संवाद सूत्र, पहाड़कट्टा (किशनगंज) : पीला सोना के नाम से प्रसिद्ध मक्के की खेती कर रहे किसानों के लिए फॉल आर्मी आफत बनकर आई है। जिले के पोठिया, कोचाधामन, बहादुरगंज, ठाकुरगंज व दिघलबैंक प्रखंड में फॉल आर्मी ने बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है, जिससे किसान बेहद चितित हैं। किसानों का कहना है कि मक्का में फॉल आर्मी वर्म कीट लगने से मक्का के पौधे का हरापन धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।
किसानों का कहना है कि किशनगंज की मिट्टी में मक्का की खूब उपज। परंतु इस'पीला सोना'को फॉल आर्मी वार्म की नजर लग गई है। जिले के 80 फीसद से अधिक लोग खेती किसानी पर निर्भर है। किसान खेती कर अपने परिवार का भरणपोषण सहित बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाते हैं। अब धान, गेहूं व पटसन से तौबा कर किसान मक्का की खेती बड़े पैमाने पर करते है। अचानक मक्के की फसल में बिमारी लग जाने से किसान बेहद चितित हैं। मक्का में फॉल आर्मी वर्म कीट लगने से पौधे का हरापन धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। फिर वह पौधा जड़ से खत्म हो जाता है। दवाई का छिड़काव व स्प्रे करने के बावजूद इस बीमारी पर काबू नहीं पाया जाता है।
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पोठिया प्रखंड बुढ़नई पंचायत के आदिवासी टोला शीशाबाड़ी के किसान गोपाल टूडु, लाल मुर्मू, सुपोल मुर्मू, कैप्टन मुर्मू, रविलाल सोरेन, सुकलो सोरेन, सोम सोरेन व गंजाबाड़ी गांव निवासी किसान मो. असरारुल हक, अशरफ अली, मतिउर्रहमान, रईसुद्दीन तथा तोजीबुर्रहमान आदि ने बताया कि हमलोग मक्का धान व पाट की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। लेकिन इस साल मक्का की खेती में कीट लग जाने से मक्के के पौधा धीरे-धीरे सूखकर खत्म होता जा रहा है। कीटनाशक दवाई के इस्तेमाल व स्प्रे करने के बावजूद बिमारी समाप्त नहीं हो रहा है, यह एक चिता का विषय है।
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कहते हैं विशेषज्ञ
डॉ. कलाम कृषि कॉलेज अर्राबाड़ी के वैज्ञानिक सह सहायक प्रोफेसर डॉ. कमलेश ने बताया कि इन दिनों फॉल आर्मी वर्म कीट से सबसे ज्यादा प्रभावित मक्के की फसल हो रही है। यह मूलत: अमेरिका से आया हुआ रोग है। 2017 में इसका कीट भारत में सबसे पहले कर्नाटक में प्रवेश किया। पिछले एक वर्ष में यह पूरे भारत वर्ष में फैल गया। मक्का फसल के लिए खतरनाक इस कीट को छोटे (लारवा) अवस्था में आसानी से पहचाना जा सकता है। जब इस कीट का प्रकोप मक्का में लगता है तो सबसे पहले पत्ते का हरापन को हटा देता है। यह कीट 10 दिन के बाद बड़ा होने लाग जाता है जो 35 दिन बाद मक्का के पूरे पत्ते को खा जाता है। इस कीट के छोटे अवस्था में बचाव के लिए दो सौ एमएल प्रति एकड़ नीम के ऑयल से स्प्रे कर के इसके प्रभाव को रोका जा खत्म किया जा सकता है। जब कीट बड़ा हो जाता है और मक्का के फसल को पूरी तरह से अपने चपेट में ले लेता है तो उस समय एम्पलिगो नामक दवाई के स्प्रे किया जाना चाहिए। यह दवा किसी भी बीज भंडार या कीटनाशक दोकानों में आसानी से मिल सकता है। इसका 80 एमएल दवाई डेढ़ लीटर पानी में मिला कर ढाई एकड़ में स्प्रे कर इस कीट की प्रकोप का खत्म किया जा सकता है। इस प्रकार एमिमामेक्टिन बेंजोएट पांच एसजी का 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर में कीट प्रकोप की स्थिति अनुसार 15-20 दिन के अंतरालन पर 2-3 बार छिड़काव करें। प्रथम छिड़काव बुआई के बाद 15 दिन की अवधि में अवश्य करें। दानेदार कीटनाशकों का उपयोग पौधे की पोंगली में करें।
Posted By: Jagran
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