पूर्णिया। पूर्णिया विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार सिंह ने शिक्षकों की पदोन्नति के लिए विश्वविद्यालय की ओर से जारी प्रोफॉर्मा को गैर वैधानिक बताया है। उन्होंने कहा है कि बिहार सरकार एवं राजभवन कार्यालय के आदेशों की अवहेलना की सूची को लंबी करते हुए पूर्णिया विश्वविद्यालय प्रशासन अब एक नई प्रताड़ना पूर्ण योजना को अंजाम देते हुए एक अधिसूचना 22 फरवरी 2020 को जारी किया है। यह अधिसूचना नवनियुक्त सहायक प्राध्यापकों के सेवा संपुष्टि एवं पूर्णिया विश्वविद्यालय अंतर्गत विभिन्न सम-वगरें के प्राध्यापकों के लिए पदोन्नति का प्रोफॉर्मा है।
उन्होंने कहा है कि पदोन्नति के लिए जिस प्रोफॉर्मा को जारी किया गया है, वह पूर्ण रूप से बिहार के विश्वविद्यालयों के लिए गैर-वैधानिक है। कुलाधिपति कार्यकाल की ओर से पदोन्नति की नियमावली 29.06.2005 के द्वारा बिहार में अभी लागू है। इसमें संशोधन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। इस समिति को 18 जुलाई 2018 के आलोक में शिक्षकों के लिए कैरियर एडवासमेंट स्कीम 2018 के आलोक में अपनी रिपोर्ट देनी थी। समिति ने दिनाक 16 अगस्त 2019 को राजभवन सचिवालय को अपनी रिपोर्ट समर्पित किया था। राजभवन सचिवालय ने उक्त रिपोर्ट पर बिहार के सभी कुलपतियों से राय मागते हुए एक पत्र जारी किया था। अभी उक्त अधिनियम बिहार में शैशव अवस्था में है। इसे राजभवन कार्यालय की ओर से अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है। अर्थात बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 में इस अधिनियम को नहीं जोड़ा जा सका है। जब तक यह अधिनियम बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 का अंग नहीं हो जाता है, तब तक इसे किसी भी विश्वविद्यालय में कुलपति की ओर से लागू नहीं किया जा सकता है। इससे साफ जाहिर है कि अभी तक यूजीसी 2018 रेगुलेशन राजभवन की ओर से बिहार के विश्वविद्यालयों के लिए लागू नहीं किया गया है।
लेकिन पूर्णिया विश्वविद्यालय ने राजभवन के अधिकारों में हस्तक्षेप करते हुए विवि में कार्य कर रहे विभिन्न संवर्ग के प्राध्यापकों के लिए उक्त अधिनियम के आधार पर प्रोफॉर्मा जारी करना पूर्ण रूप से गैर वैधानिक प्रतीत हो रहा है। यह राजभवन के अधिकार क्षेत्र में दखलअंदाजी भी प्रतीत हो रही है।
पटना उच्च न्यायालय के आदेशानुसार पदोन्नति की पहले से चली आ रही प्रक्रिया को पूरा किए बिना नई प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती है। पदोन्नति का ताजा मामले उठाने से पहले पूर्णिया विश्वविद्यालय को इस आदेश से जूझना होगा। निर्देश था कि भविष्य में कोई भी विश्वविद्यालय किसी भी शिक्षक के पदोन्नति के मामलों को छह महीने से अधिक समय तक लंबित नहीं रखेगा। बाद की तारीख में इस तरह के पदोन्नति के लिए आवेदन करने वाले किसी को भी इस तरह का पदोन्नति नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि व्यक्तियों के मामले में पदोन्नति के लिए पहले आवेदन करने का फैसला छह महीने या दूसरे तरीके से किया जाता है।
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शिक्षकों को ओरियंटेशन एवं रिफ्रेशर कोर्स से रोका गया
शिक्षक संघ के संयुक्त सचिव अभिषेक आनंद ने कहा कि नवनियुक्त सहायक प्राध्यापकों को विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से पूर्व में ओरिएंटेशन एवं रिफ्रेशर कोर्स करने से रोका गया था। पीयू शिक्षक संघ विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा शिक्षकों को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से अधिसूचित किए गए दोनों प्रोफॉर्मा का विरोध करता है और जल्द ही इसकी सूचना कुलाधिपति कार्यालय को देगा।
विवि बिहार सरकार की अनेक कल्याणकारी योजनाएं, जो विवि एवं इस क्षेत्र के महाविद्यालयों में पढ़ रहे छात्रों के लिए चलाई जा रही है, उसका अनुपालन नहीं कर रहा है। शिक्षक संघ बार-बार विश्वविद्यालय को आग्रह करता रहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति एवं महिलाओं से जो अवैध रूप से नामाकन शुल्क की वसूली की गई, उसे अविलंब वापस करे। लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। बिना संबंधन के जिन विषयों की पढ़ाई प्रारंभ कर दी गई, उन विषयों में पढ़ रहे छात्रों को बिहार सरकार एवं केंद्र सरकार से मिलने वाले छात्रवृत्ति में बहुत दिक्कत आ रही है। बिहार सरकार के कल्याण विभाग के वेबसाइट पर इन विषयों की इंट्री दर्ज नहीं है, जो यह बताने में पूर्ण रूप से सक्षम है कि अनेक विषयों में गलत तरीके से नामाकन लिया गया है। उदाहरण के लिए पूर्णिया कॉलेज में भूगोल, गृह विज्ञान, संगीत विषयों में लिया गया नामाकन आदि शामिल है।
Posted By: Jagran
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