जासं, शेखपुरा: प्राकृतिक खेती कर किसान शुन्य लागत पर बेहतर लाभ कमा सकते हैं। प्राकृतिक खेती एक विधि है जिसमें शून्य लागत पर खेती कर सकते है। यह कारनामा कर दिखाया है जिले के ओठवां गांव निवासी किसान राघवेन्द्र ने। राघवेन्द्र पिछले सात साल से जैविक खेती कर अच्छी आमदनी कर रहे है। साथ ही अन्य किसानों के लिए भी यह प्रेरणा का काम कर रहे है।
यह पद्धति महाराष्ट्र के विदर्भ के किसान वैज्ञानिक सुभाष पालेकर ने विकसित की है। इस विधि में संकर या जीएम बीज का उपयोग नहीं होता है। सिर्फ देसी बीज का उपयोग होता है। एक ही बीज का उपयोग कई साल तक होता है। इस खेती का सिद्धांत है कि किसी भी उपज का 98. 5 प्रतिशत हिस्सा प्रकृति (हवा, पानी, प्रकाश) से बनता है। जिसके लिए शून्य लागत होती है। वहीं 1. 5 प्रतिशत हिस्सा जमीन से लिया जाता है। इस 1.5 प्रतिशत के लिए हजारों रूपए खर्च करने की जरूरत नहीं है।
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इस विधि में हवा से नमी लिया जाता है। वहीं जमीन से पानी लेने के लिए केंचुए काम आते हैं जो जमीन में अनंत कोटि छिद्र करते हैं। इससे बारिश का पूरा पानी जमीन में चला जाता है। वहीं पानी जमीन से जड़ को मिलता है। इसलिए इस खेती में किसी भी तरह के खाद, कीटनाशक और वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग नहीं करना होता है।
इस प्रकार की खेती में गाय काफी महत्वपूर्ण होते हैं। देसी गाय के गोबर का उपयोग ना सिर्फ उर्वरक बल्कि कीटनाशक का भी काम करता है। किसान का कहना है कि इस जीरो बजट खेती में उपज भी बढ़ती है और किसानों को दाम भी अधिक मिलता है।
किसान सात सालों से लगातार शून्य लागत प्राकृतिक कृषि की खेती कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि डॉ सुभाष पालेकर से पहली बार राज्य के वैशाली में तीन दिवसीय प्रशिक्षण प्राप्त किया। उसके बाद वर्धा महाराष्ट्र, नागपुर, भरतपुर में अलग अलग तिथियां में खेती करने का गुर सिखा और उसके उपरांत इस पद्धति को अपनाकर बिना लागत के खेती कर फसल का उत्पादन लिया। रसायनिक उर्वरक डालने के कारण मिट्टी का सुक्ष्म जीव के मर जाने के कारण फसल का उत्पादन कम हो गया है। सुक्ष्म जीव को जिदा करने के लिए जीवा अमृत का निर्माण कर खेतों में डालते हैं।
जीवा अमृत का निर्माण कैसे करें
देसी गाय का गोबर, गुड़ (रावा), बेसन को मिलाकर बनाया जाता है।
बनाने की विधि एक एकड़ खेत के लिए ।
5 से 10 किलों गोबर
1 से 1.5 किलों गुड़
1 से 1.5 किलों वेसन
200 लीटर पानी को 8 दिनों तक मिलाकर उसके बाद पानी या मिट्टी में मिलाकर खेतों में डाले जाते हैं।
Posted By: Jagran
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