधुर , कोमल सतोगुण आहार है तथा दिव्य अलौकिक प्रेम रस का प्रतीक भी है। स्वामी जी ने कहा कि केवल भक्ति और प्रेम के बल पर ही ग्वालिनि यशोदा ने बालकृष्ण रूप में साक्षात परमेश्वर को ही अपना पुत्र समझकर रस्सी द्वारा ऊखल से बांध दिया था, रस्सी श्रीकृष्ण के कमर में बंधी थी। इसीलिए भगवान का एक नाम दामोदर हो गया। उखल बंधन लीला से यह से प्रकट होता है कि परम स्वतंत्र होकर भी परमात्मा भक्तों के प्रेम बस बंधन में आ सकते हैं। माखन चोरी गोप कन्याओं के चीरहरण गोवर्धन पूजा आदि प्रसंगों पर बड़े ही मनभावन तरीके से कथा वाचन कर उपस्थित लोग को भाव विभोर कर दिया।
इस अवसर पर स्थानीय कलाकारों द्वारा ग्वाल बाल संग माखन चुराते बाल कृष्ण तथा गोवर्धन पर्वत धारण करते भगवान कृष्ण की झांकी भी प्रस्तुत की गई।
Posted By: Jagran
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